ताला/उमरिया। बीते दिन बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में एक बाघिन की मौत उसके जख्मों के इलाज करने के दौरान हो गई। बाघों का गढ़ हमेशा बाघों की मौत को लेकर सुर्खियों में बना रहता है। प्रबंधन की लचर व्यवस्था से बाघों की मौत एक बड़ी समस्या बनते जा रही है। एक ओर सरकार बाघों को संरक्षित करने की पहल पर जोर दे रही है, तो वहीं दूसरी ओर बांधवगढ़ में लगातार बाघों की मौत इनके अस्तित्व पर खतरा जता रहा है। पेट्रोलिंग के नाम पर माह में लाखों रूपये का ईंधन खपा देने वाले जिम्मेदारों के ऊपर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर पशु विभाग के एक ही सहायक शल्यज्ञ के द्वारा इलाज पर भी लोग नराजगी जाहिर कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक विगत 5 वर्षों में जितने बाघों की मौत हुई उनके इलाज से लेकर पोस्टमार्टम तक में पंचानवे फीसदी जिम्मेदारी एक ही डॉक्टर ने निभाई, जिसके ऊपर भी अयोग्य होने का आरोप लगा।
मौत पर विभाग ने दी जानकारी:
बीते दिन रविवार को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के मानपुर रेंज देवरी बीट अंतर्गत ग्राम मढ़ऊ के समीप एक बाघिन घायल अवस्था में बैठी थी, जो सामान्य तरीके से व्यवहार नही कर रही थी। सूचना मिलने के बाद वरिष्ठ अधिकारी की मौजूदगी में बाघिन का रेस्क्यू किया गया। पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ के द्वारा तत्काल उसका इलाज किया गया, लेकिन दो घंटे के बाद उसकी मौत हो गई। बाघिन की मौत का प्राथमिक कारण उसकी पीठ में लगा हुआ चोट बताया गया।
समय रहते नहीं हो सका इलाज? :
जिस तरह से जानकारी दी गई, उससे एक बड़ी लापरवाही स्पष्ट दिखाई दे रही है। यदि घायल बाघिन गांव के समीप नहीं आकर बैठती तो शायद विभाग को उसके इलाज करने का भी शेष समय नहीं मिलता। पेट्रोलिंग (गस्ती) के नाम पर विभाग महज कोरम पूरा करता है, जबकि माह में लाखों रुपये के ईंधन का खपत हो रहा है। लोगों की मांग है, की आर्थिक अपराध विंग से जांच करवा दी जाए तो बीटीआर विभाग के कई बड़े घोटाले उजागर हो सकते हैं।