शिवसेना का गठन 1966 में बालासाहेब ठाकरे ने किया था। चुनाव आयोग के फैसले से अब यह पार्टी ठाकरे परिवार के हाथ से फिसलती दिखाई दे रही है। पिछले साल शिवसेना के 67 विधायकों में 40 विधायकों को तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाले मुख्यमंत्री शिंदे ने बहुत बड़ी लड़ाई जीत ली है। पार्टी का चुनाव चिह्न अब शिंदे गुट के पास रहेगा। जबकि ठाकरे गुट को विधानसभा उपचुनाव तक मशाल चुनाव चिह्न रखने की इजाजत दी गई है। आगे जानिए अब तक कितनी बार और कब-कब शिवसेना के चुनाव चिह्न बदलें-
ढाल तलवार
शिवसेना का जन्म 1968 में हुआ। तब इसका चिह्न दहाड़ता हुआ शेर हुआ करता था। मगर चुनाव चिह्नों की सूची में यह नहीं था। इसलिए ठाणे महानगरपालिका के चुनाव में पार्टी ने ढाल तलवार चिह्न इस्तेमाल किया। फिर उसी साल मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में भी यह चुनाव चिह्न बना रहा।
उगता सूरज
कम्युनिस्ट विधायक कृष्णा देसाई की हत्या के बाद परेल में उपचुनाव हुए। इसमें वामनराव महाडिक उगता हुआ सूरज चुनाव चिह्न लेकर शिवसेना के पहले विधायक बने। इसके बाद शिवसेना उगता सूरज, ढाल तलवार और धनुष बाण जैसे अनेक चुनाव चिह्न लेकर इलेक्शन लड़ती रही।
रेलवे इंजन
1978 के विधानसभा चुनाव में रेलवे इंजन चुनाव चिह्न शिवसेना अलॉट हुआ। इस चुनाव में तत्कालीन जनता पार्टी मुंबई की सभी सीटें जीतकर सूपड़ा साफ कर गई। शिवसेना से छूटा यह चुनाव चिह्न कई वर्षों बाद पार्टी से बगावत करने वाले मनसे का अधिकृत चुनाव चिह्न बना हुआ है।
कमल
1984 में शिवसेना ने बीजेपी के साथ कदमताल की कवायद शुरू की तो उसके पास कोई पक्का अधिकृत चुनाव चिह्न था ही नहीं। इसलिए मुंबई से चुनाव लड़ने वाले वामनराव महाडिक और मनोहर जोशी ने बाकायदा बीजेपी का कमल चिह्न उधार लेकर उस पर अपना चुनाव लड़ा।
धनुष बाण
1988 में मुंबई ठाणे के गढ़ के बाहर पहले औरंगाबाद महानगरपालिका और उसके बाद परभणी चुनाव में उसे धनुष बाण चुनाव चिह्न पर अप्रत्याशित और अभूतपूर्व जीत हासिल हुई। इसके बाद यह चिह्न टिक गया और तीन सालों तक शिवसेना इसी चिह्न पर चुनाव लड़ती रही।
मशाल
पिछले साल एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों की बगावत के बाद चुनाव आयोग ने अंतिम फैसला होने तक उसका धनुष बाण चिह्न फ्रीज कर दिया। अंधेरी विधानसभा उपचुनाव में उसे मजबूरन मशाल चिह्न लेकर चुनाव लड़ना पड़ा। इसमें उसे जीत भी हासिल हुई है।