नई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु पुलिस की उस कार्रवाई पर कड़ी टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कार्यालय से भारत माता की प्रतिमा हटा दी थी। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह यह प्रतिमा BJP को वापस लौटाए और यह कहा कि राज्य का कार्य नहीं है कि वह किसी निजी संपत्ति के अंदर होने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करे।
मदुरै बेंच के जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा, “मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि प्रशासन ने निजी संपत्ति से भारत माता की प्रतिमा को मनमाने तरीके से हटाया। संभवतः कहीं और से दबाव डाले जाने के कारण उन्होंने ऐसा किया। यह कार्रवाई पूरी तरह से निंदनीय है और भविष्य में ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। हम एक कल्याणकारी राज्य में रहते हैं, जो कानून के शासन द्वारा संचालित होता है। ऐसी किसी भी कार्रवाई को किसी भी संवैधानिक अदालत द्वारा सहन नहीं किया जा सकता है। यह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मिलने वाले अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।”
यह मामला तब शुरू हुआ जब तमिलनाडु सरकार ने 2022 में हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए BJP को एक नोटिस जारी किया था। इस आदेश में कहा गया था कि किसी भी नेता की नई प्रतिमा की स्थापना नहीं की जा सकती है। जिन प्रतिमाओं से सार्वजनिक अशांति का खतरा हो, उन्हें अन्य स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए। राज्य सरकार का कहना था कि चूंकि BJP को भेजे गए नोटिस का कोई जवाब नहीं आया। इसलिए सामाजिक शांति बनाए रखने के उद्देश्य से भारत माता की प्रतिमा को हटा लिया गया और यह प्रतिमा अब राजस्व विभाग के कार्यालय में सुरक्षित रखी गई है।
BJP ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि भारत माता की प्रतिमा भारत के प्रतीक के रूप में उनके कार्यालय में लगाई गई थी। भाजपा का आरोप है कि तमिलनाडु में सत्ताधारी DMK सरकार ने पुलिस को BJP कार्यालय में अवैध रूप से प्रवेश करने और प्रतिमा को हटाने का आदेश दिया।
भारत माता की प्रतिमा की अहमियत
कोर्ट ने इस मामले को महत्वपूर्ण करार देते हुए कहा कि यह सवाल उठता है कि निजी संपत्ति पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की सीमा क्या है। जस्टिस वेंकटेश ने कहा, “जो व्यक्ति अपनी समझ और विवेक से काम लेता है वह यह नहीं कह सकता कि अपने देश के प्रति प्यार और देशभक्ति की अभिव्यक्ति राज्य या समाज के हितों को खतरे में डाल सकती है।” उन्होंने आगे कहा, “भारत माता की प्रतिमा को किसी के बगीचे या घर में रखना एक व्यक्तिगत श्रद्धा का प्रतीक है। यह स्वतंत्रता, साहस और सांस्कृतिक पहचान के आदर्शों पर विचार करने के लिए आमंत्रित करता है।”
मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला तमिलनाडु सरकार के लिए एक बड़ा झटका है। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि राज्य का अधिकार निजी संपत्ति में हस्तक्षेप करने तक सीमित नहीं है। निजी स्थान पर किसी व्यक्ति की राष्ट्रीय पहचान और संस्कृति को सम्मानित करने के अधिकार को कोई भी सरकार नहीं छीन सकती। यह आदेश संविधानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सम्मान को बढ़ावा देता है।