नई दिल्ली। 16 जून, 2013 की रात पूरी केदारनाथ घाटी पर कहर बनकर गुजरी. पहाड़ के ऊपरी इलाके में मौजूद एक झील फटने से वहां पानी का ऐसा सैलाब आया कि कुछ ही मिनटों में सबकुछ तबाह हो गया. 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इस हादसे को 10 साल बीत चुके हैं लेकिन इसकी तबाही के निशान आज भी मौजूद हैं. ये तबाही इस बात का साफ संकेत थी कि हिमालय क्षेत्र में सबकुछ ठीक नहीं है. इसे वैज्ञानिक भाषा में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)कहा जाता है. झील फटने की घटना न तो हिमालय क्षेत्र में पहली थी और न ही इसके बाद ऐसी घटनाओं पर विराम लगा. बल्कि हिमालय घाटी में पिघलते ग्लेशियरों के कारण लगातार ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं. पिछले साल 3 अक्टूबर, 2023 की रात सिक्किम में साउथ ल्होनक लेक के फटने से हिमनद झील में भारी बाढ़ आई, जिससे चार जिले बुरी तरह तबाह हो गए. ऐसा ही हादसा 2021 में चमोली में देखा गया जहां कई लोग बेघर हो गए.
क्या होता है ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड
ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) वो स्थिति है जब ग्लेशियर पिघलने से मैदानी इलाकों में पानी का बहाव ज़्यादा हो जाता है और प्राकृतिक बांध या झील में पानी का स्तर बढ़ने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इस कारण इसकी दीवारें टूट जाती हैं और आसपास के इलाकों में जल प्रलय आ जाती है. इसे आसान शब्दों में झील का फटना भी कहते हैं जिससे झील से सटे और निचले इलाके प्रभावित होते हैं. इस दौरान पानी का बहाव इतनी तेजी से आता है कि उससे बचना नामुमकिन सा हो जाता है, जिससे ये अपने साथ सबकुछ बहाकर ले जाता है.
GLOF फिर चर्चा में क्यों हैं?
जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी तेज होती जा रही है. यही कारण है कि हाल के दिनों में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड की घटनाएं हिमालय क्षेत्र में बढ़ी हैं. साथ ही इन इलाकों में निर्माण की गतिविधि तेज होने से हालात और ज़्यादा खराब हुए हैं. 1980 के बाद से हिमालयी क्षेत्र में खासतौर पर दक्षिण पश्चिमी तिब्बत, चीन और नेपाल की सीमा के पास तेजी से ग्लेशियर पिघलने के प्रभाव देखे गए हैं. 2023 में नेचर जरनल में प्रकाशित एक रिपोर्ट – ‘एनहांस्ड ग्लेशियल लेक एक्टिविटी थ्रेटंस न्यूमेरिस कम्यूनिटी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर इन द थर्ड पोल,’ में इसका जिक्र किया गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक करीब 6353 वर्ग किलोमीटर के इलाके में GLOF का खतरा सबसे ज्यादा है. जिसके कारण करीब 55 हजार इमारतों, 105 हाइड्रो पावर प्रोजोक्ट, 5005 किलोमीटर रोड, 4038 पुल खतरे में हैं. 2023 में नेचर जरनल में ही छपी एक और रिपोर्ट भी इसी खतरे की ओर इशारा करती है. जिसके मुताबिक इस इलाके में मौजूद ग्लेशियल लेक का आकार जरूर पेसिफिक नोर्थ वेस्ट या तिब्बत के इलाके में मौजूद लेक के बराबर न हो, लेकिन यहां आबादी बहुत ज्यादा है जिसके कारण खतरा काफी बढ़ गया है.
एक्शन में सरकार
बदतर होते हालात को ध्यान में रखते हुए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथारिटी ने हिंदु कुश हिमालय रीजन में ऐसी 188 ग्लेशियर झीलों को चुना है, जिनसे भारी बारिश होने की स्थिति में आने वाले समय में खतरा बढ़ने की आशंका है. इससे करीब 1.5 करोड़ लोगों की जान को खतरा है. मालूम हो कि हिंदु कुश हिमालय का इलाका अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में 3,500 किमी (2,175 मील) तक फैला है. ये 1.5 करोड़ लोग वो हैं जो इन झीलों के निचले हिस्सों में बसे हैं और भारी जल सैलाब की वजह से इनकी जान खतरे हैं.
किन झीलों पर खतरा
इसी फेहरिस्त में गृह मंत्रालय ने उत्तराखंड की 13 झीलों का नाम भी चिन्हित किया है, जिनमें आगे चलकर खतरा पैदा हो सकता है. गृह मंत्रालय ने इन झीलों को असुरक्षित होने के आधार पर तीन अलग-अलग कैटेगरी में बांटा है. गृह मंत्रालय द्वारा उत्तराखंड में चिन्हित की गई इन 13 झीलों में से 5 झीलें A कैटेगरी में रखी गई हैं, जिन पर सबसे ज्यादा खतरा है. इसके बाद थोड़ा कम जोखिम वाली B कैटेगरी में 4 झीलें और C कैटेगरी में भी 4 झीलें चिन्हित की गई हैं.
A-कैटेगरी की 5 झीलों में से चमोली जिले में एक और पिथौरागढ़ जिले में चार झीलें हैं. B कैटेगरी में 4 झीलों में से 1 चमोली में, 1 टिहरी में और 2 झीलें पिथौरागढ़ में मौजूद हैं. इसके बाद की C कैटेगरी की 4 झीलें उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी में मौजूद हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि 2 झील सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. इनमें पहली वसुंधरा ताल और दूसरी भीलांगना है. इन झीलों का फैलाव तेजी से बढ़ रहा है जो भविष्य में केदारनाथ जैसी आपदा ला सकता है.