जयपुर: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री रामलाल जाट से जुड़े केस की जांच सीबीआई से कराने पर रोक लग गई है। पिछले दिनों राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रकरण की जांच सीबीआई से कराए जाने के आदेश दिए थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि राज्य की पुलिस जांच करने में सक्षम है। ऐसे में सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है। राज्य सरकार की दलीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है।
रामलाल जाट को मिलेगी राहत!
अमूमन जब किसी केस में सीबीआई जांच पर रोक लगती है तो आरोपी पक्ष को राहत मिलना माना जाता है लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस नेता रामलाल जाट के जुड़े केस की जांच सीबीआई से नहीं कराने को लेकर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। प्रदेश में भाजपा की सरकार है और कांग्रेस नेता से जुड़े केस की जांच राज्य पुलिस से ही करवाने की बात कही गई है। भाजपा सरकार इस कांग्रेस नेता को राहत देगी, यह उम्मीद करना सही नहीं है। राज्य सरकार की मंशा से साफ जाहिर है कि रामलाल जाट को राहत मिलने वाली नहीं है।
एडीजी स्तर के अधिकारी के भाई से जुड़ा है मामला
चोरी और धोखाधड़ी के इस केस में पूर्व मंत्री रामलाल जाट के साथ राजस्थान पुलिस के एक एडीजी स्तर के अधिकारी आनंद श्रीवास्तव के भाई अरविंद श्रीवास्तव सहित कुछ अन्य लोगों के नाम भी हैं। परिवादी परमेश्वर जोशी ने हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि इस केस में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का भाई भी आरोपी है और राजनैतिक प्रभाव वाला भी है। इस वजह से राज्य पुलिस की जांच प्रभावित होने का संदेह है। ऐसे में केस की जांच सीबीआई से कराई जाए। अब सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने यह कहा है कि एडीजी स्तर के अधिकारी का जांच से कोई संबंध नहीं था क्योंकि उनकी तैनाती पूरी तरह गैर-अपराध शाखा में रही थी।
जानिए क्या है पूरा केस
यह मामला खनन से जुड़ा है। माइनिंग व्यवसायी की ओर से पूर्व मंत्री और आईपीएस के भाई सहित कुछ अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया गया था। इस केस में आरोप लगाया गया कि पूर्व मंत्री ने अपने रिश्तेदारों के नाम से पार्टनरशिप कर ली थी। पार्टनरशिप की एवज में 5 करोड़ रुपए देने का वादा किया था लेकिन पार्टनरशिप होने के बाद रुपए नहीं दिए। साथ ही माइंस से मशीनें और वाहन चुराने का आरोप भी लगाया गया है। जब यह मामला पुलिस के पास पहुंचा तो एक आरोपी ने फर्जी समझौता पत्र कोर्ट में पेश कर दिया था। इन फर्जी दस्तावेजों का खुलासा होने से पहले ही पुलिस ने मामले में एफआर लगा दी थी।