नई दिल्ली: माना जा रहा है कि वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश का पूंजीगत खर्च बढ़ जाएगा। मगर आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर के मुकाबले नवंबर में यह खर्च 9 प्रतिशत घट गया। राहत की बात यह है कि महालेखा नियंत्रक (सीजीए) द्वारा जारी आंकड़ों में राज्यों को अंतरण बढ़ता दिख रहा है। इनके मुताबिक चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से नवंबर के दौरान इसमें साल भर के मुकाबले 5 प्रतिशत तेजी आई। अप्रैल से अक्टूबर के दौरान इसमें 20 प्रतिशत कमी देखी गई थी।
सीजीए के आंकड़ों के मुताबिक नवंबर में पूंजीगत व्यय के लिए बतौर कर्ज जो रकम जारी की गई वह इस वित्त वर्ष के किसी भी महीने में जारी रकम से ज्यादा थी। केंद्र ने अक्टूबर में 12,503 करोड़ रुपये जारी किए थे मगर नवंबर में 18,486 करोड़ रुपये जारी कर दिए, जिससे पता चलता है कि ज्यादा रकम इस्तेमाल हो सकती है।
विशेषज्ञों को लगता है कि सरकार के प्रयासों के बावजूद पूंजीगत खर्च में सुस्ती है मगर ऐसा खर्च बढ़ाने के लगातार प्रयास जरूरी हैं। डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा, ‘बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाने पर जोर केवल आवाजाही का खर्च घटाने के लिए नहीं दिया जा रहा है बल्कि इससे गरीबी घटाने में भी मदद मिलेगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था ब शहरी अर्थव्यवस्था से बेहतर तरीके से जुड़ी है और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ज्यादा बाजार मिल रहा है।’
रेल और सड़क मंत्रालय सबसे ज्यादा पूंजीगत खर्च करने वाले मंत्रालयों में शामिल हैं। 2025 के बजट आवंटन में से रेल मंत्रालय ने 67 प्रतिशत और सड़क मंत्रालय ने 54 प्रतिशत रकम इस्तेमाल कर ली है। विशेषज्ञों ने कहा कि रेल परियोजनाएं तो लक्ष्य के हिसाब से चल रही हैं मगर सड़क क्षेत्र में कुछ सुस्ती आई है।
इक्रा की एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2025 के पहले चार महीनों में 563 किलोमीटर लंबी सड़क के ठेके दिए गए, जबकि पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती चार महीनों में 1,125 किमी सड़क के लिए ठेके दिए गए थे।
केंद्र सरकार वित्त वर्ष 2025 की आखिरी तिमाही (जनवरी-मार्च) में उन विभागों और मंत्रालयों को आसानी से पैसा खर्च करने देने के लिए नियमों में ढील दे सकती है, जो वित्त वर्ष के लिए आवंटित बजट अभी तक खर्च नहीं कर पाए हैं।
सरकार ने वित्त वर्ष के दौरान कुल 11.1 लाख करोड़ रुपये के कुल पूंजीगत व्यय का लक्ष्य तय किया था। चूंकि साल भर पहले के मुकाबले 12.3 फीसदी कम पूंजीगत व्यय हुआ है, इसलिए विशेषज्ञों को लग रहा है कि खर्च के अपने लक्ष्य से 1 लाख करोड़ रुपये से 1.5 लाख करोड़ रुपये पीछे रह सकती है। वित्त वर्ष 2025 में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान कुल पूंजीगत खर्च साल भर पहले की तुलना में 15 फीसदी घट गया।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, ‘राज्यों को उनके काम के प्रदर्शन के आधार पर रकम दी जाती है और चुनावों की वजह से कई राज्यों में काम प्रभावित हुआ है। ऐसे में लक्ष्य से पिछड़ना स्वाभाविक है लेकिन इससे सरकार को अपना राजकोषीय घाटा कम रखने में भी मदद मिलेगी।’