कौशल किशोर
नई दिल्ली: केंद्रीय सेवाओं में पार्श्व भर्ती का विज्ञापन जारी करने के तीन दिन बाद इसे वापस लेने से देश भर में बहस छिड़ गई। बीते 18 जून को हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नेट (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा) को अगले ही दिन रद्द करने से पेपर लीक मामले में पहले से आंदोलित छात्रों को मसाला मिलता है। प्रधान मंत्री कार्यालय इसमें आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए केन्द्रीय लोक सेवा आयोग को सुझाव दे रही है। संभव है कि निकट भविष्य में इन पदों पर भर्ती की प्रक्रिया पूरी हो। इस बीच पार्श्व भर्ती के विरुद्ध विपक्षी नेताओं का आक्रामक रुख भी सुर्खियों में रहा। राजग सरकार में शामिल कई दलों और नेताओं की मांग आरक्षण के पक्ष में है।
लोक सभा में राहुल गांधी महाभारत के चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की बात करते हैं। इसे पद्म व्यूह बताते हुए भाजपा के चुनाव चिह्न से तुलना करते। अपनी रची व्यूह रचना में पार्श्व भर्ती और आरक्षण का मामला भी समेट लेते हैं। सड़कों पर उतरे बेरोजगार युवाओं, महिलाओं और किसानों के साथ ही जातीय जनगणना के नाम पर पिछड़ों और आदिवासियों के साथ राहुल मुस्तैदी से खड़े हैं। सरकार इस व्यूह रचना के सामने टिकने और इसे भेदने की बराबर कोशिश कर रही है। पर पेपर लीक पर लगाम लगाना कोई खेल नहीं है। बढ़ती मंहगाई और जनसंख्या के साथ बेरोजगारी भी बढ़ रही है। साथ ही कश्मीर व पंजाब में ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल, असम समेत समूचे पूर्वोत्तर तक अलगाववादी तत्त्व सक्रिय हैं। घूमते हुए चक्रव्यूह में इनकी महारथियों के समान भूमिका है।
राज्य सभा में सुधांशु त्रिवेदी चक्र व्यूह और पद्म व्यूह से लेकर 36 किस्म की व्यूह रचना का जिक्र करते हैं। धन की देवी लक्ष्मी और विद्या की देवी सरस्वती के आसन का जिक्र कर कमल के खिले रहने और देश में समृद्धि बनी रहने की कामना करते हैं। दूसरी ओर बांग्लादेश की पदच्युत और निर्वासित नेता शेख हसीना और डेढ़ करोड़ बंगाली हिन्दू घातक चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की स्थिति दोहराते दिखते। पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार के बाद देश भर के स्वास्थ्यकर्मी विरोध कर रहे हैं। सूबे की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी भी सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन में लग गई। उनके प्रतिदिन 90 बलात्कार के अपराधों का औसत आंकड़ा पेश करने पर प्रधान मंत्री मोदी भी सभी राज्यों की सरकार से अंकुश लगाने का आह्वान कर रहे हैं।
भारत किसी सूरत में बंगलादेश, श्रीलंका अथवा पाकिस्तान नहीं हो सकता है। इसे सुनिश्चित रखने का काम राजनेताओं ने बराबर किया है। आज भारत में बसने वाले मुसलमानों की संख्या पाकिस्तान व बांग्लादेश में बसने वालों के बराबर है। करीब अस्सी करोड़ हिन्दू और इतने ही मुसलमान भारतीय उपमहाद्वीप में बसते हैं। बेहतर साथ निभाने के लिए राजनीति करने की आज सख्त जरूरत है।
आरक्षण में क्रीमी लेयर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की बात मोदी सरकार की ओर से अश्विनी वैष्णव कहते हैं। इसके बावजूद भी आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति द्वारा भारत बंद का आह्वान किया गया है। केन्द्र सरकार के लचीलेपन का असर 21 अगस्त के इस हड़ताल पर मौजूद है। छः साल पहले एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के बाद भारत बंद का आह्वान किया गया। मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले के बाद की प्रतिक्रिया में हिंसक प्रर्दशनों का क्रम शुरु हो गया था। हालांकि तीनों जन आक्रोश की पृष्ठभूमि अलग है। लेकिन न्यायालय इन सब की उत्पत्ति के केन्द्र में है। पक्ष विपक्ष की दलीलों से इतर न्याय करने के बदले फैसले में सिमटने का नतीजा भी सामने है। विपक्षी दलों ने इन्हें सरकार की बैक डोर पॉलिटिक्स माना है।
जस्टिस चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सात जजों की संविधान पीठ ने प्रगतिशीलता का परिचय देते हुए क्रीमीलेयर को आरक्षण की परिधि से बाहर निकाल दिया। दलित बुद्धिजीवी दिलीप मण्डल कहते हैं कि न्यायालय के बदले संसद इसके लिए उपयुक्त जगह है। पिछड़े वर्गों के संपन्न लोगों के द्वारा अवसर दिए जाने पर ही अतिपिछड़ों को सही मायनों में लाभ मिलेगा। कानून और अदालत की कोई बंदोबस्ती लोक समाज के बराबर सहयोग के बिना सफल नहीं होता है। इस मामले में केन्द्र की नीतियों की सराहना और सावरकर के हिंदुत्व से इसे जोड़ने के बाद मण्डल सूचना प्रसारण मंत्रालय में केन्द्र सरकार के सलाहकार हो गए हैं। पार्श्व भर्ती मामले में यह एक गिनती बढ़ती है। इसका विज्ञापन जारी नहीं किया गया। नौकरशाही को डा. मन मोहन सिंह और संजीव सान्याल जैसे अर्थशास्त्री इस पार्श्व भर्ती की वजह से ही मिलते हैं। डा. सिंह की तरह सान्याल रिजर्व बैंक के गवर्नर होने योग्य हैं। हालांकि कुल भर्तियों की संख्या पचास से भी कम रही। यदि इन सभी पदों पर इसी तरह योग्य लोगों की शीघ्र भर्ती किया जाए तो देश का भला होगा। चक्रव्यूह की परिधि में विपक्ष इसे समेट सकती पर काम रोक पाने में सक्षम नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर संपन्न वर्ग के एक करोड़ लोग सब्सिडी वाला गैस सिलेंडर बंद कर अपनी रईसी का परिचय देते। क्रीमीलेयर वाले लाभार्थियों को स्वतः आरक्षण का लाभ छोड़ देना चाहिए। मण्डल जैसे विद्वानों व जीतन राम मांझी जैसे नेताओं के सहयोग से सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा। राम दास आठवले और मायावती जैसी नेताओं को भी इसके लिए राजी करना चाहिए। विभाजनकारी और वैमनस्य की राजनीति में शामिल लोगों को चिन्हित करना होगा। शेष सभी को बिना किसी भेद भाव के लोक सेवा व राष्ट्र निर्माण में सहयोगी बना कर ही विकसित भारत का लक्ष्य साधना संभव है।
द्रमुक राजनीति करुणानिधि की जन्म शताब्दी समारोह में सौ रूपए के सिक्कों की खनक महसूस करता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एवं केंद्र सरकार की प्रशंसा तमिलनाडू के मुखिया स्टालिन कर रहे हैं। 12 और 16 के बाद 24 का अंकगणित राजग सरकार के सहयोगी नीतीश कुमार व चन्द्र बाबू नायडू ही नहीं, बल्कि विपक्षी नेताओं की भी नींद हराम करने के लिए पर्याप्त है। भ्रष्टाचार और टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला पर्यायवाची साबित हुए हैं। इसमें अभियुक्त स्टालिन की बहन कनिमोझी और ए रजा जैसे सहयोगियों की मदद जरूरी है। उदयनिधि को उत्तराधिकार सुनिश्चित करने की राजनीति में लगे इस क्षत्रप की स्थिति समझ से परे नहीं रही। सुदूर दक्षिण में सनातन धर्म की विकृत परिभाषा गढ़ कर द्रमुक भ्रम का शिकार होते हैं। भाजपा विरोध की राजनीति एक बार फिर करवट बदलने को मचल रही। बीसवीं सदी के अन्त में करुणानिधि भी राजग सरकार के मुखिया अटल बिहारी वाजपेई के साथ खड़े हुए थे।
इस तरह नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और जगत प्रकाश नड्डा की भाजपा, गठबंधन सरकार और संघ परिवार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करती है। इनके साथ वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन संघ प्रमुख को जवाब प्रतीत होता है। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री सेक्युलर नागरिक संहिता के बदले समान नागरिक संहिता की बात करते हैं। भाजपा विपक्ष की व्यूह रचना तोड़ने में लगी है। इस बीच सियासी पैंतरेबाजी में फंस कर अभिमन्यु बनने से जनता को खुद ही बचना होगा।