नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आज सुबह से हलचल है. इसका कारण है काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत कई विग्रहों का सर्वे हो रहा है. ये सर्वे वाराणसी के सीनियर जज डिविजन के आदेश पर हो रहा है. सर्वे के दौरान किसी तरह की कानून व्यवस्था न बिगड़े, इसलिए यहां सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
दरअसल, 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की मांग को लेकर सिविल जज सीनियर डिविजन के सामने वाद दर्ज कराया था. इस पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मंदिर में सर्वे और वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया है. इसकी रिपोर्ट 10 मई तक मांगी गई है. इसी दिन इस मामले में सुनवाई भी होगी.
काशी विश्वनाथ मंदिर और वहीं स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी विवाद जारी है. ये विवाद 1991 से अदालत में है. अभी इस विवाद की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही है.
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद जैसा ही है. हालांकि, इसमें कई सारे पेंच भी है. अयोध्या के मामले में मस्जिद अकेली थी और मंदिर नहीं बना था. लेकिन इस मामले में मंदिर और मस्जिद दोनों ही बने हैं. काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद को हटाया जाए और वो जमीन उन्हें दी जाए, क्योंकि वो मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनाई गई है.
कैसे हुई इस विवाद की शुरुआत?
1984 में देशभर के 500 से ज्यादा संत दिल्ली में जुटे. धर्म संसद की शुरुआत भी यहीं से हुई. इस धर्म संसद में कहा गया कि हिंदू पक्ष अयोध्या, काशी और मथुरा में अपने धर्मस्थलों पर दावा करना शुरू कर दे. अयोध्या में रामजन्मभूमि का विवाद था तो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर विवाद है. वहीं, स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ मंदिर को सबसे अहम माना जाता है.
अयोध्या पर हिंदू पक्ष का दावा तो आजादी से पहले ही चल रहा था. लिहाजा हिंदू संगठनों की नजरें दो मस्जिदों पर टिक गईं. एक थी मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और दूसरी थी काशी की ज्ञानवापी मस्जिद. कहा जाता है कि ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है’ का नारा भी इसके बाद ही चला.
फिर आया साल 1991. तब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की. इनके वकील थे विजय शंकर रस्तोगी.
याचिका में तर्क दिया गया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था. सन् 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह मस्जिद बनाई. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया.
याचिका में मंदिर की जमीन हिंदू समुदाय को वापस करने की मांग की गई थी. साथ ही ये भी कहा गया कि इस मामले में प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता, क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों के ऊपर बनाया गया था, जिसके हिस्से आज भी मौजूद हैं.
ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजमुन इंतजामिया इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई. उसने दलील दी कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता, क्योंकि प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट के तहत इसकी मनाही है. इसके बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी.
करीब 22 साल तक ये मामला लंबित पड़ा रहा. 2019 में वकील विजय शंकर रस्तोगी इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे. उन्होंने याचिका दायर कर मांग की कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे पुरातत्व विभाग से करवाया जाए. अभी ये मामला हाईकोर्ट में चल रहा है.