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कैसे डीके शिवकुमार को एक ही दांव में चित करना चाहते हैं सिद्धारमैया!

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
12/04/25
in राजनीति, राज्य, समाचार
कैसे डीके शिवकुमार को एक ही दांव में चित करना चाहते हैं सिद्धारमैया!
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नई दिल्ली: कर्नाटक की राजनीति में सत्ता संघर्ष और अंदरूनी घमासान के कई पहलू सामने आते रहे हैं, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच की सत्ता की लड़ाई एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है। पिछले कुछ महीनों से इन दोनों नेताओं के बीच अंदरूनी सियासी संबंध तनावपूर्ण बताए जाते रहे हैं, और अब सिद्धारमैया ने एक रणनीतिक कदम उठाकर एक तरह से डीके शिवकुमार को राजनीतिक रूप से कमजोर करने का दांव चल दिया है। यह है जाति जनगणना रिपोर्ट है, जिसे सिद्धारमैया ने शुक्रवार को ही में अपने मंत्रिमंडल में पेश किया है।

सिद्धारमैया का यह कदम न केवल कर्नाटक के राजनीतिक माहौल को बदल सकता है, बल्कि यह शिवकुमार की भविष्य की राजनीति पर भी गहरा असर डाल सकता है। दरअसल, कर्नाटक में जबसे कांग्रेस सत्ता में आई है, सिद्धारमैया को अंदरूनी विरोध का भी सामना करना पड़ा है। इस विरोध का मुख्य कारण डीके शिवकुमार बताए जाते हैं, जिन्हें खुद ही मुख्यमंत्री पद की दौर में शामिल माना जाता है।

कर्नाटक कांग्रेस में आपसी रार!

शुरू से ये भी अटकलें रही हैं कि कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरे होने के बाद शिवकुमार को सीएम पद मिलना है,और सिद्धारमैया इसे ही अपनी सत्ता के लिए खतरा मानते हैं। यही कारण है कि सिद्धारमैया के खेमें ने हाल के दिनों में कई कदम उठाए हैं, जिसे शिवकुमार की सीएम की दावेदारी को कमजोर करने के रूप में देखा गया है।

जाति जनगणना रिपोर्ट और शिवकुमार की चुनौती

जाति जनगणना रिपोर्ट, जो कि कर्नाटक सरकार ने अब कैबिनेट में पेश की है, सिद्दारमैया के लिए एक बड़ा राजनीतिक अस्त्र साबित हो सकता है। यह विषय कांग्रेस नेता राहुल गांधी का पसंदीदा है, जो हमेशा से ही राज्यों में जाति जनगणना के पक्षधर रहे हैं। हालांकि, यह रिपोर्ट शिवकुमार के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। क्योंकि, कांग्रेस में रहकर इसका विरोध करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होगा।

दरअसल वे वोक्कालिका समुदाय से आते हैं और इस समुदाय का बड़ा हिस्सा इस रिपोर्ट को लेकर आशंकित रहा है। सिद्धारमैया के इस कदम को राजनीतिक सूझ-बूझ के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें उन्होंने जाति जनगणना रिपोर्ट को एक मौके के रूप में इस्तेमाल किया है, जिससे शिवकुमार को अपनी स्थिति को लेकर असहज महसूस कराया जा सके।

सिद्धारमैया का दांव और राजनीतिक गणित

सिद्धारमैया ने इस रिपोर्ट को कैबिनेट में पेश करने के बाद, उसे अगले बैठक में लाने की बात कहकर एक बड़ा दांव खेला है। इस रिपोर्ट को लेकर कर्नाटक सरकार पहले ही कई बार सोच-विचार कर चुकी थी, लेकिन अब इसे जारी करने के निर्णय की ओर पहला कदम बढ़ाया गया है, जिसपर 17 अप्रैल को फैसला लिया जा सकता है।

असल में इस रिपोर्ट का भारी विरोध भी हो रहा है। विशेष रूप से लिंगायत और वोक्कालिका समुदायों के नेता इसके खिलाफ हैं, जिनका मानना है कि यह रिपोर्ट पुराने आंकड़ों पर आधारित है और इसमें उनके समुदायों के खिलाफ भेदभाव हो सकता है। यही वजह है कि यह विरोध, विशेष रूप से डीके शिवकुमार के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। इस तरह, जाति जनगणना रिपोर्ट ने कर्नाटक की राजनीति में नए समीकरणों को जन्म दिया है, जिनसे सिद्धारमैया और शिवकुमार के रिश्तों पर असर पड़ सकता है।

शिवकुमार को लेना पर सकता है निर्णायक फैसला

सिद्धारमैया के इस कदम पर डीके शिवकुमार की सार्वजनिक प्रतिक्रिया अहम होगी। अगर यह रिपोर्ट सार्वजनिक होती है तो उनकी राजनीति में असहजता आ सकती है। पार्टी के अंदर से उनके ऊपर इस रिपोर्ट के समर्थन और अपनी जाति से विरोध में कदम उठाने का दबाव बन सकता है।

साथ ही, यह भी देखा जाएगा कि शिवकुमार इस मुश्किल घड़ी में अपने समुदाय के नेताओं के साथ किस तरह का तालमेल बैठाते हैं। खासकर तब, जब वह पहले ही महाकुंभ स्नान में जाकर पार्टी की अनौपचारिक लाइन से अलग रुख जाहिर कर चुके हैं।

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