नई दिल्ली : अमेरिका के पहले स्टेट विजिट पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाइट हाउस में जोरदार स्वागत हुआ। इस दौरान राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पर्सनल केमिस्ट्री भी देखने लायक थी। इस महत्वपूर्ण दौरे से भारत-अमेरिका रिश्तों का एक नया दौर शुरू होने जा रहा है, पहले से ज्यादा मजबूत, और भी भरोसेमंद। मोदी-बाइडन की गर्मजोशी भरे मुलाकात की तस्वीरें दोनों देशों के परवान चढ़ते रिश्तों की बानगी भर हैं। भारतीय मीडिया में ये तस्वीरें छाई हुई हैं।
तो क्या अब भारत के लिए अमेरिका आजमाए हुए दोस्त रूस की जगह ले रहा है? शीतयुद्ध युग के अंत के बाद अमेरिका और भारत करीब आते गए। दूसरी तरफ रूस भी धीरे-धीरे भारत के प्रतिद्वंद्वी चीन और पाकिस्तान के करीब जा रहा है। इससे नई दिल्ली-मॉस्को के रिश्तों में अब पहले जैसी गर्माहट नहीं रही। एक दौर था जब भारत और रूस के नेताओं की गर्मजोशी भरी तस्वीरें देश में सुर्खियां बनती थीं। लेकिन अब वक्त बदल गया है। रिश्तों का समीकरण जैसे सिर के बल हो चुका है।
अमेरिका-भारत : कितने दूर, कितने पास
भारत जब आजाद हुआ तब अमेरिका और रूस दुनिया की दो सबसे ताकतवर महाशक्तियां थीं। दोनों में प्रतिद्वंद्विता थी। तब अमेरिका ने भारत को अपने पाले में खड़ा करने की कोशिश की लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को एक नए-नए आजाद हुए मुल्क को दो महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता की चक्की में पिसना मंजूर नहीं था। उन्होंने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। ये बात अमेरिका को नागवार गुजरी। 1954 में उसने पड़ोसी पाकिस्तान को सीटो और सैंटो नाम के सैन्य समूहों का सदस्य बनाकर भारत के लिए खतरा पैदा कर दिया। गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलते हुए भी भारत का धीरे-धीरे रूस की तरफ झुकाव होता चला गया। दूसरी तरफ अमेरिका पाकिस्तान की हर हिमाकत में उसका साथ देता रहा। 1971 की जंग में तो उसने पाकिस्तान की मदद के लिए सातवें बेड़े को बंगाल की खाड़ी के लिए रवाना कर दिया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के खिलाफ प्रस्ताव रखा। दूसरी तरफ रूस संकट के वक्त हर समय भारत के साथ खड़ा मिला। लेकिन 90 के दशक में भारत-अमेरिका संबंध मजबूत होने शुरू हुए। 2001 में 9/11 आतंकी हमले ने पहली बार पाकिस्तान को लेकर अमेरिका के विश्वास पर चोट किया। आतंकवाद का दर्द जब खुद उसे महसूस हुआ तब जाकर उसे धीरे-धीरे भारत के दर्द का अहसास हुआ। 2000 और 2010 के दशक में दोनों देशों के रिश्ते रणनीतिक साझेदारी की ऊंचाई पर पहुंचे। और अब तो भारत और अमेरिका के नेताओं की गर्मजोशी भरी तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनती हैं।
रूस आजमाया हुआ दोस्त
रूस सोवियत संघ के जमाने से भारत का समय की कसौटी पर जांचा-परखा, आजमाया हुआ दोस्त है। सुरक्षा परिषद में वह कई मौकों पर भारत के खिलाफ आए प्रस्तावों को वीटो किया है। आजादी के ठीक बाद उसने भारत के इंडस्ट्रियलाइजेशन में बड़ी भूमिका निभाई। सस्ते ब्याज पर आर्थिक मदद की। डिफेंस, तेल, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच करीबी सहयोग रहा। हथियारों के मामले में तो भारत एक तरह से रूस पर ही निर्भर रहा। दोनों देशों की दोस्ती का अंदाजा आप 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रूस दौरे से लगा सकते हैं। 1975 में इमर्जेंसी लगाने के बाद उन्होंने अपने पहले आधिकारिक दौरे के लिए सोवियत रूस को ही चुना। तस्वीर 8 जून 1976 की है। एयरपोर्ट पर सोवियत संघ के नेता लेयोनिड ब्रेजनेव ने उनका स्वागत किया।
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी गहरी रही रूस से दोस्ती
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी दोनों देशों के रिश्तों की डोर मजबूत बनी रही। ये तस्वीर 5 दिसंबर 2008 की है जब रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति डिमित्री मेहदवेदेव भारत की यात्रा पर आए थे और तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से मुलाकात के पहले मीडिया के लिए पोज दिया था।
चीन की वजह से बदले रिश्तों के समीकरण
हालांकि, समय के साथ रूस चीन के करीब जाता रहा। दोनों का करीब जाने को अमेरिका खतरे के तौर पर देखता है। इसलिए इसे काउंटर करने के लिए भारत भी अमेरिका की जरूरत बन चुका है। चीन की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिश्तों के समीकरण बदल चुके हैं। अब हिंद महासागर में चीन को किसी भी तरह की दुस्साहस से रोकने के लिए क्वॉड मौजूद है। इस चौकड़ी में अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं। ये तस्वीर 24 मई 2022 की है जब जापान में क्वॉड के नेता जुटे थे। तस्वीर में ऑस्ट्रेलिया के पीएम एंथनी अल्बानीज, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, जापान के पीएम फुमियो किशिदा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिख रहे हैं।
रिश्तों में संतुलन : यूक्रेन युद्ध पर भारत के अडिग रुख से रूस गदगद
वैसे भारत अमेरिका या किसी अन्य देश से दोस्ती की कीमत पर अपने आजमाए हुए पुराने दोस्त रूस को नजरअंदाज करने का जोखिम भी नहीं उठा सकता। इसलिए वह रिश्तों का संतुलन शायद ही छोड़े। जब अमेरिका समेत समूचे पश्चिमी देश यूक्रेन युद्ध के लिए एक सुर में रूस की आलोचना करते आ रहे हैं, भारत ने इसे लेकर बहुत सतर्क प्रतिक्रिया दी है। युद्ध को लेकर रूस के समर्थन के आरोपों को भारत ये कहकर सिरे से खारिज कर चुका है कि वह किसी देश के समर्थन या विरोध में नहीं, बल्कि शांति के समर्थन में है। रूस से तेल खरीद को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबावों के आगे झुकने से इनकार कर दिया। यूक्रेन के साथ युद्ध को लेकर भारत के अडिग रुख से रूस भी गदगद है। पीएम के अमेरिका दौरे के बीच नई दिल्ली में रूस के राजदूत ने कहा कि भारत अब भी उनका सबसे विश्वसनीय दोस्त है। भारत की ऊर्जा जरूरतों को रूस पूरा करता रहेगा।