नई दिल्ली: असम की जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल और कश्मीरी नेता शेख अब्दुल रशीद को लोकसभा सदस्य के रूप में शुक्रवार को शपथ दिलाई गई. दोनों को शपथ के लिए अदालत के निर्देश पर पैरोल मिली है. अमृतपाल ने पंजाब की खडूर साबित लोकसभा सीट और शेख अब्दूल रशीद ने जम्मू-कश्मीर के बारामूला से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीता था. पंजाब में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में अमृत पाल राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद है. वहीं, जम्मू-कश्मीर में टेरर फंडिंग केस में गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत इंजीनियर रशीद दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं.
ऐसे में सवाल है कि लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ लेने के बाद अमृतपाल और शेख अब्दुल रशीद सदन की कार्यवाही, वोटिंग और दूसरी गतिविधियों में कैसे हिस्सा लेंगे? ऐसे मामलों को लेकर क्या कहता है संविधान?
सांसद तो बन गए पर लोकसभा की कार्यवाही में कैसे हिस्सा लेंगे?
लोकसभा सदस्यता की शपथ लेने के बाद दोनों ही सांसद सदन की कार्यवाही में कैसे हिस्सा लेंगे, इस पर पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी अचारी का कहना है, अगर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया गया है, तो वह चुनाव लड़ सकता है और अनुमति मिलने के बाद सदन की कार्यवाही में भाग ले सकता है. सदन के अंदर जाने के बाद वह व्यक्ति सदन को संबोधित भी कर सकता है. लेकिन शपथ ग्रहण समारोह या संसद के सत्र में भाग लेने के लिए दोनों को हर बार अदालत का रुख करना होगा.
इस तरह जब अमृतपाल और शेख अब्दुल रशीद पैरोल पर जेल से बाहर हैं लेकिन उन्हें हर बार सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा और सत्र में हिस्सा लेने के लिए अनुमति मांगनी होगी. यह अदालत पर निर्भर है कि वो परमिशन देती है या नहीं.
पहला नहीं है अमृतपाल-शेख अब्दुल का मामला
अमृतपाल और शेख अब्दुल का मामला पहला नहीं है. इससे पहले, 2021 में अखिल गोगोई के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था की गई थी, जिन्हें जेल में होने के बावजूद असम विधान सभा के सदस्य के रूप में शपथ लेने की अनुमति दी गई थी. दूसरा उदाहरण 1977 का है, जब आपातकाल के दौरान जेल में बंद जॉर्ज फर्नांडिस की जीत हुई और उन्हें शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले जेल से रिहा कर दिया गया.
अब आगे क्या होगा?
पहले भी नेताओं को शपथ लेने के लिए अस्थायी पैरोल दी जाती रही है, लेकिन ये नियमित जमानत के जैसी नहीं होती. इसलिए, शपथ लेने के बाद, जेल में बंद सांसद को सदन की कार्यवाही में भाग लेने में असमर्थता की घोषणा करते हुए अध्यक्ष को लिखित रूप से सूचित करना आवश्यक है. यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 101(4) के अनुसार, अगर कोई सांसद 60 दिनों से अधिक समय तक सभी बैठकों से अनुपस्थित रहता है, तो उसकी सीट खाली हो जाती है.
जेल में बंद सांसद अगर संसद सत्र में भाग लेना चाहते हैं, संसद में चर्चा या किसी मामले में वोट करना चाहते हैं तो वे अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं. यह बातें वहां लागू होती हैं, जहां सांसद जेल में हैं और दोषी साबित नहीं हुए हैं.