ये साल का वो समय है जब संसद से लेकर राज्य की विधानसभाओं तक में बजट सत्र की शुरुआत होने वाली है. इसी के साथ केंद्र सरकार और फिर राज्य सरकार अपना-अपना बजट पेश करेंगी. क्या इन दोनों तरह के बजट में कोई अंतर होता है. वैसे देश में केंद्र और राज्य के अलावा म्युनिसिपल कॉरपोरेशन भी अपना बजट पेश करती हैं.
केंद्र, राज्य सरकारें और म्युनिसिपल कॉरपोरेशन तीनों के बजट को लेकर भारत के संविधान में स्पष्ट रूपरेखा बनी हुई है. वहीं रही बात राजस्व संकलन की तो तीनों स्तर पर इनके लिए स्पष्ट प्रावधान हैं, तीनों की अपनी सीमाएं तय हैं और इनमें कोई क्लैश भी नहीं है.
क्या होता है आम बजट?
देश का आम बजट हर साल केंद्र सरकार पेश करती है. देश के वित्त मंत्री संसद में बजट भाषण पढ़ते हैं. पहले ये फरवरी महीने के आखिरी दिन प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2017 में इस परंपरा को बदलकर 1 फरवरी कर दिया.
केंद्र सरकार आम बजट में ना सिर्फ आय और व्यय का ब्यौरा देती है. बल्कि आने वाले सालों में देश की अर्थव्यवस्था किस तरह आगे बढ़ेगी इसका खाका भी खींचती है. इतना ही नहीं देश में कई अहम नीतिगत बदलाव भी बजट में हुए हैं. जैसे उदारीकरण को अपनाना या रेल बजट को आम बजट के साथ पेश करना.
राज्य सरकार का बजट कैसा होता है?
देश के अलग-अलग राज्यों की सरकारें भी हर साल अपना सालाना बजट पेश करती हैं. केंद्र सरकार की तरह ही इस बजट में अगले वित्त वर्ष में राज्य सरकार के आय और व्यय का अनुमान बताया जाता है. हर राज्य सरकार के राजस्व जुटाने के अलग-अलग स्रोत होते हैं, इतना ही योजनाओं पर होने वाला खर्च भी अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग योजनाओं के हिसाब से बदलता है. ये बजट भी केंद्र सरकार की तरह 1 अप्रैल से लेकर 31 मार्च तक के लिए मान्य होता है.
अगर मोटा-मोटी देखा जाए, तो केंद्र और राज्य सरकार के बजट में कोई खास अंतर नहीं होता है. सिवाय कर जुटाने के तौर तरीकों में. जैसे केंद्र सरकार लोगों से आयकर के तौर पर प्रत्यक्ष कर वसूल करती है, वहीं राज्य सरकार ऐसा नहीं कर सकती. इसी तरह राज्य सरकार की आय का एक बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार के साथ राजस्व बंटवारे के तहत आता है.