गौरव अवस्थी
रायबरेली
आज गुरु पूर्णिमा है. महान गुरु द्रोणाचार्य के नाम पर बसे हरियाणा के गुरुग्राम (पहले गुड़गांव और पहले गुरुगांव) की कथा आप सब जानते ही हैं. यह वही द्रोणाचार्य हैं, जो भगवान महर्षि परशुराम के शिष्य और महाभारत के प्रमुख पात्र कौरव पांडवों के गुरु रहे. द्रोणाचार्य को ही ऐसे गुरु का दर्जा प्राप्त है जो शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण थे. भगवान परशुराम से उन्होंने शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा ली. ब्रह्मास्त्र का प्रयोग भी सीखा. गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य ने अपना अंगूठा गुरु द्रोणाचार्य को ही अर्पित किया था. धर्मराज युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ राज्य का यह गांव गुरु को भेंट स्वरूप दिया था. तभी से इसे “गुरु” गांव के रूप में जाना-पहचाना जाता है. महाभारत कालीन वह कुआं आज भी गुरुग्राम की धरोहर है, जिसमें गिरी गेंद गुरुदेव ने अपने तीर से निकालने का चमत्कार किया था.
कभी शस्त्र-अस्त्र की शिक्षा का यह महान केंद्र अब “अर्थ” की दुनिया में महत्त्व का नाम है. अकबर की सल्तनत फिर पंजाब और अब हरियाणा का हिस्सा बनते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होते हुए गुरु का यह गांव अब देश का तीसरा सेटेलाइट नगर माना जाता है. यहां सैकड़ों बड़े कारखाने और दुनिया की तमाम आईटी कंपनियों के भारतीय मुख्यालय भी हैं. कामगारों का बड़ा केंद्र है. 150 से अधिक सेक्टर वाले गुरुग्राम की तमाम गगनचुंबी इमारतों को राष्ट्रीय मान्यता भी मिली है. यहां 1100 से अधिक गगनचुंबी आवासी इमारतें होंगी. उत्तर भारत के अचल संपत्ति बाजार का प्रमुख केंद्र है.
महाभारत कालीन गुरुग्राम महामारी की वजह से मची महाभारत से उबर नहीं पाया है. प्रोफेशनल का सबसे पसंदीदा आउटसोर्सिंग गंतव्य बन चुके गुरु के इस गांव में मुंबई और चंडीगढ़ के बाद प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है. 2100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाला गुरुग्राम कोरोना की दूसरी लहर के बाद वैसे तो फिर से चल पड़ा है लेकिन यहां हर दूसरे घर के बाहर “टु-लेट” की टगी तख्तियां बता रही है कि अभी सब कुछ सामान्य नहीं है. यहां की धरती अन्य उपजाने के लायक भले ही कभी ना रही हो लेकिन इसकी कोख धीरे धीरे किराया उगलने वाली बनती चली गई.
यहां हर घर को किराएदारी का “काम” मिला हुआ है. किराया स्थानीय लोगों की जीविका का प्रमुख साधन है. हर दूसरे घर के बाहर ” टू-लेट वन फर्निश्ड रूम फोन- 00000000″ की लटक रही तख्तियां बटोई के उन कड़े चावलों की तरह है, जिनसे हमेशा यह अंदाज लगता रहा है कि अभी चावलों का पकना बाकी है. फिर कैसे कोई कह सकता है कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद हालात सामान्य हो चुके हैं? जिंदगी अपने ढर्रे पर लौट आई है? घरों के बाहर यह तख्तियां जिस दिन आपको यह लटकती हुई ना मिले तो आप मान लीजिएगा कि अब सब सामान्य है. अन्यथा ऐसी बातों को “दावो” से ज्यादा मानने की जरूरत नहीं है.