मनोज रौतेला की रिपोर्ट :
अल्मोड़ा/देहरादून : उत्तराखण्ड का फल ‘हिसाव’ या ‘हिसालू।‘ अंग्रेजी में इसे रसबेर्री भी कह देते हैं । उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र में पाया जाने वाला यह जंगली फल। उत्तराखण्ड के कुमाऊं और गढ़वाल में इसे हिसाव या हिसालु के नाम से जाना जाता है। गमी के मौसम में लगभग दो महीने यह प्रचुर मात्रा में लोगों को आकर्षित करता है। खुद उगता है। कोई उगाता नहीं है इसके पौधे को।
आप उत्तराखंड में घूम रहे हों तो आपको यह सड़क किनारे, खेतों के किनारे, जंगलों में, छोटे बड़े गाड़ घडेरों (बरसाती नाले-नदियों) के किनारे आपको मिल जाएगा। देशी बेर की तरह झाड़ी फैलती है इसकी। लेकिन बेर की तरह मजबूत तना नहीं रहता है तना इसका कच्चा होता है। कांटे से होते हैं इसमें भी। खूबी इसकी छोटी-छोटी झाड़ी बनती है आसानी से हिसाव को कोई भी तोड़ सकता है। रंग इसका पके संतरे जैसा होता है। इसको देख कर खुद कोई भी हिसाव तोड़ने लपक पड़ता है इसकी झाडी की तरफ। लेकिन कोई मालिक नहीं इसका। न आम लोग, न ही सरकार। कोई नहीं।
कब और कहाँ मिलता है-
लगभग दो महीने पकता है लोगों को खुश कर फिर ख़त्म हो जाता है यह फल । लोग इसके बाद इसकी झाड़ी तक नहीं छोड़ते हैं । हर कोई या तो काट देता है या फिर जड़ से उखाड़ कर नष्ट करने लगता है। क्योँकि उनके खेत में झाडी न बन जाए, सांप कीड़े का ख़तरा रहता है जिस रास्ते किनारे झाड़ी है ।पहाड़ी क्षेत्रों में, मुख्य रूप से कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में जैसे अल्मोड़ा, चमोली, पौड़ी, नैनीताल, बागेश्वर, चम्पावत और पिथौरागढ़ आदि क्षेत्र में पाया जाता है
औषधि से भरपूर है हिसाव-
हिसाव/हिसालू एक फल, एक ऐसा औषधि जो सैकड़ों बीमारियों से बचने का है अचूक उपाय। हिसाव/ हिसालू, उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में अनेक प्रकार के औषधि पाई जाती हैं, जिसमें से एक रसबेर्री यानी कि हिसाव/ हिसालू हिमालय रसबेर्री भी है जो फल के साथ साथ एक महत्वपूर्ण औषधि भी है। हिसाव/ हिसालू उत्तराखंड का एक ऐसा अद्वितीय और बहुत स्वादिष्ट फल है जो पहाड़ी क्षेत्रों में, मुख्य रूप से अल्मोड़ा, चमोली, पौड़ी, नैनीताल, बागेश्वर, चम्पावत और पिथौरागढ़ के अनेक स्थानों में पाया जाता है। यो कांटेदार छोटी-छोटी झाड़ियों वाला होता है, जो मध्य हिमालय में अधिक मात्रा में पाया जाता है।
इस तरह की बीमारी में फायदेमंद है : मई-जून के महीने में पहाड़ की रूखी-सूखी धरती पर छोटी झाड़ियों में उगने वाला एक जंगली रसदार फल, Rubus ellipticus नाम से जाना जाता है, जो एक Rosaceae कुल की झाडीनुमा वनस्पति है। हिसाव/हिसालू फलों में प्रचुर मात्र में एंटी ऑक्सीडेंट की अधिक मात्रा होने की वजह से ये शरीर के लिए काफी गुणकारी माना जाता है। हिसालू की ताजी जड़ के रस का प्रयोग करने से पेट सम्बंधित बीमारियों दूर हो जाती हैं और इसकी पत्तियों की ताजी कोपलों को ब्राह्मी की पत्तियों और दूर्वा (Cynodon Dactylon) के साथ मिलाकर स्वरस निकालकर पेप्टिक अल्सर की चिकित्सा की जाती है। इसके फलों से प्राप्त रस का प्रयोग बुखार, पेट दर्द, खांसी औऱ गले के दर्द में बड़ा ही फायदेमंद होता है। इसकी छाल का प्रयोग तिब्बती चिकित्सा पद्धति में भी सुगन्धित और कामोत्तेजक प्रभाव के लिए किया जाता है। इस फल के नियमित उपयोग से किडनी-टोनिक के रूप में भी किया जाता है और साथ ही साथ नाडी-दौर्बल्य, अत्यधिक है। मूत्र आना (पोली-यूरिया), यानी-स्राव, शुक्र-क्षय और शय्या-मूत्र (बच्चों द्वारा बिस्तर गीला करना) आदि की चिकित्सा में भी किया जाता है। हिसालू जैसी वनस्पति को सरंक्षित किए जाने की आवश्यकता को देखते हुए इसे आईयूसीएन द्वारा वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पेसीज की लिस्ट में शामिल किया गया है और इसके फलों से प्राप्त एक्सट्रेक्ट में एंटी-डायबेटिक प्रभाव भी देखे गए हैं।
हिसाव/हिसालु के प्रकार :
हिसाव/ हिसालू के दो प्रकार पाए जाते हैं, एक पीला रंग का होता है पके हुए संतरे की तरह और दूसरा काला रंग होता है। पीले रंग का हिसालू आम है, जगह-जगह मिल जायेगा आपको। लेकिन काले रंग का हिसालू इतना आम नहीं है। हिसालू में खट्टा और मीठा स्वाद होता है। एक अच्छी तरह से पके हुए हिसालू को अधिक मीठा और कम खट्टा स्वाद मिलता है। ये फल इतना कोमल होता है कि हाथ में पकड़ते ही टूट जाता है। जीभ पर रखो तो पिघलने लगता है। इस फल को ज्यादा समय तक संभाल के नहीं रखा जा सकता है, क्योकि इसको तोड़ने के 1-2 घंटे बाद ही खराब हो जाता है। इसलिए हिसाव लगे नहीं तो उसी दिन खा डालो। नहीं तो शाम तक नीचे गिर जाएंगे नहीं तो चिड़या भी खा लेती हैं।
संरक्षित किये जाने की जरूरत है हिसाव को-इस फल का कोई मालिक नहीं है। न ही आम आदमी न सरकार। हालाँकि हिसाव जैसी वनस्पति को सरंक्षित किए जाने की आवश्यकता को देखते हुए इसे IUCN द्वारा वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पेसीज की लिस्ट में शामिल किया गया है। लेकिन लिस्ट में शामिल कर दिया गया शब्दों में। ग्राउंड लेवल में कोई गतिबिधि नहीं दिखती न कभी दिखी।
सरकारें आयी-गई हिसाव खाये, लेकिन किया कुछ नहीं-
उत्तराखण्ड 20 साल का युवा राज्य है । इस दौरान सरकारें आयी और गयी लेकिन सरकारों ने हिसाव खाये, लेकिन किया कुछ नहीं। फल की तारीफ की बंद कमरों में, चर्चा की, हुआ कुछ नहीं। इसको ग्राम पंचायत से जोड़ने की जरुरत है, ताकि इसका उत्पादन किया जा सके और गाँव में ही लोगों को इसका फायदा हो जिनके माध्यम से यह दवाई के रूप में और फल के रूप में जितना भी पहुंचे लेकिन पहुंचे बाहरी बाजारों में. उत्तराखण्ड के बाहर के लोगों को न के बराबर इसके बारे में पता है क्योँकि उन तक पहुँच नहीं पाता दूसरा सरकार की तरफ से कोई प्रचार प्रसार कोई योजना नहीं है। जब लगाया जाएगा तो कितना उत्पादन हो जाएगा। मेहनत कुछ खास नहीं करनी पड़ . दो महीने के लिए “हिसाव खाने आओ कैम्पेन’ चलाने की जरुरत है। उससे पहले इसको जंगल से घर लाने की जरुरत है। इसका प्लांट लगाने, बाग़ लगाने की जरुरत है, ताकि आगे उत्पादन किया जा सके. पर्यटक भी आयेगा और आम-जन के साथ राज्य सरकार को भी फायदा होगा। राज्य को रेवन्यू मिलेगा, आखिर बून्द-बून्द से सागर भरता है। लेकिन करे तो कोई।हिसाव/ हिसालू ऐसा फल है जिसे लगाने की जरुरत नहीं है अपने आप उगता है।