माले: भारत-मालदीव संबंध इस समय सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। भारत विरोध का नारा बुलंद करने वाले मोहम्मद मुइज्जू मालदीव के राष्ट्रपति बन चुके हैं। उनकी विदेश नीति के केंद्र में चीन है। चीन से लौटने के बाद उन्होंने भारत के खिलाफ एक से बढ़कर एक फैसले लिए हैं। इन फैसलों की कीमत भले ही मालदीव की जनता चुकाएगी, लेकिन मुइज्जू को भारत विरोध के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा। हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत को इस स्थिति के बारे में पहले से अंदाजा नहीं था।
जब मुइज्जू ने नवंबर 2023 में राष्ट्रपति चुनाव जीता, तभी यह निश्चित हो गया था कि उनकी विदेश नीति एंटी इंडिया रहने वाली है। पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद उन्होंने भारत से अपने 75 सैन्यकर्मियों की टुकड़ी को वापस बुलाने के लिए कहा। ये सैनिक मालदीव की ही सहायता कर रहे हैं। मुइज्जू की सरकार ने उस समझौते को रिन्यू करने से भी इनकार कर दिया है जिसके तहत भारत देश के ईईजेड का हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने में सहायता कर रहा था।
भारत के साथ दुश्मनी का मालदीव पर होगा असर
भारत के पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में मानद फेलो श्याम शरण ने द हिंदुस्तान टाइम्स में लिखा कि मुइज्जू 8 जनवरी को चीन की आधिकारिक चार दिवसीय यात्रा पर रवाना हुए। मुइज्जू के मालदीव से रवाना होने के एक दिन पहले ही उनकी कैबिनेट के तीन उप मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीयों के बारे में अत्याधिक अपमानजनक टिप्पणी कर दी। उनकी टिप्पणियां सोशल मीडिया पर पीएम मोदी की लक्षद्वीप द्वीपों की हालिया यात्रा की तस्वीरों की प्रतिक्रिया में थी। कुछ लोगों का तर्क था कि ये द्वीप मालदीव की तुलना में और भी अधिक आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में उभर सकते हैं। इसके बाद सोशल मीडिया पर मालदीव के बायकॉट करने का अभियान चलने लगा। मालदीव जाने की योजना बना रहे अधिकांश भारतीय पर्यटकों ने अपनी होटल बुकिंग और फ्लाइट को कैंसल कर दिया। इसका सीधा असर मालदीव के पर्यटन उद्योग पर पड़ा है। क्योंकि, पिछले कुछ वर्षों से मालदीव के पर्यटकों में भारत की हिस्सेदारी सबसे अधिक है।
मुइज्जू की चीन यात्रा के दौरान क्या हुआ
मुइज्जू की चीन यात्रा के दौरान दोनों देशों ने एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी की। इसमें दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी की घोषणा की गई। यह बयान तीन प्रमुख चीनी पहलों – वैश्विक सभ्यता पहल, वैश्विक सुरक्षा पहल और वैश्विक विकास पहल (जीडीआई) में मालदीव की इच्छुक भागीदारी को भी दर्शाता है। मालदीव “ग्रुप ऑफ फ्रेंड्स ऑफ द जीडीआई” में शामिल हो गया है। मालदीव ने चीनी बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) के तहत परियोजनाओं का स्वागत किया है। चीन ने भी मालदीव की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता पर समर्थन किया है और उसके घरेलू मामलों में किसी भी बाहरी हस्तक्षेप का विरोध है। स्वभाविक है कि चीन का लक्ष्य भारत है।
मालदीव-चीन किन मुद्दों पर सहमत नहीं
श्याम शरण ने बताया कि चीन और मालदीव के संयुक्त वक्तव्य में दो महत्वपूर्ण चूक हैं। पहला, 2017 में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की बीजिंग यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच संपन्न विवादास्पद मुक्त व्यापार समझौते के कार्यान्वयन का कोई संदर्भ नहीं है। तब से यह ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। माले में चीनी राजदूत इसको लागू करने पर लगातार जोर दे रहे हैं। दूसरा, मालदीव और चीन के ज्वाइंट ऑब्जरवेशन स्टेशन प्रोजेक्ट का भी उल्लेख नहीं किया गया है, जो दोनों देशों को हिंद महासागर के इस हिस्से में समुद्री यातायात की निगरानी के लिए एक सुविधाजनक स्थान प्रदान करती। ये दो ऐसे मुद्दे हैं, जिनपर चीन और मालदीव के बीच कभी भी सहमति बन सकती है। ऐसे में भारत को इन घटनाक्रमों पर सतर्क नजर रखनी होगी।
मालदीव ने भारत को दिया फिर झटका
उन्होंने कहा कि 7 दिसंबर, 2023 को मॉरीशस में आयोजित कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव से मालदीव की अनुपस्थिति एक झटका है। भारत ने 2011 में श्रीलंका और मालदीव के साथ एक त्रिपक्षीय मैरीटाइम सिक्योरिटी प्लेटफॉर्म की शुरुआत की। इस प्लेटफॉर्म ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के नेतृत्व में इन देशों के बीच समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी, साइबर सिक्योरिटी, मानव तस्करी और तस्करी जैसे एजेंडे पर सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2020 में, समूह में मॉरीशस के प्रवेश के साथ, फोरम ने कोलंबो में अपने सचिवालय का शुभारंभ किया। हाल की मॉरीशस बैठक में सेशेल्स और बांग्लादेश पर्यवेक्षक के रूप में शामिल हुए लेकिन बाद में पूर्ण सदस्य बन सकते हैं। जाहिर तौर पर चीन से प्रशंसा हासिल करने के लिए मालदीव की अनुपस्थिति एक झटका है।
भारत को क्या करना चाहिए
श्याम शरण ने कहा कि भारत को विदेश नीति सोशल मीडिया के जवाब में नहीं चलनी चाहिए। हमें इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि आपत्तिजनक ट्वीट के लिए जिम्मेदार तीन मंत्रियों को निलंबित कर दिया गया है और मालदीव सरकार ने अपने मंत्रियों के कार्यों की स्पष्ट रूप से निंदा की है, हालांकि उसने आधिकारिक माफी नहीं मांगी है। दूसरा, मालदीव की संसद में भारत के मित्र मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी का वर्चस्व है, जिसके प्रतिनिधियों ने मोदी विरोधी ट्वीट्स की कड़ी निंदा की है, मांग की है कि आधिकारिक माफी मांगी जाए और भारत द्वारा दिए गए लंबे समय से समर्थन और सद्भावना के बारे में बात की जाए।
भारत को नहीं उठाना चाहिए मालदीव विरोधी कदम
मालदीव की राजधानी माले में हाल ही में हुए मेयर चुनाव में विपक्ष ने जोरदार जीत हासिल की है, भले ही मुइज्जू राष्ट्रपति बनने से पहले राजधानी के मेयर थे। यह संभावना है कि आगामी संसद चुनाव भारत के अनुकूल राजनीतिक ताकतें जीत सकती हैं। भारतीय कार्यों को इस मजबूत और महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र को कमजोर करने के लिए कुछ भी नहीं करना चाहिए, जिसकी भारत के प्रति सकारात्मक भावनाएं हैं। भारत के विदेश मंत्री का हालिया बयान, जो दोनों देशों के बीच लोगों के बीच मजबूत संबंधों को बनाए रखने के महत्व की ओर इशारा करता है। यह मालदीव विरोधी सोशल मीडिया कमेंट्स की बाढ़ में एक महत्वपूर्ण सुधारात्मक कदम है।