शारदीय नवरात्रि की देशभर में धूम मची हुई है, बंगाल से लेकर गुजरात तक लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिरों के बाहर देखी जा सकती है. ऐसे ही भक्तों से उत्तर प्रदेश के कानपुर का मां तपेश्वरी का मंदिर भी भरा हुआ है, जहां पर मात्र अखंड ज्योत जलाकर मनोकामना मानने पर फलीभूत होती है. भक्तों के मुताबिक कानपुर के इस मंदिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है. इस मंदिर में दूर-दूर से लोग मुंडन संस्कार कराने आते हैं.
मां तपेश्वरी मंदिर में कानपुर और आसपास के क्षेत्रों के लोगों की अटूट श्रद्धा है, मंदिर के बारे में लोग कहते हैं कि, मां सीता पर अयोध्या में उठ रहे सवालों के बाद जब भगवान श्रीराम ने मां का त्याग किया था तो वह काफी दिनों तक मां बिठूर के आश्रम में रहीं थीं. जहां लव और कुश का जन्म हुआ .उसके बाद मां सीता ने लव-कुश का मुंडन संस्कार यहीं पर कराया था.
त्रेता युग से जुड़ा मंदिर का इतिहास
सैकड़ों साल पुराने इस ऐतिहासिक मां तपेश्वरी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि त्रेता युग में मां तपेश्वरी देवी प्रकट हुईं थीं. इस मंदिर की मान्यता मां के शक्तिपीठों से है. मान्यता ये भी है कि यहां पर मां के सामने शीश झुकाने और अखंड ज्योत जलाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. नवरात्रि के मौके पर मां तपेश्वरी मंदिर की गलियों में मां के जयकारों की गूंज के साथ भक्तों की असीम आस्था दिखाई पड़ती है. इस दौरान मंदिर में बहुतायत मात्रा में लोग मुंडन संस्कार कराते हुए भी नजर आते हैं. कानपुर के बिरहाना रोड स्थित पटकापुर की तंग गलियों में मां के मंदिर की अनूठी छटा देखने को मिलती है.
मां तपेश्वरी हुईं थीं प्रकट
मां तपेश्वरी का ये मंदिर उत्तर प्रदेश के आर्थिक नगरी कानपुर में मौजूद है. ऐतिहासिक मंदिर में अखंड ज्योति और मां के दर्शन करने से भक्तों के मनोकामना पूरी होती है. भक्त कहते हैं कि मां तपेश्वरी मां सीता के तप के बाद प्रकट हुईं और उन्हें मंदिर में एक पिंडी के रूप में स्थापित किया गया था. कहा जाता है कि लव-कुश का अन्नप्राशन संस्कार मां सीता ने इसी मंदिर में कराया था. जब ये बात भक्तों को पता चली तब से मां के भक्त अपने बच्चों का भी मुंडन संस्कार मंदिर के प्रांगण में ही कराने आते हैं.