वाराणसी। राजनीति का बड़ा दंगल बनारस में सज गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गंगा मां ने बुलाया था, अब प्रधानमंत्री कहते हैं कि उन्हें मां ने गोद ले लिया है। ऐसे में प्रधानमंत्री के समर्थक कहते हैं कि उनका वाराणसी सीट से चुनाव हारने का सवाल ही नहीं है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री को बड़े अंतर से जीत दिलाने के लिए आधे केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बनारस में डेरा डाल दिया है। उत्तर प्रदेश के बड़े भाजपा नेता भी जमे हुए हैं। दूसरी तरफ विपक्ष ने प्रधानमंत्री को चुनौती देने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय के समर्थन में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और सपा सांसद डिंपल यादव के रोड-शो के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने 28 मई को संयुक्त जनसभा को संबोधित किया। पीएल पूनिया समेत विपक्ष के तमाम नेताओं ने बनारस में डेरा डाल दिया है। विपक्ष की कोशिश है कि बनारस में प्रधानमंत्री को घेरा जाए।
संजय सिंह कहते हैं कि बनारस में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, विदेश मंत्री एस जयशंकर से लेकर तमाम नेता डटे हैं। प्रधानमंत्री के चुनाव संयोजक सुरेन्द्र नारायण ने ने पूरी ताकत लगा दी है। संजय कहते हैं कि आज प्रचार में रामायण सीरियल के राम और मेरठ से भाजपा प्रत्याशी अरुण गोविल भी प्रचार के लिए पहुंच गए हैं। उत्तर प्रदेश भाजपा के पूर्व संगठन मंत्री सुनील बंसल अपने हिसाब से प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश और देश के हर हिस्से के लोगों को ध्यान में रखकर प्रचार की योजना बनाई गई है। संजय सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री भी पूरा समय दे रहे हैं। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, भाजपा सांसद मनोज तिवारी समेत तमाम नेता प्रचार में लगे हैं। संजय कहते हैं कि जीत तो प्रधानमंत्री की पक्की है, लेकिन यह नहीं कह सकते हैं कि इस बार जीत का अंतर कितना होगा? अभय शंकर तिवारी बनारस में सामाजिक संगठन चलाते हैं। अभय का कहना है कि उत्तर प्रदेश में लखनऊ और बनारस की सीट पर भाजपा की जीत पर किसी को संदेह नहीं होगा, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री को थोड़ा मन से चुनाव लड़ना पड़ सकता है। क्योंकि बनारस का जातिगत समीकरण इस बार थोड़ा पेंचीदा हो रहा है। अभय शंकर कहते हैं कि यादव, मुस्लिम समाज पूरी तरह से एकजुट है। भूमिहार क्षत्रिय, ब्राह्मण, चौरसिया, कुर्मी, कोइरी, पटेल और बनिया का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा भी छिटक रहा है। इसके कई छोटे-छोटे कारण हैं।
रजऊ ई बनारस हवे, सब बाबा विश्वनाथ क खेला बा
विनोद कुमार दूबे को बनारस की राजनीति करते और देखते करीब 40 साल से अधिक हो गए। चर्चा में साफ कहते हैं कि रजऊ ई बनारस हवे। सब बाबा विश्वनाथ क खेला बा। 01 जून के देखल और 04 जून के समझल जाई। उम्मीदवा बटले कि सांसद मोदिए जी रहिहैं, वैइसे कुछ कहल ना जा सकेला। कमलापति जी क परिवार त राजनीतिया निबटे गईल बा। ऊहो, चुनाव हरले रहलें। बाकी त कोतवाल बाबा काल भैरव जानें। दरअसल विनोद कुमार दूबे जिस अंदाज में बोल रहे हैं, यह बनारस का फक्कड़ी अंदाज है। लेकिन कांग्रेस के पुराने नेता अजय मिश्रा की आजकल राजनीति में जरा कम दिलचस्पी है। बहुत कुरेदने पर कहते हैं कि देश का प्रधानमंत्री बनारस में हार जाएगा क्या? बनारस वाले इतने पागल तो नहीं हैं? लेकिन इस बार का चुनाव न तो 2014 है और 2019। हार-जीत का अंतर घट-बढ़ सकता है।
2014 में जमानत जब्त हुई, 2019 में तीसरे नंबर पर और इस बार देखिए कितना वोट पाते हैं अजय राय?
अजय राय सियासत के पुराने खिलाड़ी हैं। तीन बार विधायक रह चुके हैं। राजनीतिक पृष्ठभूमि भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भाजपा से शुरू हुई, लेकिन बाद में सपा और फिर कांग्रेस में आ गए। बनारस की सीट से तीन बार हार का सामना कर चुके हैं। 2014 में प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़े थे। कांग्रेस के प्रत्याशी थे और महज 75,614 वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे। दूसरे नंबर पर अरविंद केजरीवाल (2,09,238 वोट) थे। प्रधानंमत्री के खाते में 5,81,022 मत और निकतम प्रतिद्वंदी केजरीवाल से 3,71784 वोट से जीत आई थी। 2019 में यह अंतर 4,79,404 (कुल 6,74,664) वोट का था। 1,95159 वोट से सपा की शालिनी यादव दूसरे नंबर पर थीं। जबकि तीसरे नंबर पर अजय राय को 1,52,548 वोट मिले थे। बसपा ने अतहर लारी को टिकट दिया है। बनारस में मुख्तार अंसारी की जेल में मृत्यु का प्रकरण भी अल्पसंख्यकों में एक मुद्दा है। यह गाजीपुर, घोसी,सलेमपुर तक छाप छोड़ रहा है। सपा से कांग्रेस का गठबंधन है। डिंपल ने रोड-शो में तो अखिलेश ने जनसभा में समर्थन की अपील की है। इसके कारण भी अजय राय मजबूती से चुनाव लड़ते दिख रहे हैं।
क्या है बनारस का जातिगत गणित?
बनारस में करीब 19.62 लाख मतदाता हैं। मतदाताओं में पुरुष 10 लाख 65 हजार 485 हैं। महिलाएं 8 लाख 27 हजार 328 हैं। 52 हजार 157 युवा पहली बार वोट देंगे। वैसे बनारस की आबादी में सबसे अधिक 14.71 लाख के करीब हिन्दू, चार लाख के करीब मुसलमान और एक लाख के करीब अन्य धर्म के लोग हैं। दो लाख वोटर कुर्मी समाज के तो इतने ही वैश्य समाज के हैं। एक लाख से अधिक भूमिहार और तीन लाख के करीब ब्राह्मण हैं। तीन लाख के करीब ओबीसी के मतदाता हैं। दलित मतदाताओं की भी अच्छी खासी तादाद है।