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हरियाणा विधानसभा चुनाव : बीजेपी-कांग्रेस दोनों के लिए क्यों अहम थे

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
09/10/24
in राजनीति, राज्य
हरियाणा विधानसभा चुनाव : बीजेपी-कांग्रेस दोनों के लिए क्यों अहम थे
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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बाद दो राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों ने भाजपा को फिर से संजीवनी प्रदान की है। हरियाणा में जहां शानदार बहुमत से भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है, वहीं जम्मू-कश्मीर में भी भाजपा की सीटें बढ़ी हैं। हरियाणा में सत्ता की उम्मीद लगाए बैठी कांग्रेस को कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन के साथ मिली जीत भर से ही संतोष करना पड़ा।

कांग्रेस की अपनी चूक ले गई सत्ता से दूर

लोकसभा चुनाव में भाजपा के 240 पर अटक जाने और कांग्रेस की सीटें 99 तक पहुंचने के बाद यह माना जा रहा था कि देश की राजनीतिक हवा का रुख बदल रहा है। कांग्रेस पर जनता का भरोसा वापस लौट रहा है। राजनीतिक जानकार मान रहे थे कि यह रुझान विधानसभा चुनावों में भी दिख सकता है। इस लिहाज से हरियाणा का चुनाव अहम था। वहां 10 साल से भाजपा सत्ता में थी, उसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी थी। तभी तो भाजपा ने चुनाव से पहले अपना मुख्यमंत्री चेहरा बदला था और उसके सहयोगी जेजेपी ने उसका साथ छोड़ दिया था।

कांग्रेस के लिए जीत का मौका उपयुक्त था। फिर, लोकसभा चुनाव में भी वहां कांग्रेस ने आधी सीटें जीती थीं और उसे भाजपा से ज्यादा वोट मिले थे। लेकिन कांग्रेस की अपनी चूक उसे एक बार फिर सत्ता से दूर ले गई।

अति आत्मविश्वास बड़ी वजह

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो हरियाणा में कांग्रेस को अति आत्मविश्वास, सभी वर्गों को साथ लेकर नहीं चलना, भूपेन्द्र हुड्डा पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता ले डूबी। रही-सही कसर आप से गठबंधन नहीं होने, मुख्यमंत्री के बढ़ते दावेदारों एवं सैलजा की नाराजगी ने पूरी कर दी। कश्मीर घाटी में हालांकि नेकां-कांग्रेस गठबंधन ने अच्छा प्रदर्शन किया है और सरकार बनने पर कांग्रेस उसमें हिस्सेदार भी बनेगी लेकिन देखा जाए तो वहां सत्ता हासिल करने का श्रेय नेशनल कांफ्रेंस को ही जाता है। यह जरूर है कि नेकां के साथ गठबंधन का कांग्रेस का फैसला सही रहा।

हरियाणा के नतीजे कांग्रेस के लिए सबक

हरियाणा के चुनाव नतीजे कांग्रेस को कई सबक भी देते हैं। जैसे, अभी गठबंधन के साथ आगे बढ़ना उसके लिए ज्यादा सुरक्षित हो सकता है। चुनावी रणनीति किसी एक वर्ग के बजाय एक से अधिक वर्गों पर केंद्रित होनी चाहिए ताकि सफलता की संभावनाएं व्यापक हो सकें। साथ ही प्रादेशिक नेताओं को पार्टी पर हावी होने से भी रोकना होगा।

नतीजों का मनोवैज्ञानिक असर आगे भी राजनीतिक दलों पर होगा जिससे आगामी चुनावों की रणनीति पर भी असर पड़ेगा। अब महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव होने हैं। भाजपा इन चुनावों में भी लीक से हटकर रणनीति बनाने के लिए प्रेरित होगी और उसमें सफल होने की कोशिश भी करेगी। दूसरी तरफ इंडिया खेमे में झारखंड और महाराष्ट्र में दोनों राज्यों में हालांकि क्षेत्रीय दल ज्यादा प्रभावी हैं, इसलिए कांग्रेस के पास उनके अनुसार ही आगे बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।

भाजपा के नारे अभी भी असरदार

हरियाणा हो या कश्मीर, इन चुनावों में अकेले मैदान में उतरे या छोटे दलों के आपस में बने गठबंधन कारगर नहीं रहे। वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए। हरियाणा में जेजेपी और आजाद पार्टी, इनेलो-बसपा, उधर कश्मीर में अपने दम पर उतरी पीडीपी को निराशा हाथ लगी। यानी हार जीत दो दलों या गठबंधनों के बीच ही केंद्रित दिखी। जबकि पिछली बार हरियाणा में मुकाबला त्रिकोणीय और कश्मीर में चौकोणीय था। यह भी एक नये रुझान को दर्शाता है।

दोनों राज्यों में भाजपा के प्रदर्शन से यह भी संकेत मिलते हैं कि उसके जो मुख्य चुनाव नारे हैं जैसे हिन्दुत्व, डबल इंजन की सरकार, राष्ट्रवाद आदि, वे जनता में अभी भी असरदार हैं। साथ ही दलितों, ओबीसी के बीच भी उसकी पैठ कायम है।

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