नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव अब अपने आखिरी पड़ाव की तरफ है. सात में से पांच चरण की वोटिंग हो चुकी है. अगले दो चरणों में 115 सीटों पर मतदान होना है. छठे चरण की 58 सीटों पर चुनाव प्रचार आज यानि गुरुवार शाम थम जाएगा. आठ राज्यों की 58 सीटों पर शनिवार को मतदान है, जिन पर 889 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर लगी है. मौजूदा समय में इस चरण में एक भी सीट कांग्रेस के पास नहीं है जबकि बीजेपी दस सालों में छह गुना ज्यादा बढ़ गई है. इस चरण में राहुल गांधी के सामने पार्टी को ‘कांग्रेस मुक्त’ से बाहर निकालने का इम्तिहान है तो नरेंद्र मोदी तो सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए अपनी सीटों को बचाए रखने की चुनौती है. देखना है कि छठे फेज में 2014 से चला आ रहा सिलसिला बरकरार रहता है या कांग्रेस उसे तोड़ने में कामयाब होती है?
देश की राजधानी दिल्ली से लेकर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बंगाल और ओडिशा सहित 8 राज्यों की 58 सीटों पर 25 मई को वोटिंग है. उत्तर प्रदेश की 14, दिल्ली की 7, हरियाणा की 10, पश्चिम बंगाल-बिहार की 8-8 सीट, झारखंड की चार, ओडिशा की 6 और जम्मू-कश्मीर की एक सीट शामिल है. कश्मीर की अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर तीसरे चरण में चुनाव होना था, लेकिन अब छठे चरण में मतदान हो रहा है. इन 58 सीटों पर वोटिंग के बाद देश की 543 सीटों में से 486 सीट पर चुनाव पूरा हो जाएगा और अंतिम चरण में सिर्फ 57 सीट ही रह जाएंगी, जहां पर एक जून की वोटिंग होनी है.
2019 के लोकसभा चुनाव में छठे चरण की 58 सीटों में से बीजेपी 40 सीट जीतने में कामयाब रही थी. वहीं, बसपा-बीजेडी 4-4 सीटें जीतने में सफल रही थी तो टीएमसी और जेडीयू 3-3 सीटें जीती थी. इसके अलावा एलजेपी एक, आजसू एक और नेशनल कॉफ्रेंस भी एक सीट जीतने में सफल रही थी. कांग्रेस 1 सीट भी नहीं जीत सकी थी. कांग्रेस ही नहीं सपा, आम आदमी पार्टी, आरजेडी, पीडीपी जैसे दल अपना खाता तक नहीं खोल सके थे. आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता पर रहते हुए दिल्ली में खाता नहीं खोल सके थे. बसपा के साथ गठबंधन करने के बाद भी सपा एक भी सीट नहीं जीत सकी थी.
छठा चरण कैसे ‘कांग्रेस मुक्त’
लोकसभा चुनाव के छठे चरण में जिन 58 सीटों पर 25 मई को चुनाव है, उनमें से एक भी सीट कांग्रेस के पास नहीं है. दस साल पहले तक कांग्रेस के 22 सीटें हुआ करती थीं, लेकिन मोदी लहर में पूरी तरह सफाया हो गया है. छठे चरण की 58 सीटों के नतीजे का विश्लेषण करें तो 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 22 सीट पर कब्जा जमाया था और सत्ता में काबिज हुई थी. 2014 में मोदी लहर में कांग्रेस की जमीन ही खिसक गई और वो सिर्फ एक सीट पर सीमित रह गई. उसे केवल रोहतक सीट पर ही जीत मिली थी. 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने अपनी इकलौती रोहतक सीट भी गंवा दी. मोदी लहर में कांग्रेस की सियासी जमीन पर आज बीजेपी का कमल लहरा रहा है. यह ऐसा चरण है, जिसमें न तो कांग्रेस के पास एक सीट है और न ही उसके दूसरे सहयोगी दल के पास.
बीजेपी कैसे छह गुना बढ़ गई
पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी बुलंदी पर है. छठे चरण में जिन 58 सीटों पर चुनाव है, 2019 में बीजेपी उनमें से 40 सीटें जीतने में सफल रही जबकि 2009 में उसे सिर्फ 7 सीटें मिली थीं. बीजेपी 2014 में 37 सीटें जीती थी और 2019 में बढ़कर 40 पर पहुंच गई. इस तरह बीजेपी 10 साल में छह गुना बढ़ी है. माना जाता है कि पीएम मोदी के सियासी करिश्मे के चलते बीजेपी यह कारनामा करने में सफल रही. इतना ही नहीं छठे चरण की 58 सीटों को देखें तो बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए को 45 सीटें मिली थीं जबकि 13 सीटें अन्य के खाते में गई थीं.
बीजेपी का एकछत्र राज कायम
2019 के चुनाव में कांग्रेस इन 58 सीटों में से भले ही एक भी सीट नहीं जीत पाई हो, लेकिन बीजेपी को 47 लोकसभा सीटों पर 40 फीसदी से भी अधिक वोट शेयर मिला था, जिनमें से 40 सीटों पर जीत दर्ज किया था. कांग्रेस के सिर्फ रोहतक सीट पर 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिला था, लेकिन उसे भी जीत नहीं सकी थी. 2019 में बीजेपी छठे चरण की 58 में से 53 सीट पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से उसे एक सीट पर ही 10 फीसदी से कम वोट मिला था और पांच सीट पर 30 से 40 फीसदी के बीच वोट था.
वहीं, छठे चरण की जिन 58 सीटों पर चुनाव है, उनमें से 44 सीट पर ही कांग्रेस 2019 में चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस को 20 सीट पर 10 फीसदी के कम वोट मिला था तो 8 सीट पर 10-20 फीसदी वोट, 11 सीट पर 20 से 30 फीसदी और पांच सीट पर 30 से 40 फीसदी वोट मिले थे. एक सीट पर कांग्रेस को सिर्फ 40 फीसदी वोट मिला था, लेकिन जीत नहीं सकी थी. कांग्रेस के पास कोई गढ़ नहीं है, जो कभी हुआ करते थे, वो पूरी तरह से दरक चुके हैं.
बीजेपी का दबदबा कैसा बना
पिछले तीन लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो 11 सीटों पर एक ही दल जीत हैट्रिक लगाता आ रहा है. इसमें पांच सीटों बीजेपी ने पर लगातार तीन बार जीत दर्ज की है. बीजेडी चार सीट पर तो टीएमसी दो सीट पर. बीजेपी ने झारखंड की धनबाद और जमशेदपुर सीट पर लगातार जीत हासिल की है तो बिहार में पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण और शिवहर सीट जीती. बीजेडी का ओडिशा में दबदबा है, खासकर कटक, ढेंकनाल, क्योंझर और पुरी सीट पर. इससे पता चलता है कि स्थानीय लोग बीजेडी के समर्थन में हैं. पश्चिम बंगाल में टीएमसी कांथी और तमलुक सीट पर हैट्रिक लगाने में कामयब रही है.
छठे चरण की 58 में से 30 सीट पर बीजेपी अपना दबदबा बनाए रखने में सफल रह सकती है, क्योंकि पिछले तीन चुनाव में वो कम से कम दो बार इन सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही है. कांग्रेस सिर्फ हरियाणा की रोहतक सीट पर ही 2009 और 2014 में जीतने में सफल रही है और 2019 में मामूली अंतर से बीजेपी से हार गई थी.
इस चरण में छह सीटें ऐसी हैं जहां 2019 के चुनाव में जीत का अंतर 35 फीसदी से अधिक था. बीजेपी ने उन सभी सीट पर जीत हासिल की थी. इन सीटों में दिल्ली में पश्चिमी दिल्ली और उत्तर-पश्चिम दिल्ली, हरियाणा में फरीदाबाद, भिवानी-महेंद्रगढ़ और करनाल और झारखंड में धनबाद शामिल है. करनाल और फरीदाबाद सीटें लगभग 50 फीसदी जीत के अंतर से जीतीं.
हालांकि, 2019 के चुनाव में पांच सीटें ऐसी थीं, जहां मुकाबला कड़ा था. बीजेपी के भोलानाथ सरोज ने उत्तर प्रदेश की मछलीशहर सीट केवल 181 वोटों या 0.02 फीसदी के अंतर से जीत दर्ज की थी. पिछले चुनाव में एक फीसदी से कम जीत के अंतर वाली अन्य चार सीटें यूपी में श्रावस्ती, हरियाणा में रोहतक, ओडिशा में संबलपुर और पश्चिम बंगाल में झाड़ग्राम है. श्रावस्ती सीट बसपा ने जीती थी जबकि बाकी सीटें बीजेपी ने जीती थी. इस तरह कम मार्जिन वाली इन चार सीटों पर कुछ वोटों के उलटफेर से सारा खेल गड़बड़ा सकता है, लेकिन बीजेपी के मजबूत दुर्ग को हिलाना आसान नहीं है. देखना है कि राहुल गांधी छठे चरण की सीटों पर कांग्रेस की मुक्ति दूर कर पाते हैं कि नहीं?