नई दिल्ली: आज के वक्त में टेक्नोलॉजी किसी भी देश की ग्रोथ के लिए जरूरी है। यही वजह है कि हर एक देश टेक्नोलॉजी लिहाज से मजबूत होना चाहता है और खुद को सबसे आगे रखना चाहता है। यही वजह है कि भारत ने भी 5G के बाद 6G की तरफ कदम बढ़ा दिया है। हालांकि भारत की उम्मीदों को जोरदार झटका लग सकता है। एक्सपर्ट दावा कर रहे हैं कि 6G टेक्नोलॉजी पेटेंट के मामले में भारत को ग्लोबली चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
क्या हैं भारत के 6G में पिछले की वजह?
दरअसल ग्लोबली 6G पेटेंट का 10वां हिस्सा हासिल करना चाहता है, लेकिन 6G रिसर्च के लिए भारत को अरबों डॉलर की फंडिंग चाहिए, जो उसे अभी तक हासिल नहीं हुई है। साथ ही भारत को मौजूदा 4G और 5G नेटवर्क को अपग्रेड करना होगा, जिससे वो छठी जनरेसन वायरलेस ब्रॉडबैंड टेक्नोलॉजी को सपोर्ट कर सकें।
6G में चीन अमेरिकी से पिछड़ सकता है भारत
वही दूसरी ओर से चीन तेजी से 6G टेक्नोलॉजी की तरफ कदम बढ़ा रहा है। चीन 6G रिसर्च के मामले में मजबूत प्लेयर बनकर उभरा है। ड्रैगन ने टेलिकॉम रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए 1.55 ट्रिलियन डॉलर की फंडिंग हासिल की है। इंडस्ट्री के अनुमान की मानें, तो अमेरिका और चीन ने टेक रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए अपनी जीडीपी का 2 से 3 फीसद बजट बनाया है।
6G के लिए भारत का बजट काफी कम
ET की रिपोर्ट की मानें, तो इंडस्ट्री के टॉप एक्जीक्यूटिव ने वित्त वर्ष 2025 के लिए टेलिकॉम सेक्टर में रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए 1,100 करोड़ रुपये बजट आवंटित किया है, जिसे लेकर एक्सपर्ट ने चिंता जाहिर की है। क्योंकि भारत का टेक रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेक्टर के लिए बजट कुल जीडीप का 0.03 फीसद है, जो कि चीन और अमेरिका से काफी कम है। इस बजट में इंडियाएआई मिशन और डिजाइन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना को भी शामिल किया गया है।
6G पेटेंट के लिए सरकार का लक्ष्य तय
एक्सपर्ट की मानें तो यह 6G को लेकर सरकार का कमजोर प्रयास है। ऐसे में एआई और बाकी सेक्टर के बजट को हटा दें, तो डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकम्यूनिकेशन के लिए बजट मात्र 400 करोड़ रुपये रह जाता है। केंद्र सरकार की ओर से लक्ष्य तय किया गया है कि साल 2030 तक भारत का 6G पेटेंट ग्लोबल पेमें का 10 फीसद हो सकता है।