दमोह l बीजेपी हर चुनाव को पूरी ताकत के साथ लड़ती है। दमोह विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी ने अपनी पूरी फौज उतार थी। एक सीट के उपचुनाव के लिए शिवराज कैबिनेट के आधे से ज्यादा मंत्री मैदान में थे। संगठन सूरमा टाइप नेता भी वहां कैंप कर रहे थे। दूसरे क्षेत्रों से करीब 50 विधायकों ने दमोह की जंग को जीतने के लिए कैंप किया। मगर बीजेपी की चार गलतियां उसके बड़े-बड़े सुरमाओं पर भारी पड़ गई है। रविवार की रात जब परिणाम सामने आए तो बीजेपी की करारी हार हुई है।
करारी हार के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा है कि हम इसके कारणों की समीक्षा करेंगे। वहीं, प्रत्याशी राहुल लोधी ने कहा कि हम भीतरघात की वजह से चुनाव हारे हैं। उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता जयंत मलैया को जिम्मेदारी ठहराया है। वहीं, स्थानीय जानकार इस हार की वजह से कुछ और बता रहे हैं। बीजेपी स्थानीय लेवल पर जनता की मूड को भांप नहीं पाई है। आइए हम आपको कुछ प्रमुख कारण बता रहे हैं, जिसकी वजह से बीजेपी के हाथ से दमोह सीट फिसल गई है।
अति प्रचार भी बीजेपी को पड़ महंगा
बीजेपी ने दमोह जितने के लिए अति प्रचार किया है। दमोह में जीत पक्की करने के लिए बीजेपी ने मंत्री भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव को चुनाव प्रभारी बनाया। दोनों सागर जिले से आते हैं। इसके साथ ही संगठन ने भी अपनी पूरी ताकत यहां झोंक दी। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा खुद अपने लोगों के साथ कैंप किए रहे। एमपी बीजेपी के प्रभारी मुरलीधर राव भी दमोह में दो दिनों तक कैंप किए थे। इसके अलावे सह संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा और आशुतोष तिवारी समेत तीन और संगठन मंत्रियों को वहां लगाया गया।
वहीं, सीएम शिवराज सिंह, पूर्व सीएम, 20 कैबिनेट मंत्री और 50 विधायकों ने भी दमोह उपचुनाव में मोर्चा संभाला था। इसके साथ ही चुनाव प्रभारी मंत्री अपने जिले सागर में बैठकर ही यहां का काम देखते रहे। साथ ही बीजेपी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी यह चुनाव प्रचार किया था। जानकार मानते हैं कि यहीं अति प्रचार बीजेपी के लिए भारी पड़ गया है।
स्थानीय नेताओं की हुई अनदेखी
सियासी जानकारी बताते हैं कि दमोह में बीजेपी के बाहरी नेताओं की भीड़ इतनी जमा हो गई थी। स्थानीय नेता खुद को उपेक्षित महसूस करने लगे थे। उन्हें लगने लगा था कि हमारी पूछ नहीं हो रही है। वहीं, उम्मीदवार राहुल लोधी भी पहले कांग्रेस में थे। ऐसे में स्थानीय नेताओं का अपेक्षित सहयोग उन्हें नहीं मिल पाया। पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया के समर्थक पहले से ही उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे।
मलैया परिवार को नहीं साध पाई बीजेपी
पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया दमोह से छह बार विधायक रहे हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए थे। राहुल लोधी की एंट्री से वह नाराज थे। उपचुनाव से पहले उनके समर्थक उनके लिए टिकट की मांग कर रहे थे। साथ ही मलैया खुद भी मैदान में उतरने की बात कर रहे थे। शिवराज समेत दूसरे नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की। नतीजों के बाद उनके प्रभुत्व वाले सभी वार्डों में बीजेपी हार गई। इससे साफ है कि मलैया परिवार ने बीजेपी उम्मीदवार का साथ नहीं दिया। साथ ही कुर्मी समाज की नाराजगी का खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ा है।
खबर इनपुट एजेंसी से