आजकल हर कोई किसी न किसी तरह की बीमारी से ग्रस्त है और उसके निदान के लिए औषधियां लेने के साथ ही आध्यात्मिक उपचार भी करता है. महामृत्युंजय मंत्र के जाप से आपके स्वास्थ्य की रक्षा तो होगी ही, श्री की वृद्धि और आयु रक्षा भी होगी. इस मंत्र के जाप से शिव जी प्रसन्न होकर आपको आरोग्य का फल प्रदान करेंगे. मृत्युंजय मंत्र में संपुट आदि का प्रयोग होता है लेकिन मूल महा मृत्युंजय मंत्र यही है.
ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
इसे आप अपनी नित्य पूजा में शामिल कर सकते हैं. भगवान मृत्युंजय यानी महादेव, मनुष्य के सारे दुखों, परेशानियों और अहंकार का हरण कर लेते हैं. भगवान शिव का महामंत्र महामृत्युंजय का जाप करने से आयु वृद्धि, रोग मुक्ति और भय से मुक्ति मिलती है. इस मंत्र का जाप विपत्ति के समय किया जाए तो यह एक दिव्य ऊर्जा के कवच के समान सुरक्षा प्रदान करता है. यह मंत्र शिव जी के प्रति एक प्रार्थना है, जिसका जाप करने से वातावरण में विशेष प्रकार का कंपन या वाइब्रेशन होता है जिससे नकारात्मक शक्तियां स्वतः दूर हो जाती हैं.
सर्वप्रथम महामृत्युंजय मंत्र को समझें
सबसे पहले इस मंत्र के अर्थ को समझिए तभी इसका भाव समझ में आ सकेगा.
त्र्यम्बकं अर्थात तीन आंखों वाले, भगवान शिव की दो आंखें तो समान्य हैं पर तीसरी आंख विवेक और अंर्तज्ञान की प्रतीक है. जिस व्यक्ति में विवेक जाग्रत अवस्था में होता है, माना जाता है कि उसकी तीसरी आंख एक्टिव है.
यजामहे का अर्थ है कि हम पूजते हैं, जब बिना किसी बाधा के नित्य पूजा करने लगते हैं तो हम यजामहे की ओर अग्रसर होने लगते हैं.
सुगन्धिं अर्थात भगवान शिव सुगंध के पुंज हैं, यहां पर उनकी ऊर्जा को सुगंध कहा गया है.
पुष्टिवर्धनम् यानी आध्यात्मिक पोषण और विकास की ओर जाना, जो लोग मौन अवस्था में अधिक रहते हैं, उनका आध्यात्मिक विकास अधिक हो जाता है. इसका तात्पर्य है कि हमें नकारात्मकता दूर कर सकारात्मकता की ओर बढ़ना होगा तभी पुष्टिवर्धनम् हो पाएंगे.
उर्वारुकमिवबंधनान् का अर्थ है संसार में जुड़े रहते हुए भी भीतर से अपने को इस बंधन से छुड़ाना. भगवान शिव मुझे संसार में रहते हुए आध्यात्मिक परिपक्वता प्रदान करें.
मृर्त्योर्मुक्षीत मामृतात् का अर्थ है कि मृत्यु के भय से मुक्ति प्राप्त होना. यह सही भी है जब व्यक्ति में आध्यात्मिक परिपक्वता आ जाती है तो उसे मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है.
रुद्राक्ष की माला से करें जाप
महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए. जाप करने से पहले सामने एक कटोरी में जल रख लें, जाप करने के बाद उस जल को पूरे घर के हर कमरे में छिड़क दें. इससे नकारात्मक और हीन शक्तियों का दुष्प्रभाव खत्म होगा और स्वास्थ्य ठीक होगा.
मृत्युंजय के अन्य सरल रूप
टॉक्सिन्सः जब शरीर में विषैले विजातीय पदार्थ जमा होकर रोग पैदा करें तो
“ऊं जूं सः पालय पालय ऊं” मंत्र से अभिमन्त्रित जल का सेवन करें.
बुढ़ापाः शरीर में किसी रोग, बुढ़ापा या रेडियेशन के कारण रक्त प्रवाह धीमा हो या वात रोग हो तो यह मंत्र लाभकारी है- “ऊं हौं जूं सः”
दिल की बीमारीः दिल यानी जिगर की खराबी से उत्पन्न परेशानी में इस मंत्र को नियमित जपें तो लाभ होगा- “ऊं वं जूं सः”