नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की 96 सीटों पर मतदान जारी है. इस चरण में 96 सीटों पर 1717 उम्मीदवार मैदान में है, जिसमें 1540 पुरुष और 170 महिला कैंडिडेट हैं. इन उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला 10 राज्यों के 17.70 करोड़ मतदाता कर रहे हैं. चौथे चरण में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा बीजेपी की लगी है, क्योंकि पिछले चुनाव में तकरीबन आधी सीटें वो जीतने में कामयाब रही थी. कांग्रेस दो चुनाव से दहाई का अंक क्रॉस नहीं कर सकी है. इस तरह बीजेपी को अपनी सीटें बचाए रखने और कांग्रेस को अपनी सीटें बढ़ाने की चुनौती है?
चौथे चरण में जिन 10 राज्यों की 96 सीटों पर वोटिंग हो रही है, उसमें आंध्र प्रदेश की सभी 25 और तेलंगाना की कुल 17 सीटों पर चुनाव है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश की 13, महाराष्ट्र की 11, बिहार की 5, जम्मू कश्मीर की 1, झारखंड की 4, मध्य प्रदेश की 8, ओडिशा की 4 और पश्चिम बंगाल की 8 सीटों पर मतदान हो रहा है. इस चरण की वोटिंग के साथ ही देश के 18 राज्य और 4 केंद्र शासित प्रदेशों में लोकसभा चुनाव पूरी तरह खत्म हो जाएगा. इसके साथ देश की कुल 543 सीटों में से 379 सीटों पर भी चुनाव पूरे हो चुके होंगे और आगे के तीन चरणों में 163 सीट पर सियासी दलों का इम्तिहान होगा.
कौन कितने सीट पर लड़ रहा चुनाव
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में जिन 96 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उसमें सबसे ज्यादा 70 सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ रही है. इसके अलावा बीजेपी की सहयोगी पार्टी टीडीपी 17 सीट, एकनाथ शिंदे की शिवसेना 3 सीट और अन्य सहयोगी 6 सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं, इंडिया गठबंधन में देखें तो कांग्रेस 61 सीट पर मैदान में है और उसके सहयोगी आरजेडी 3, सपा 12 और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) 4 सीट पर मैदान में है. इसके अलावा क्षेत्रीय दलों में वाईएसआर कांग्रेस 25 सीट, बीजेडी 4, बीआरएस 17, टीएमसपी 8 और ओवैसी की पार्टी AIMIM के 3 उम्मीदवार की प्रतिष्ठा चौथे चरण में लगी हुई है.
चौथे चरण में कौन कितने पानी में है?
चौथे चरण की 9 सीटों पर 2019 के चुनावी नतीजे के लिहाज से देखें तो बीजेपी 89 सीट पर चुनाव लड़ कर 42 सीटें जीतने में सफल रही थी जबकि कांग्रेस 85 सीट पर चुनाव लड़कर सिर्फ 6 सीट ही जीत सकी थी. वाईएसआर कांग्रेस 22 सीट, बीआरएस 9 सीटें जीतने में सफल रही थी. 2014 में देखें तो बीजेपी 38 सीटें जीती थी तो 2009 में 10 सीट ही उसे मिली थी. वहीं, कांग्रेस 2014 में सिर्फ तीन सीटें ही जीत सकी थी जबकि 2009 में उसके पास 50 सीटें थी. इस तरह से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा तो बीजेपी को सियासी लाभ हुआ.
वहीं, क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया था. वाईएसआर कांग्रेस भले ही 2019 में 22 सीटें जीतने में सफल रही थी, जबकि 2014 में उसे 9 सीटें मिली थी, उसका ये पहला चुनवा था. तेलंगाना में बीआरएस 2019 (तब टीआरएस) में 9 सीटें जीती थी जबकि 2014 में 11 और 2009 में दो सीटें जीतने में कामयाब रही थी. बसपा और सपा जैसे दल अपना खाता नहीं खोल सके थे, लेकिन अन्य क्षेत्रीय दलों में देखे तो बीजेडी और टीएमसी ने बेहतर प्रदर्शन किया था. अन्य दलों को 17 सीटें मिली थी.
कितने मजबूत और कितने कमजोर
बता दें कि 2019 में बीजेपी जिन 89 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, उनमें से 43 सीटों पर उसका वोट शेयर 40 फीसदी से अधिक था जबकि कांग्रेस को 43 सीटों पर 10 फीसदी से भी कम वोट शेयर मिला था. कांग्रेस को 11 सीट पर ही 40 फीसदी से अधिक वोट मिला था, जिसमें से 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.इससे यह साफ है कि बीजेपी के लिए इस चरण में चुनौती देना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है, लेकिन तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन होने के बाद सियासी हालत बदले हुए हैं तो यूपी-बिहार-झारखंड में विपक्ष एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरा है.
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 20 सीटें ऐसी है, जिन्हें मजबूत गढ़ के तौर पर देखा जाता है, जिसमें 10 सीटों पर बीजेपी का दबदबा है तो बीआरएस और शिवसेना की 2-2 सीटें है. कांग्रेस-टीएमसी-AIMIM और बीजेडी के पास 1-1 सीटें मजबूत गढ़ के तौर पर है. हबूबनगर, मेडक, मावल, शिरडी, बहरामपुर, नलगोंडा, अहमदनगर, बीड, दरभंगा, इंदौर, जलगांव, जालना, खरगोन, खूंटी, लोहरदगा, रावेर, बेरहामपुर, बीरभूम, कृष्णानगर और हैदराबाद ऐसी हैं, जिन पर एक ही दल को लगातार जीत मिल रही है. बीजेपी इनमें से 10 सीट पर 2009 से लेकर जीतती आ रही है.
क्या 32 सीटों पर होगा उल्टफेर
2024 के चुनाव में चौथे चरण में 96 सीटों में 21 सीटें ऐसी हैं, जो हर चुनाव में स्विंग करती है. इसके अलावा 11 सीटों पर जीत-हार का अंतर एक फीसदी से भी कम था. इस तरह से 32 लोकसभा सीटों पर उल्टफेर से सियासी खेल बदल सकता है. 2014 में कांग्रेस ने इन्हीं स्विंग सीट को गंवा के सत्ता खो दी थी और बीजेपी व क्षेत्रीय दलों का दबदबा बढ़ा है.
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में स्विंग वाली21 सीटों में निजामाबाद, करीमनगर, अमलापुरम, अनाकापल्ली, अनंतपुर, बापटला, एलुरु, काकीनाडा,नरसापुरम, राजमुंदरी, मुंगेर, खम्मम, ख्विशाखापत्तनम, विजयनगरम, खम्मम, श्रीनगर, भोंगिर, मल्काजगिरी, सिंहभूम, आदिलाबाद, बर्दवान-दुर्गापुर और कालाहांडी सीट है.
वहीं, चौथे चरण की 11 सीटों पर हार जीत का अंतर एक फीसदी से कम था. इसमें विशाखापटनम, बर्दमान, मल्काजगिरी, विजयवाड़ा, जहीराबाद, श्रीकाकुल्म, गुंटूर, भोंगिर, औरंगाबाद और कोरापुट सीट है. टीडीपी ने आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा 0.7, श्रीकाकुलम में 0.6 और गुंटूर में 0.6 फीसदी वोटों से जीत दर्ज की थी. कांग्रेस तेलंगाना की मल्काजगिरी में 0.7 और भोंगीर सीट पर 0.4 फीसदी के अंतर से जीतीं. अन्य करीबी मुकाबले वाली सीटें विशाखापत्तनम, गुंटूर, खूंटी, औरंगाबाद, कोरापुट, जहीराबाद और बर्धमान-दुर्गापुर हैं. बीजेपी दो सीटें जीती थी और बीआरएस, AIMIM 1-1 सीट जीतने में सफल रही थी.
2024 में क्या बदल जाएगा खेल
2019 के चुनाव की तुलना में कांग्रेस पहले से ज्यादा मजबूती के साथ लड़ती हुई नजर आ रही है तो बीजेपी ने भी आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ हाथ मिला रखा है. इस तरह तेलंगाना से लेकर आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में सियासी उलटफेर देखने को मिल सकता है. बीजेपी के लिए जहां अपनी सीटों को बचाए रखने की चुनौती है जबकि कांग्रेस के लिए अपनी सीटों को बढ़ाने की है. ऐसे में यूपी में जिस तरह से बीजेपी सभी 13 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, उसे बचाए रखना मुश्किल दिख रहा है. ऐसे ही बिहार और महाराष्ट्र की सीटों को भी बचाए रखना बीजेपी के लिए आसान नहीं दिख रहा है.
क्षेत्रीय दलों के लिए भी चुनौती
तेलंगाना में कांग्रेस सत्ता में आने के बाद मजबूत स्थिति में दिख रही है, जिसके चलते बीआरएस को अपनी सीटें बचाए रखना मुश्किल दिख रहा है. बीआरएस को कांग्रेस और बीजेपी दोनों से मुकाबला करना पड़ रहा है. इसी तरह आंध्र प्रदेश में वाईएसआर 25 में से 22 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार उसे बचाए रखना मुश्किल दिख रहा है. बीजेपी ने टीडीपी और पवन कल्याण की जनसेना पार्टी के साथ गठबंधन कर वाईएसआर को कड़ी चुनौती दे रही है तो जगन रेड्डी की बहन के शर्मिला रेड्डी को कांग्रेस ने अपने साथ मिला लिया था. इसी तरह से असदुद्दीन ओवैसी के लिए भी यह चरण काफी महत्वपूर्ण है, जहां उन्हें हैदराबाद में अपनी सीट बचाए रखने के साथ-साथ महाराष्ट्र की औरंगाबाद सीट पर 2019 में मिली AIMIM की जीत को बरकरार रखने की चुनौती है.