Friday, June 13, 2025
नेशनल फ्रंटियर, आवाज राष्ट्रहित की
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
No Result
View All Result
नेशनल फ्रंटियर
Home अंतरराष्ट्रीय

पुतिन कितना ही दहाड़े, रूस पर मुसीबते!

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
12/10/22
in अंतरराष्ट्रीय, मुख्य खबर
पुतिन कितना ही दहाड़े, रूस पर मुसीबते!

google image

Share on FacebookShare on WhatsappShare on Twitter

श्रुति व्यास


क्रीमिया पर कब्जे के मुद्दे पर पुतिन को रूस के समाज और उसके अभिजन वर्ग का समर्थन हासिल था। उन्होंने पूरे देश को देशभक्ति की लहर पर सवार कर दिया था।ज् परन्तु इस बार, घरेलू स्थितियां पुतिन के अनुकूल नहीं हैं। पिछले हफ्ते रूस ने अपने नागरिकों से कहा कि वे यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में हिस्सेदारी करें। ऐसा करने की बजाए लोग रूस छोडक़र भागने लगे। युद्ध की शुरूआत में रूसी नागरिक इससे बहुत चिंतित नहीं थे बल्कि कई तो अपने नेता और युद्ध शुरू करने के उसके निर्णय के साथ खड़े थे। परंतु आठ माह बाद आज रूस में अनिश्चितता और भय का वातावरण है। सेंट जार्जिस हॉल में जो रूसी कुलीन एकत्रित हुए थे उनमें विजय भाव नहीं था। बल्कि वे आशंका ग्रस्त थे।

गत 30 सितंबर को व्लादिमीर पुतिन शेर के मानिंद दहाड़े। उनकी दहाड़ पश्चिमी देशों, यूक्रेन और पूरी दुनिया के लिए तो थी ही, वह सबसे ज्यादा रूस के लोगों के लिए थी।  क्रेमलिन के भव्य सेंट जार्जिस हॉल, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहां सजी हर मूर्ति किसी न किसी जीत की निशानी है, में बोलते हुए उन्होंने वहां मौजूद रूस के कुलीनों और बाहरी दुनिया को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया में जमीन के सबसे बड़े टुकड़े पर अपने कब्जे को स्थायी स्वरूप देने की बात कही। उन्होंने कहा ‘‘मैं चाहता हूं कि कीव में बैठे शासक और पश्चिम के उनके आका कान खोलकर मेरी बात सुनें और उसे हमेशा याद रखें।

जब पुतिन यह कह रहे थे तब यूक्रेन नाटो की सदस्यता के लिए आवेदन कर रहा था। पश्चिम ने इस कब्जे की निंदा की, उसे गैर-कानूनी बताया और कहा कि रूस की इस कार्यवाही को कोई देश मान्यता नहीं देगा। अमरीका ने और अधिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की और संयुक्त राष्ट्र संघ में निंदा प्रस्ताव का मसविदा तैयार हो गया। इस बीच रूसियों के देश छोडक़र जाने का सिलसिला जारी रहा। उन्हें इस बात से कतई मतलब नहीं था कि रूस अब थोड़ा और बड़ा देश बन गया है।

परंतु पुतिन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका सीना तो गर्व से चौड़ा, और चौड़ा होता जा रहा है। आठ साल पहले उन्होंने क्रीमिया पर कब्जा किया था और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। उन्हें लगता है कि इस बार भी उन्हें कोई नहीं रोक सकेगा।

पुतिन का 30 सितंबर का भाषण राजनैतिक लफ्फाजी से भरा हुआ था। उनके शब्द दुनिया को और बांटने और अपने देशवासियों को एक करने के लिए डिजाईन किये गए थे। यह बात और है कि उनके भाषण ने पुराने घावों को फिर से हरा कर दिया। उन्होंने यूक्रेन के बारे में काफी कुछ कहा, विशेषकर उन पांच क्षेत्रों के बारे में जिन्हें रूस एक जनमत संग्रह के आधार पर अपना बता रहा है। वे पश्चिम पर भी जमकर बरसे। उन्होंने पश्चिमी देशों पर आरोपों की झड़ी लगा दी, जिसमें 17वीं शताब्दी में रूस को अस्थिर करने के प्रयासों से लेकर लिंग परिवर्तन की सर्जरी की इजाजत देने तक के ‘पाप’ शामिल थे। उन्होंने अमरीका और उसके सहयोगी राष्ट्रों को उनके उपनिवेशवादी इतिहास के लिए भी जमकर कोसा।

उन्होंने कहा, ‘‘वे हमें अपना उपनिवेश बनाना चाहते हैं। वे बराबरी के आधार पर हम से सहयोग नहीं चाहते। वे हमें लूटना चाहते हैं। वे हमें एक स्वतंत्र समाज के रूप में देखना नहीं चाहते। वे हमें गुलाम बनाना चाहते हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि रूस अपने ऊपर हमलों से निपटने के लिए ‘हर संभव उपाय’ करेगा। साफ तौर पर उनका इशारा देश के परमाणु हथियारों के जखीरे की तरफ था।
पुतिन ने यह भी कहा कि परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने की शुरुआत पश्चिम ने की है। साफ तौर पर वे एक बार फिर यह कहना चाह रहे थे कि वे यूक्रेन के जवाबी हमलों को रोकने के लिए ‘कुछ भी’ करने को तैयार हैं।पुतिन के इस आग उगलते भाषण का उद्धेश्य अपने लोगों और दुनिया को अमरीका के ‘अत्याचारों’ की याद दिलाना था। उन्होंने याद दिलाया कि अमरीका ने कोरिया और वियतनाम के युद्धों में धरती को बमों से पाट दिया था।उन्होंने यह भी याद दिलाया कि अमरीका परमाणु अस्त्रों का इस्तेमाल करने वाला दुनिया का पहला और एकमात्र देश है, जिसने द्वितीय विश्वयुद्ध के अंतिम दौर में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम गिराए थे।
पुतिन ने सोवियत संघ के अवसान पर खेद व्यक्त किया और पश्चिम को रूस पर वर्चस्व कायम करने की कोशिश करने का दोषी ठहराया। उन्होंने कहा, “हमें इतिहास के इस कलंक को मिटाना है। हम पश्चिम की दादागिरी को नेस्तनाबूद कर देंगे। हम यह करके ही रहेंगे। हमें अपने लोगों और अपने महान रूस के लिए यह करना ही होगा।” उन्होंने पश्चिम को आक्रामक और साम्राज्यवादी देशों का समूह बताया बताया जो झूठ और हिंसा की नींव पर खड़ा है। वे शायद यह भूल गए कि उनके नेतृत्व में रूस भी ठीक यही कर रहा है!

दरअसल, पुतिन का यह आक्रामक भाषण अपने लोगों को यह सन्देश देने के लिए भी था कि वे, अर्थात पुतिन, सोवियत संघ के पुननिर्माण के सपने को पूरा करने के लिए हर उस मुसीबत से लडऩे को तैयार हैं जो उनके रास्ते में आएगी।

तो क्या अपने इस भाषण से पुतिन अपने लोगों को अपने साथ ले पाएंगे?
क्रीमिया पर कब्जे के मुद्दे पर पुतिन को रूस के समाज और उसके अभिजन वर्ग का समर्थन हासिल था। उन्होंने पूरे देश को देशभक्ति की लहर पर सवार कर दिया था। यद्यपि दुनिया ने पराई भूमि पर इस खुल्लम-खुल्ला बेजा कब्जे के लिए उन्हें कटघरे में खड़ा किया परंतु कुछ लोगों का यह भी कहना था कि कहीं न कहीं वे ठीक कह रहे हैं। आखिरकार ईराक और लीबिया के बाद पश्चिम दूसरों को यह उपदेश कैसे दे सकता है कि वे अन्य राष्ट्रों की संप्रभुता का सम्मान करें। इसके अलावा, यूरोप के बहुत से नेता यह चाहते थे कि यह मसला जल्दी से निपटा दिया जाए ताकि रूस से उनके व्यापारिक संबंध बहाल हो सकें।

परन्तु इस बार, घरेलू स्थितियां पुतिन के अनुकूल नहीं हैं। पिछले हफ्ते रूस ने अपने नागरिकों से कहा कि वे यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में हिस्सेदारी करें। ऐसा करने की बजाए लोग रूस छोडक़र भागने लगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह पहला मौका था जब रूस ने आम जनता से सेना में शामिल होने के लिए कहा। हमने देखा कि इसके बाद किस तरह लाखों रूसियों ने सडक़ और वायु मार्ग से मध्य एशियाई देशों जैसे कजाकिस्तान और किर्गिस्तान की ओर कूच करने का प्रयास किया। अन्य लोगों के गंतव्य फिनलैंड, जार्जिया, मंगोलिया, तुर्की और सर्बिया थे।

युद्ध की शुरूआत में रूसी नागरिक इससे बहुत चिंतित नहीं थे बल्कि कई तो अपने नेता और युद्ध शुरू करने के उसके निर्णय के साथ खड़े थे। परंतु आठ माह बाद आज रूस में अनिश्चितता और भय का वातावरण है। पुतिन के राज के शुरूआती दौर में लोगों के जीवन की गुणवत्ता में जो सुधार आया था वह प्रतिबंधों और रूस के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अकेले पड़ जाने के कारण ढ़लान पर है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से दुनिया जितनी चिंतित है शायद रूसी उससे कहीं ज्यादा चिंतित हैं।

पुतिन की अपने देश में लोकप्रियता तेजी से घट रही है। हालात आठ साल पहले क्रीमिया को रूस में शामिल करने से बहुत अलग हैं। सेंट जार्जिस हॉल में जो रूसी कुलीन एकत्रित हुए थे उनमें विजय भाव नहीं था। बल्कि वे आशंका ग्रस्त थे। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की रपटों के अनुसार रूस का राजनैतिक श्रेष्ठी वर्ग सहमा हुआ है। एक राजनीतिज्ञ, जिसने अपना नाम उजागर करना उचित नहीं समझा, ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के एक प्रतिनिधि से कहा, ‘‘कोई नहीं जानता आगे क्या होगा। यह साफ है कि हमारे पास कोई व्यापक और समग्र रणनीति नहीं है”।

रूसियों के मूड को बेहतर करने के लिए पुतिन ने यूक्रेन में जनमत संग्रह का स्वांग किया। यह स्वांग क्यों था? यह इसलिए क्योंकि क्रेमलिन द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इन चार क्षेत्रों के क्रमश: 99, 98, 93 और 87 प्रतिशत नागरिकों ने रूस का हिस्सा बनने के पक्ष में अपना मत दिया। पुतिन शायद अपने नागरिकों को यह बताना चाहते थे कि यूक्रेन के नागरिक रूस का हिस्सा बनने के लिए किस कदर बेताब हैं। क्रेमलिन चाहता था कि इस जनमत संग्रह के परिणाम एकतरफा रूस के पक्ष में जाएं और फिर इसका प्रचार राज्य के तंत्र द्वारा किया जा सके।
पुतिन ने प्रजातांत्रिक निर्णय प्रक्रिया का स्वांग घरेलू प्रचार तंत्र को असलाह उपलब्ध करवाने के लिए किया ना कि दुनिया को बेवकूफ बनाने के लिए। जैसे-जैसे युद्ध रूस के खिलाफ जाता जाएगा वैसे-वैसे इस तरह के स्वांग बढ़ते जाएंगे क्योंकि पुतिन अपनी तानाशाही को प्रजातंत्र के नाटक से ढांकना चाहेंगे।

जनमत संग्रह का यह स्वांग, इसके नतीजे और सेंट जार्जिस हॉल में पुतिन का भाषण जिसमें उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए औपनिवेशिकता और गुलामी जैसे शब्दों का प्रयोग किया – इन सबका निशाना रूस के नागरिक थे। लक्ष्य यह था कि घरेलू असंतोष को दबाया जाए और इसके लिए रूस की जनता को यह बताया जाए कि उनका देश इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है।

क्या पुतिन अपने लोगों का दिल जीत पाए हैं? इसकी संभावना कम ही है। कोरोना की त्रासदी से गुजरने के बाद दुनिया के लोग युद्ध, खून-खराबे और भय से दूर ही रहना चाहते हैं। इसके अलावा लोगों को बलपूर्वक सेना में शामिल करने के अभियान की प्रतिक्रिया में लोग देश छोडक़र भागेंगे। जाहिर है कि शारीरिक रूप से सक्षम नागरिकों के देश छोड़ देने के बाद जो गरीब, भूखा और बीमार रूस बचेगा वह कम से कम पुतिन के महान सोवियत साम्राज्य की स्थापना के सपने की नींव तो नहीं बन सकता।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About

नेशनल फ्रंटियर

नेशनल फ्रंटियर, राष्ट्रहित की आवाज उठाने वाली प्रमुख वेबसाइट है।

Follow us

  • About us
  • Contact Us
  • Privacy policy
  • Sitemap

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.

  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.