नई दिल्ली: भारत में जब कोई बड़ी सैन्य कार्रवाई होती है तो उसे एक नाम दिया जाता है. जैसे 6 मई की आधी रात को ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) को लॉन्च किया गया. इसका नाम हर किसी के दिल को छू गया क्योंकि ये उस आतंकवादी हमले का जवाब था, जिसमें कई महिलाओं के सिंदूर उजाड़ दिए गए थे. ये नाम खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने दिया है, ताकि देश और दुश्मन दोनों को ये पता चले कि ये ऑपरेशन क्यों चलाया गया. ऑपरेशन सिंदूर से पहले भी भारतीय सेना ने कई कार्रवाई की हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि इन सैन्य ऑपरेशन्स को कैसे मिलते हैं उनके नाम? आइए बताते हैं इस बारे में-
भारत में कैसे रखे जाते हैं सैन्य ऑपरेशंस के नाम?
किसी भी सैन्य कार्रवाई से पहले एक रणनीति बनाई जाती है कि ऑपरेशन कहां होगा, कैसे होगा, किसको निशाना बनाया जाएगा. उसी के आधार पर सरकार उस मिशन को नाम देती है. भारत में सैन्य ऑपरेशंस के नाम ज्यादातर रणनीति, गोपनीयता और मनोवैज्ञानिक प्रभाव के आधार पर रखे जाते हैं. ऑपरेशन को नाम ऐसा दिया जाता है जो उसके मकसद को दर्शाता हो और सेना का मनोबल बढ़ाने वाला हो. हालांकि कई बार जिस क्षेत्र में ऑपरेशन चलाया जाना है, उसके नाम पर भी सैन्य अभियान को नाम दे दिया जाता है. वहीं कई बार नाम रैंडम भी होते हैं. नीचे की स्लाइड्स में जानिए भारत के प्रमुख सैन्य ऑपरेशंस के बारे में.
ऑपरेशन सिंदूर (2025)
सबसे पहले ऑपरेशन सिंदूर के नाम की बात करते हैं. मामला ताजा है और सभी को पता भी है कि पहलगाम में आतंकियों ने क्या किया था. पहलगाम में हुए हमले के दौरान आतंकियों ने देश की महिलाओं की आंखों के सामने उनके पति को गोली मार दी थी और उनके सिंदूर को उजाड़ दिया था. इस वारदात के बाद पूरा देश पाकिस्तान से बदला लेने की आग में जल रहा था. महिलाओं के उजड़े सिंदूर का बदला लेने के लिए इस सैन्य ऑपरेशन का नाम ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रखा गया. ताकि इसका मकसद सबको समझ आए और दुश्मन को चीर देने की आग सीने से बुझने न पाए.
ऑपरेशन बंदर (2019)
पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में घुसकर एयर स्ट्राइक की थी और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर बमबारी की थी. भारतीय वायुसेना ने इस एयर स्ट्राइक को बेहद गोपनीय रखा था और इसकी गोपनीयता को बनाए रखने के लिए इसका कोडनेम दिया था-ऑपरेशन बंदर. जिस तरह हनुमान ने रावण की लंका में घुसकर लंकादहन किया था, वैसे ही भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों पर बम फोड़े थे.
सर्जिकल स्ट्राइक (2016)
18 सितंबर 2016 को हुए उरी हमले के जवाब भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक से दिया था. सेना के जवान LOC पार कर आतंकियों के ठिकानों तक पहुंचे और उन्हें खत्म कर लौटे. सर्जिकल स्ट्राइक एक ऐसी सैन्य कार्रवाई है जिसमें एक से ज्यादा सैन्य लक्ष्यों को टारगेट किया जाता है. हमला करने वाली सैनिक टुकड़ी कार्रवाई को अंजाम देने के बाद तुरंत वापस लौट आती है. इस तरह की कार्रवाई में प्रयास किया जाता है कि गैर-सैनिक ठिकानों जैसे- आसपास की इमारतें, वाहन या सार्वजनिक जगहों को कम से कम नुकसान पहुंचे.
ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो (2008)
ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो 2008 में 26/11 मुंबई आतंकी हमले के बाद चलाया गया था. ये ऑपरेशन मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद आतंकवादियों के सफाई और बंधकों को छुड़ाने के लिए चलाया गया था. इसे ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेडो को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि एनएसजी (NSG) की वर्दी का रंग काला है.
ऑपरेशन पराक्रम (2001)
2001 में संसद आतंकी हमले के बाद सेना ने दिसबंर में ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया. हालांकि इसमें दोनों देशों के बीच कोई युद्ध तो नहीं हुआ लोकिन भारत-पाकिस्तान सीमा पर हजारों सैनिकों को तैनात किया गया था.
ऑपरेशन विजय (1999)
साल 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था. तब भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया था. इस ऑपरेशन का मकसद कारगिल की पहाड़ियों को दुश्मन से मुक्त कराना था. दोनों देशों के बीच करीब 2 महीने तक युद्ध हुआ और 14 जुलाई 199 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के सफल होने की घोषणा की.
ऑपरेशन मेघदूत (1984)
13 अप्रैल 1984 को भारतीय वायुसेना ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित करने के मकसद से कार्रवाई की थी. इसे ऑपरेशन मेघदूत नाम दिया गया था. सियाचिन ग्लेशियर दुनिया के सबसे ऊंचे और ऊंचे इलाकों में से एक है.
ऑपरेशन कैक्टस लिली (1971)
ऑपरेशन कैक्टस लिली नाम 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में मेघना नदी को पार करने के लिए किए गए भारतीय सेना के हवाई हमले के अभियान को दिया गया था. इसमें हेलीकॉप्टरों का उपयोग करके सैनिकों और उपकरणों को नदी के पार ले जाया गया था.
ऑपरेशन पोलो (1948)
भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत में शामिल करने के लिए ‘ऑपरेशन पोलो’ चलाया था. इसका नेतृत्व सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था. हैदराबाद की सैन्य कार्रवाई को ‘ऑपरेशन पोलो’ नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि उस समय दुनिया के सबसे ज्यादा पोलो के मैदान हैदराबाद में थे.