Ramesh Bhushal
अप्रैल, 2022 की एक खूबसूरत सुबह थी। माउंट एवरेस्ट को उत्तर-पूर्वी नेपाल के नामचे में सागरमाथा (एवरेस्ट) राष्ट्रीय उद्यान कार्यालय से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। बादल की एक पतली परत बनाने के लिए इसके चोटी की बर्फ भाप बन रही थी। पार्क के असिस्टेंट कंजर्वेशन ऑफिसर बिष्णु रोकाया के पास इस खूबसूरती को देखने के लिए बहुत कम वक्त था। दरअसल, वह नवीन वार्षिक रिपोर्ट के पन्नों में उलझे हुए थे।
रिपोर्ट में एक जगह वह इशारा करते हैं, जिसमें कहा गया है, “2020 के मध्य से 2021 के मध्य तक, 300 से अधिक पशुधन पार्क और उसके बफर जोन क्षेत्रों में जंगली जानवरों द्वारा मारे गए। उनके नुकसान के मुआवजे के रूप में हमने 90 लाख रुपये से अधिक (85,000 डॉलर) का भुगतान किया।”
हिमालयी भेड़िये, ऐसे जंगली जानवर में से प्रमुख हैं, जिन पर नेपाल में सबसे कम अध्ययन है। इस समस्या में सबसे बड़ी भूमिका इनकी ही है।
रिपोर्ट के अनुसार, मारे गए 323 पशुओं में से 234, यानी 70 फीसदी से अधिक, हिमालयी भेड़ियों द्वारा मारे गए। इनको स्थानीय रूप से बवाशो के नाम से जाना जाता है। चिंताजनक बात यह है कि यह संख्या साल-दर-साल बढ़ रही है। रोकाया कहते हैं, “हम हताहतों की संख्या में वृद्धि का सही कारण नहीं जानते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में यह, हमारे और समुदायों के लिए एक बहुत ही गंभीर मुद्दा बन गया है।”
हिमालयी भेड़िया, जिसे तिब्बती भेड़िया भी कहा जाता है, की आबादी, सटे हुए तिब्बत में हजारों में है, लेकिन नेपाल में इनकी संख्या अज्ञात है। हिमालयन वुल्फ प्रोजेक्ट के कंट्री प्रोग्राम डायरेक्टर नरेश कुसी कहते हैं, “उच्च पहाड़ों में हिम तेंदुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसके कारण भेड़ियों पर नगण्य ध्यान दिया गया है, लेकिन दोनों ही इस क्षेत्र के शीर्ष शिकारी हैं।” नरेश कुसी पिछले कुछ वर्षों से भेड़ियों पर शोध कर रहे हैं।
हिमालयी भेड़िये की वैज्ञानिक स्थिति स्पष्ट नहीं है। हालांकि शोध से पता चला है कि यह अन्य यूरेशियन भेड़ियों से आनुवंशिक रूप से अलग है। हिमालयन वुल्फ प्रोजेक्ट के निदेशक गेराल्डिन वेरहान के नेतृत्व में एशियाई भेड़ियों पर हाल ही में एक वैज्ञानिक समीक्षा में कहा गया है,”एशिया से भेड़ियों पर अध्ययन [अन्य भेड़ियों की तुलना में] कम है और विभिन्न एशियाई भेड़ियों की आबादी का वर्गीकरण स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं है।” समीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि हिमालयी भेड़िया, साथ ही भारतीय भेड़िया, उप-प्रजातियों या प्रजातियों के स्तर पर अलग माने जाने के लिए पर्याप्त रूप से अलग हैं।
हिमालयन वुल्फ प्रोजेक्ट के नरेश कुसी कहते हैं, “हमारे शोध से पता चलता है कि हिमालयी भेड़िये आनुवंशिक रूप से अलग हैं और उच्च ऊंचाई पर कम ऑक्सीजन के स्तर के लिए खुद को अनुकूलित करते हैं और उप-प्रजाति बनने के योग्य हैं।” वह यह भी कहते हैं कि इसका स्टेटस अभी द् इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा समीक्षा के अधीन है। इस बीच, नेपाली कानून अभी भी अपनी भेड़ियों की आबादी को ग्रे वुल्फ के रूप में, राष्ट्रीय स्तर पर लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध करता है।
क्या याक्स का पीेछे-पीछे नेपाल में आ गये हिमालयी भेड़िये?
नेपाल के पहाड़ों में हिमालयी भेड़ियों की वर्तमान उपस्थिति संदेह से परे है, लेकिन कितने समय से इनकी आबादी यहां मौजूद है, इसको लेकर विवाद है।
कुसी कहते हैं, “भेड़िये यहां सदियों से थे, लेकिन उन्होंने स्थायी रूप से [नेपाल के क्षेत्र] उपनिवेश नहीं बनाए थे क्योंकि उनकी बड़ी आबादी तिब्बत में सीमा पार है, जहां नेपाल के पहाड़ों की तुलना में प्रचुर मात्रा में शिकार लायक प्रजातियां मौजूद हैं। उन अस्थायी आबादी के भेड़ियों को अक्सर चरवाहे प्रतिशोध में मार देते थे जिस पर पार्क के अधिकारियों की ध्यान नहीं जाता था क्योंकि क्योंकि आबादी छोटी थी।”
स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि भेड़िये लंबे समय से इस क्षेत्र में मौजूद हैं, हाल ही में चरवाहों द्वारा कभी-कभार जवाबी हत्याओं के अलावा कोई गंभीर संघर्ष नहीं हुआ था। 1983 में राष्ट्रीय उद्यान के पहले चीफ कंजर्वेशन ऑफिसर के रूप में काम करने वाले लखपा नोरबू शेरपा कहते हैं, “जब मैं बच्चा था, तब हमारे पास एवरेस्ट क्षेत्र में भेड़िये थे। साल 1976 में पार्क की स्थापना से पहले भी भेड़िये थे, लेकिन 2015 के बाद पशुओं की हत्या में तेजी से वृद्धि की शिकायतें काफी बढ़ गईं।”
कई स्थानीय लोगों का मानना है कि भेड़ियों की संख्या में स्पष्ट वृद्धि 2014 में तिब्बत से याक के आयात से जुड़ी हुई है। उस वर्ष, 30 याक को तिब्बत से नंगपा ला पास – एवरेस्ट के उत्तर-पश्चिम में – स्यांगबोचे याक ब्रीडिंग सेंटर में स्थानीय याक आबादी की आनुवंशिक गुणवत्ता में सुधार और क्रॉस-ब्रीड के लिए लाया गया था। 25 की एक टीम को तिब्बत में उस स्थान तक पहुंचने में 16 दिन लगे जहां चीनी सरकार ने याक को पहुंचाया था। यह मोटी बर्फ के बीच पैदल यात्रा थी। जानवरों के साथ वापसी की यात्रा में सात दिन और लगे। याक ब्रीडिंग सेंटर के तकनीशियन ललन यादव कहते हैं, “मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि हम उस यात्रा से कैसे बचे।”
तिब्बती याक के आने के कुछ साल बाद, स्थानीय लोगों ने भेड़ियों के याक्स और अन्य पशुओं पर हमले करने की शिकायत करना शुरू कर दिया। ललन कहते हैं, “स्थानीय लोगों का कहना है कि तिब्बती भेड़ियों का एक झुंड उन याक्स के पीछे-पीछे आया और फिर स्थायी रूप से यहां रहने लगा। मेरा भी मानना है कि यह संभवतः सच है।”
पेमा शेरिंग शेरपा, स्यांगबोचे प्रजनन केंद्र से थोड़ी ऊपर की ओर, खुमजंग गांव के निवासी हैं। उनका मानना है कि याक्स, हिमालयी भेड़ियों को इस क्षेत्र में लाए थे। शेरपा कहते हैं, “2015 के बाद पशुओं की हत्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है। यह तिब्बत से याक्स के आगमन के साथ मेल खाता है, इसलिए इसका कारण यही होना चाहिए।”
शोधकर्ता तिब्बत से याक्स के पीछे भेड़ियों के झुंड के आने की संभावना से इनकार नहीं करते हैं, लेकिन कुसी कहते हैं, “इसे वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ मानने की आवश्यकता है, जो हमारे पास नहीं है। कम से कम अभी के लिए तो नहीं ही है।”
मानव-भेड़िया संघर्ष बढ़ रहा है, लेकिन जानकारी का अभाव है
2013 में, नेपाल ने आठ प्रकार के जंगली जानवरों- हाथी, गैंडे, भालू, बाघ, तेंदुए, हिम तेंदुआ, जंगली सूअर और जंगली भैंसों- के कारण होने वाले किसी भी नुकसान या चोट के लिए समुदायों को क्षतिपूर्ति करने के लिए अपना पहला दिशानिर्देश पेश किया था।
2015 में सरकार ने हिमालयी भेड़ियों, क्लाउडेड लेपर्ड और जंगली कुत्तों को सूची में जोड़ने का फैसला किया।
राष्ट्रीय उद्यान में 2015 में चीफ कंजर्वेशन ऑफिसर रह चुके और राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव संरक्षण विभाग के एक पारिस्थितिकी विद्, गणेश पंत कहते हैं,”हमें स्थानीय लोगों से शिकायतें मिलने लगी थी कि भेड़िये इस क्षेत्र में याक्स और घोड़ों को मार रहे हैं, लेकिन उनके पास क्षतिपूर्ति करने का कोई रास्ता नहीं था।”
वह कहते हैं, “इसलिए हमने सूची में भेड़िये को शामिल करने की सिफारिश की, जिसने हमें पशुओं के किसी भी नुकसान के लिए 30,000 नेपाली रुपये [240 डॉलर] के भुगतान की अनुमति दी।”
समस्या लगातार बढ़ती जा रही थी, लेकिन मारे गए पशुओं की संख्या के बहुत कम आधिकारिक दस्तावेजों के साथ; 2018 के मध्य से पहले, भेड़ियों से पशुओं के नुकसान के लिए, भुगतान किए गए मुआवजे के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। बहरहाल, एक बार पशुओं के नुकसान का मुआवजा, आधिकारिक नीति बन जाने के बाद, पार्क ने स्थिति को समझने के लिए अधिक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना शुरू कर दिया।
नामचे में पार्क के कार्यालय में, 2017 में, माउंट एवरेस्ट के पश्चिम में, नगम्पा घाटी से पार्क अधिकारियों और स्थानीय चरवाहों के बीच एक बैठक आयोजित की गई थी। इसमें पूर्व चीफ कंजर्वेशन ऑफिसर लखपा नोरबू शेरपा ने भाग लिया और www.thethirdpole.net को बताया कि कैसे एक स्थानीय चरवाहे ने अपना दर्द बयां किया। शेरपा याद कहते हैं, “[उसने कहा] यदि आप भेड़ियों को नहीं मारना चाहते हैं, तो आप हमें [भी] मार सकते हैं। पार्क के एक पूर्व वॉर्डन और अब नगम्पा घाटी के एक बुजुर्ग के रूप में, मैंने खुद को बेहद असहज स्थिति में पाया।”
जब इस क्षेत्र में संघर्ष के अधिक मामले सामने आए, तब लखपा शेरपा और उनकी टीम ने 2019 की गर्मियों में चार महीनों नगम्पा घाटी में शिकारियों का एक सर्वेक्षण किया। वह जंगलों में हिमालयी भेड़ियों की तस्वीरें लेने में सफल हुए। एक तेंदुआ, एक हिम तेंदुआ, लाल लोमड़ियों और भूरे भालू के पंजों के निशान के ठोस फोटोग्राफिक साक्ष्य के साथ यह एक दुर्लभ उपलब्धि थी।
अनुसंधान के बिना संघर्ष का समाधान कठिन है
मध्य नेपाल के 2019 के एक अध्ययन में पाया गया कि अध्ययन क्षेत्रों में याक्स और बकरियों की प्रचुरता के बावजूद हिमालयी भेड़ियों ने, गर्मियों के दौरान जंगली शिकार को पसंद किया। हालांकि, कुसी का सुझाव है कि पूर्वी नेपाल में एवरेस्ट के आसपास स्थिति अलग हो सकती है। वह कहते हैं, “ऐसा लगता है कि वे अब एवरेस्ट क्षेत्र में स्थानीय रूप से अनुकूलित हो गए हैं और संख्या में भी वृद्धि हुई है। संभवत: इस क्षेत्र में अपर्याप्त जंगली शिकार के कारण, उन्होंने पशुओं को अधिक मारना शुरू कर दिया होगा।”
एवरेस्ट क्षेत्र में बड़ी संख्या में पशुओं के मारे जाने का एक अन्य कारण अधिशेष हत्या हो सकता है, जब भेड़िये काफी जानवरों को या जानवरों के एक समूह को मार डालते हैं, भले ही यह मात्रा उनकी खाने की जरूरत से अधिक हो।
कुसी कहते हैं, “हम ठीक से नहीं जानते कि वे ऐसा क्यों करते हैं, लेकिन अगर हम अनुसंधान पर अधिक निवेश करते हैं और उनके व्यवहार को समझते हैं, तो हम ऐसी स्थिति से बच सकते हैं और यदि चरवाहों को भेड़ियों के बारे में विश्वसनीय जानकारी दी जाए तो संघर्ष को कम किया जा सकता है और टाला भी जा सकता है।”
लेकिन पार्क के अधिकारियों का कहना है कि उनके पास इस तरह के शोध के लिए संसाधन नहीं हैं। पार्क के चीफ कंजर्वेशन ऑफिसर भूमि राज उपाध्याय ने कहा, “हमारे पास बहुत सीमित बजट है, इसलिए हमारे पास हिमालयी भेड़ियों के बारे में और अधिक समझ के लिए डोनर्स और अनुसंधान में मदद करने वाले संगठनों से सहयोग लेने की योजना है जो संघर्ष को कम करने की बेहतर योजना में हमारी मदद कर सकती है।”
साभार: https://www.thethirdpole.net