गौरव अवस्थी
नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्म 17 अप्रैल 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के इब्राहिम पट्टी गांव में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा रामकरण इंटर कॉलेज भीमपुरा से पूरी हुई। विद्यार्थी राजनीति में उन्हें फायर ब्रांड नेता के रूप में पहचान मिली। 1962 से 1977 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे 1977 में पहली बार वह बलिया लोकसभा सीट से चुनकर संसद में पहुंचे। उन्होंने बलिया लोकसभा सीट का संसद में आठ बार प्रतिनिधित्व किया। अपनी नीति से उन्होने भारतीय राजनीति को कई नए आयाम भी दिए। कांग्रेस के बाहरी समर्थन पर 1991 में केंद्र में सात महीने तक अल्पमत की सरकार भी चलाई। प्रधानमंत्री बनने के बाद चंद्रशेखर ने अधिकांश समय प्रधानमंत्री निवास के बजाय अपने इसी आश्रम में बिताया और समस्याओं के समाधान हर खोजते और निकालते रहे। सफल और सार्थक संसदीय जीवन के लिए 1995 में उन्हें ‘आउटस्टैंडिंग पार्लियामेंट अवार्ड’ से सम्मानित भी किया गया। अंतिम समय में चंद्रशेखर जी लाइलाज मर्ज कैंसर की चपेट में आए। 3 मई 2007 को उन्हें गंभीर अवस्था में नई दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 8 जुलाई 2007 को वह जिंदगी की जंग हार गए।
चंद्रशेखर भारतीय राजनीति के ऐसे चमकते सितारे थे, जिन्होंने 1977 में जनता पार्टी की संयुक्त सरकार में लाल बत्ती का मोह छोड़कर जनता पार्टी के मुखिया का दायित्व संभालने में ज्यादा रुचि दिखाई थी। 3 साल बाद ही गिरी इस संयुक्त सरकार और इंदिरा गांधी की पुनर्वापसी के बीच भारतीय राजनीति का वह दौर उथल-पुथल भरा था। गैर कांग्रेसी दलों की सक्रियता ‘टेकऑफ’ और लैंडिंग के बाद फिर टेकऑफ की तैयारी में थी। इसी दौर में चंद्रशेखर राजनीति की नई ‘इबारत’ लिखने और मूल समस्याओं पर विचार एवं चिंतन के लिए 6 जनवरी 1983 को कन्याकुमारी से 4250 किलोमीटर की पदयात्रा पर निकले।
आपातकाल (25 जून 1977) की आठवीं बरसी 25 जून 1984 को उनकी इस पदयात्रा का समापन राजघाट पर बापू की समाधि पर हुआ। यात्रा के दौरान चंद्रशेखर कई स्थानों पर रुके और रहे। यही वह समय था जब युवा तुर्क को राजनीति से इतर समस्याओं के लिए विचार विनिमय के लिए आश्रमों की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने केरल के पालघाट, तमिलनाडु के सेलम, कर्नाटक के कनकपुरा- बेंगलुरू, महाराष्ट्र के पुणे, मध्यप्रदेश के निवाड़ी और कटनी, पश्चिम बंगाल के पूर्णिया, झारखंड के कालाहांडी, उत्तर प्रदेश के लखनऊ एवं बहराइच और हरियाणा के भोंडसी में भारत यात्रा केंद्र स्थापित किए। इनमें सबसे पहला भोंडसी आश्रम (गुरुग्राम) था। उन्होंने नवगठित हरियाणा राज्य में अरावली पर्वतमाला के इस हिस्से को सबसे उपयुक्त पाया, जहां पानी की समस्या विकराल थी। उनका संकल्प और भोंडसी ग्राम पंचायत का आग्रह अरावली पहाड़ों की तलहटी में भारत यात्रा केंद्र की स्थापना का आधार बना।
देश के दूसरे सबसे बड़े आईटी सिटी गुरुग्राम के प्रमुख केंद्र राजीव चौक से सोहना रोड (अब फोरलेन हाइवे) पर 9 किलोमीटर आगे दाहिनी ओर का लिंक मार्ग भोंडसी आश्रम को जाता है। अरावली पहाड़ों के बीच बसा भारत यात्रा केंद्र ‘भोंडसी आश्रम’ नाम से ही ज्यादा चर्चा में रहा है। कभी यह आश्रम देश की सियासत का ‘पहाड़’ हुआ करता था। आज इस आश्रम के चिन्ह आश्रम में ही ढूंढने मुश्किल हैं। पानी की समस्या के हल के लिए ही चंद्रशेखर ने अपने इस आश्रम में पौधारोपण को प्रमुखता दी। उन्हीं के प्रयासों का फल था कि यहां कुछ ही वर्षों में आम, आंवला, नीम, पाकड़ आदि समेत फल-फूलदार वाले 30-35 लाख से अधिक पौधे रोपे गए। समय के साथ यह पौधे पेड़ बने। अरावली का यह सूखा पहाड़ हरा-भरा हुआ। भूजल संरक्षण की दिशा में सार्थक प्रयास हुआ।
समय पलटा और पहाड़ की किस्मत भी। चंद्रशेखर का यह आश्रम कानूनी जाल में उनके समय में ही उलझना शुरू हो गया। पदयात्रा में शामिल रहे एक अधिवक्ता की जनहित याचिका पर करीब 588 एकड़ से अधिक भूमि पर बने इस आश्रम की अधिकांश जमीन भारत यात्रा ट्रस्ट को वर्ष 2002 में हरियाणा सरकार को लौटानी पड़ी। आश्रम के सुरक्षित हिस्से में रह रहे पदयात्री उमेश चतुर्वेदी बताते हैं कि हरियाणा सरकार को जमीन लौटाते वक्त लिखापढ़ी में 21 लाख पेड़ का जिक्र भी हुआ था। आज यह पेड़ पानी की एक बूंद के लिए तरसते हैं। रही सही कसर वर्ष 2007 में चंद्रशेखर के निधन के बाद भारत यात्रा ट्रस्ट पर कब्जे को लेकर आपस में छिड़ी जंग पूरी कर रही है। दिल्ली हाईकोर्ट के ‘स्टे आर्डर’ से भोंडसी में ट्रस्ट के पास सुरक्षित 35 एकड़ जमीन पर खड़े करीब 25 हजार वृक्षों को भी अब बारिश के अलावा पानी की एक बूंद मयस्सर नहीं है।
आश्रम में पहाड़ की तलहटी पर बनाया गया सूखा तालाब चिल्ला-चिल्लाकर भूजल संरक्षण की पुरानी कहानी सुनाता है। तालाब के चारों तरफ बनी सड़क कच्ची और हनुमान मंदिर एवं चंद्रशेखर के अस्थाई निवास (अब भुवनेश्वरी कला केंद्र) को जाने वाली सड़क सीमेंटेड है। कहने की जरूरत नहीं कि यह सड़कें भी बस नाम की रह गई हैं। कानूनी पचड़ों की वजह से ट्रस्ट भी सड़कों की तरह ही बस नाम का ही रह गया है। काम केवल हनुमान मंदिर आ रहा है। जहां पूजन-अर्चन विधिवत आज भी जारी है। कुछ दर्शनार्थी आज भी यहां माथा टेकने पहुंच जाते हैं। मंदिर में पुजारी का दायित्व चित्रकूट के पंडित शिवाशास्त्री और देखरेख का जिम्मा सुल्तानपुर के रहने वाले गौरीशंकर पांडेय के पास। बताया गया कि पांडेय जी भी चंद्रशेखर के सह पदयात्री रहे।
मंदिर के पहले ही दाहिने हाथ बना भव्य भवन और परिसर भी धीरे-धीरे जर्जर अवस्था को प्राप्त होता जा रहा है। इस भवन के मुख्य गेट पर ‘भुवनेश्वरी कला केंद्र’ का बोर्ड जड़ा हुआ है। उमेश चतुर्वेदी के अनुसार, यह भवन ही चंद्रशेखर का अस्थाई निवास हुआ करता था। चंद्रशेखर के पारिवारीजनों ने बोर्ड जबरदस्ती लगा दिया। उन्हें उनकी नीयत में खोट दिखता है। गेट के बाहर और अंदर कुछ टूटी-फूटी मूर्तियां केंद्र की बदहाली की जीती जागती मिसाल हैं। गौशाला भवन भी बिना गायों के सूना-सूना सा है। कभी देश की सियासत का केंद्र रहने वाले इस भोंडसी आश्रम की दुर्दशा अब आपसे देखी नहीं जाएगी। यहां आने वाले को निराशा ही हाथ लगती है।
पूर्व प्रधानमंत्री होने के नाते चंद्रशेखर की समाधि नई दिल्ली के राजघाट पर है लेकिन भारत यात्रा केंद्र भोंडसी में अस्थाई निवास के सामने भी उनकी एक समाधि बनी हुई है। चिरनिद्रा में विलीन भारतीय राजनीति का यह योद्धा खामोशी के साथ अपने सपने को दिन-प्रतिदिन बिखरते देख रहा है।