भारत के प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल का कहना है कि दुनियाभर में जारी की जाने वालीं विभिन्न रैंकिग सूचियों का विरोध किया जाएगा क्योंकि वे एजेंडा आधारित होती हैं और उनके कारण व्यापार में नुकसान होता है. दुनिया की विभिन्न एजेंसियां प्रशासन, भ्रष्टाचार, मीडिया की आजादी, भुखमरी और खुशहाली जैसे विषयों पर रैंकिंग जारी करती हैं, जिनमें से कई में भारत की रैंकिंग लगातार खराब हो रही है. मसलन, हाल ही में जारी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग सबसे निचले देशों में आंकी गई है.
सान्याल ने कहा कि भारत ने इस रैंकिंग का मुद्दा विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि ये सूचियां उत्तरी अटलांटिक से काम करने वाले थिंक टैंकों के छोटे समूहों द्वारा तैयार की जाती हैं और इन्हें तीन-चार एजेसियों से फंड मिलता है, जो “दुनिया का असली एजेंडा निर्धारित कर रही हैं.’
सान्याल ने कहा, “यह सिर्फ किसी तरह का माहौल बनाने की कोशिश नहीं है. इसका व्यापार, निवेश और अन्य गतिविधियों पर सीधा असर होता है.”
भारत की खराब रैंकिंग
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भी नीचे आई है. यह रैंकिंग रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स नाम की संस्था द्वारा जारी की जाती है. रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स फ्रांस के पेरिस से काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जिसे 1985 में पूर्व पत्रकार और दक्षिणपंथी राजनेता रोबेर्ट मेनार्ड ने स्थापित किया था.
अकादमिक फ्रीडम इंडेक्स में भी भारत को पाकिस्तान और भूटान से नीचे जगह मिली है. यह रैंकिंग वी-डेम इंस्टीट्यूट द्वारा जारी की जाती है. 2014 में स्थापित यह गैर सरकारी संस्था स्वीडन के गोथेनबर्ग शहर से काम करती है. सान्याल ने कहा कि पिछले एक साल में भारत ने विभिन्न मंचों पर वर्ल्ड बैंक, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और यूएनडीपी जैसी संस्थाओं द्वारा तैयार की जाने वाली सूचियों की प्रक्रिया में खामियों को रेखांकित किया है.
उन्होंने कहा, “वर्ल्ड बैंक इस चर्चा में शामिल है क्योंकि वह इन थिंक टैंकों से राय लेता है और फिर वर्ल्ड गवर्नेंस इंडेक्स जारी कर उनकी राय को वैधता प्रदान करता है.”
विकासशील देशों का सवाल
इस बारे में समाचार एजेंसियों ने वर्ल्ड बैंक, रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स, वी-डेम इंस्टीट्यूट आदि से टिप्पणी मांगी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. यूएनडीपी ने रॉयटर्स से कहा कि वह कुछ समय बाद टिप्पणी जारी करेगा.
प्रेस की आजादी की रैंकिंग में क्यों फिसला जर्मनी
सान्याल कहते हैं कि ये रेटिंग ईएसजी (एनवायर्नमेंट, सोशल, गवर्नेंस) मानकों के साथ मिलकर फैसलों को प्रभावित करती हैं, मसलन, विकास बैंक ऐसी परियोजनाओं को कर्ज देते हैं, जो ईएसजी मानकों को पूरा करती हों. उन्होंने कहा, “ईएसजी मानक होना अपने आप में कोई समस्या नहीं है. समस्या है कि ये मानक कैसे परिभाषित किए जाते हैं और कौन इन्हें प्रमाण पत्र देता है. फिलहाल जिस तरह से चीजें आगे बढ़ रही हैं, उनमें विकासशील देशों को विमर्श से बाहर कर दिया गया है.”
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक भारत के एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि यह मुद्दा कैबिनेट की बैठकों में भी इस साल कई बार उठाया जा चुका है. हालांकि कैबिनेट सचिवालय और वित्त मंत्रालय ने इसकी पुष्टि नहीं की. सान्याल कहते हैं कि अन्य विकासशील देश भी इस मामले को लेकर चिंतित हैं क्योंकि यह “एक तरह या नव-साम्राज्यवाद” है.