नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही सियासी बिसात बिछाने में जुटे हैं. विपक्षी दलों के गठबंधन NDIA ने बीजेपी के खिलाफ जातिगत जनगणना को अपना सबसे बड़े सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा. इस तरह विपक्ष सामाजिक न्याय व जातिगत जनगणना के जरिए ओबीसी जातियों की गोलबंदी करने की कवायद की जा रही है. ऐसे में रोहिणी कमीशन ने ओबीसी आरक्षण पर अपनी रिपोर्ट को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है. रिपोर्ट में ओबीसी आरक्षण को तीन या चार श्रेणी में बांटने की सिफारिश की है, जिस मोदी सरकार विपक्षी के जाति जनगणना की डिमांड का काउंटर प्लान के रूप में दांव चलेगी?
विपक्षी दलों के गठबंधन ‘INDIA’ ने बेंगलुरु की बैठक में देश में जातिगत जनगणना कराने की मांग उठा दी थी. कांग्रेस इस मुद्दे पर यूपी में कार्यक्रम जिले-जिले चला रही है तो बिहार में पटना हाईकोर्ट से नीतीश सरकार को जातिगत जनगणना कराने की इजाजत मिल गई है. महागठबंधन सरकार इस मुद्दे पर सियासी नैरेटिव सेट करने की कवायद में जुट गया है, क्योंकि भारत में जातिगत जनगणना की मांग दशकों पुरानी है. नीतीश सरकार भले जाति जनगणना का मकसद सरकारी योजनाओं में अलग-अलग जातियों की संख्या के आधार पर लाभ देने की बात कर रही हो, लेकिन इसके पीछे ओबीसी वोटबैंक को लाभबंद करने की रणनीति है.
जाति जनगणना से मोदी को घेरने की कवायद
जातिगत जनगणना कराने से मोदी सरकार पहले ही इंकार कर चुकी है, क्योंकि उसे लगता है कि इससे सवर्ण जातियों के मतदाता उससे नाराज हो सकते हैं. इसीलिए बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना कराने को तैयार नहीं है, लेकिन बिहार की सियासी समीकरण को देखते हुए पक्ष में है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा कि अदालत के फैसला का स्वागत करते हैं और हम पहले से ही जातीय जनगणना कराने के लिए राजी थे. वहीं, केंद्रीय गृहराज्य मंत्री नित्यानंद ने संसद में कहा था कि जातिगत जनगणना कराने का कोई इरादा नहीं है. ऐसे में विपक्ष को लगता है कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी को कठघरे में खड़े करके ओबीसी वोटबैंक को अपना पाले में लाया जा सकता है, जो 2014 से पीएम मोदी के नाम पर पार्टी के साथ खड़ा है.
सियासत में OBC मतदाताओं की भूमिका अहम
बीजेपी की सियासी मजबूती में ओबीसी मतदाताओं की अहम भूमिका रही है. नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करके बीजेपी ने ओबीसी वोटों को अपने साथ जोड़े रखने में सफल रही है. पीएम मोदी ने आगरा की रैली में खुद को ओबीसी नेता बताकर सियासी संदेश देने की कोशिश की थी. इसके बाद यूपी से लेकर बिहार और देश के दूसरे राज्यों में भी ओबीसी का झुकाव बीजेपी की तरफ हुआ. 2024 के चुनाव में भी बीजेपी का पूरा फोकस ओबीसी वोटों को सहेजकर रखने का है, जिसके लिए अनुप्रिया पटेल से लेकर ओम प्रकाश राजभर, संजय निषाद, उपेंद्र कुशवाहा जैसे ओबीसी नेताओं को अपने साथ मिलाया है.
विपक्षी दल इस बात को समझ गए हैं कि ओबीसी वोटों को बिना साथ लिए बीजेपी को मात नहीं दी सकती है. इसीलिए कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि सपा से लेकर आरजेडी, जेडीयू, डीएमके सहित कई विपक्षी दलों के नेताओं ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं. राहुल गांधी ने भी कर्नाटक चुनाव के दौरान भी जातिगत जनगणना की मांग उठाते हुए कहा था कि पिछड़े, दलितों के विकास के लिए जातिगत जनगणना जरूरी है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा था, ‘जिसकी जितनी भागेदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’. जातिगत आधार पर जनगणना की मांग कर विपक्ष दलितों और पिछड़ों के बड़े वोट को अपने पक्ष में लाने की रणनीति है.
विपक्ष को काउंटर करने का BJP प्लान
विपक्षी गठबंधन जिस समय जातिगत जनगणना की बिसात पर बीजेपी के खिलाफ चक्रव्यूह रच रहा है, उस दौरान ओबीसी आरक्षण के लेकर रोहिणी कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है. अब सभी की निगाहें मोदी सरकार पर टिकी हुई हैं कि क्या रोहिणी कमीशन की सिफारिशों को लागू किया जाएगा. 2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश और विपक्षी की जातिगत जनगणना को काउंटर करने के लिए रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का दांव चल सकती हैं, क्योंकि इससे ओबीसी की सियासत करने वाले दलों और विपक्षी रणनीति के मंसूबों पर पानी फिर सकता है.
ओबीसी आरक्षण तीन श्रेणी में बंटेगा?
ओबीसी के दायरे में करीब 27 जातियां आती हैं, लेकिन आरक्षण का लाभ चंद ओबीसी जातियों को ही मिल रहा है. अक्सर यह आरोप लगते रहे है कि 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ यादव, कुर्मी, जाट, गुर्जर, मौर्य, कुशवाहा और लोधी जैसी ही गिनी चुनी जातीय के लोगों को मिल रहा है. इसके अलावा ओबीसी की बाकी ओबीसी जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित रह जाती हैं. रोहिणी कमीशन के रिपोर्ट में भी यह माना है कि एक हजार के करीब ओबीसी जातियां हैं, जिन्हें आज तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका है. ओबीसी की तमाम अतिपिछड़ी जातियां 27 फीसदी आरक्षण को तीन भागों में बांटने की मांग उठाता रहा है, जिसकी तरफ रोहिणी कमीशन ने भी इशारा किया हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव के सियासी समीकरण को देखते हुए मोदी सरकार रोहिणी कमीशन की सिफारिशों को लागू करने का दांव चल सकती है. इस दांव से बीजेपी जातिगत जनगणना के मांग को भी काउंटर कर सकती है तो ओबीसी के लामबंदी की रणनीति की भी हवा निकाल सकती है. इससे अति पिछड़ी जातियां बीजेपी के पक्ष में लामबंद हो सकती है, लेकिन कुछ ओबीसी जातियां छिटक सकती हैं. ऐसे में देखना है कि मोदी सरकार क्या रोहिणी कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाएगी?