गौरव अवस्थी “आशीष”
रोमानिया के युवा लेखक रिजवान निकूला से मुलाकात उनके शब्दों और कहानी के माध्यम से संभव कराई नई दिल्ली की लेखिका पंखुरी सिन्हा जी ने। एक कहानी ने उनके कई रूप भारतीयों के सामने प्रस्तुत कर दिए। उनकी साहित्यिक समझ। उनकी लेखन शक्ति। उनकी काबिलियत और तो दोस्तों के लिए देश की सरहदों को तोड़ने का हौसला।
कोरोना संकट के दौरान दूसरे कहानी संग्रह “कितना अथाह-कितना अपार” को विश्वव्यापी रूप देने में रिजवान निकूला का बड़ा योगदान रहा। इस कहानी संग्रह की 34 में सात समंदर पार की 7 कहानियां संग्रहित है। रिजवान जी ने पंखुरी जी के कहने पर अपनी कहानी “एटोपोटाटो” अंग्रेजी में अनुवाद करा कर संग्रह के लिए उपलब्ध कराई। इस शब्द का अर्थ है- “अद्वितीय”। इस कहानी का अनुवाद उड़ीसा में रह रहे दिनेश कुमार माली ने उनके भागों को शब्द-दर-शब्द आत्मसात करते हुए किया।
रिजवान निकूला की कहानी का शब्द शिल्प और शैली बेजोड़ है। रिजवान की कहानी रूबेन टाट्र नाम के किरदार पर केंद्रित है। एक लाइब्रेरी में काम करने वाले रूबेन कोरोनावायरस के अटैक से कितने व्यथित और परेशान हैं, इसका अंदाजा उनकी कहानी आपको बखूबी कराती है। हर साहित्य प्रेमी को उनकी यह कहानी जरूर पढ़नी चाहिए। खासकर कोरोना संकट को वैश्विक दृष्टि से समझने के लिए। कहानी के अंश आप भी पढ़ें-
“–जब नए वायरस के फैलने की खबर जोर पकड़ने लगी तो उसने उसे नजरअंदाज कर दिया.. सबसे पहले वह लाइब्रेरी जहां वह काम करता था बंद हो गई रोबेन के मन में विद्रोह के स्वर तेज होने लगे वह वायरस को कोसने लगा वह लाइब्रेरी बंद करने के प्रस्ताव से सहमत था उसे लाइब्रेरी की है किताब की जानकारी थी उसके पास हर किताब का हिसाब था जो उसने अपने घर में आने वाले लोगों को दी थी.. पुस्तकालय और मदिरालय में रूबेन का शासन चलता था–”
“–जूलियन हक्सले का कहना है कि उत्पत्ति के निर्णायक घटकों में जैविक कारों की तुलना में सांस्कृतिक कारण महत्वपूर्ण होते हैं..”एक शाम को उसने उसे कहा था। उसके आंहों की उपेक्षा करते हुए रोबेन ने कहना जारी रखा-“यह अभिशप्त वायरस कुछ नहीं कर पाएगा कुछ भी नहीं बदल सकेगा हम उसके साथ जीना सीख लेंगे बिना उसकी परवाह किए हुए वह हमें और नहीं डरा पाएगा–”
“–एडामा मैंने उसे कहा था कि वह और बात नहीं कर पाएगी मगर जब वह घर पर होगी तब काल करेगी। 2 घंटों की प्रतीक्षा में उसे बेचैन कर दिया था विशेषकर इस वजह से कि समय उसे कि सकता हुआ नजर आने लगा था। जब दोबारा उसकी आवाज सुनाई दी तो वह उत्तेजित हो उठा–”
“–तुमने मुझे उन लोगों से पूरी तरह पृथक बना दिया है और मैं तुम्हें दिल की गहराई से प्यार करता हूं क्योंकि जब मुझे अपनी निरक्षरता महसूस हुई तो तुमने ही मुझे डूबने से बचाया था। तुमने मुझे एटोपोटाटो (atopotatos) बना दिया है। एडामा! पुराने जमाने में यूनानी लोग अद्वितीय लोगों के लिए इस शब्द का प्रयोग करते थे। संपूर्ण मानव इतिहास में यह शब्द केवल सुकरात और ईशा के लिए प्रयुक्त होता है। और अब तुम्हें कोटि-कोटि धन्यवाद मेरे लिए। रूबेन के लिए।
मैंने समझा कि–”
कम उम्र में साहित्य पर इतनी गहरी समझ और पकड़ बनाने वाले श्री रिजवान निकूला जी को जन्मदिन की हार्दिक हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं..
भारत की ओर से..भारतीयों की ओर से..