नई दिल्ली। भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पीओके के आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद परमाणु हथियारों को लेकर बहस तेज हो गई है। भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु संपन्न देश हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी देश जब चाहे परमाणु बम का इस्तेमाल कर सकता है। परमाणु हमला एक अत्यंत गंभीर और विनाशकारी निर्णय होता है, जिसे लेने से पहले कई स्तरों पर सोचना पड़ता है।
अंतरराष्ट्रीय कानून, राजनयिक दबाव, सैन्य रणनीति और आंतरिक सुरक्षा प्रक्रियाएं इस निर्णय में अहम भूमिका निभाती हैं। यही वजह है कि परमाणु हथियार होने के बावजूद अब तक इनका प्रयोग युद्ध में नहीं हुआ है। भारत और पाकिस्तान दोनों के पास आधुनिक बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली और परमाणु बम ले जाने की क्षमता है, लेकिन इनका उपयोग तभी संभव है जब स्थिति पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो जाए।
भारत-पाक के पास परमाणु ताकत, लेकिन उपयोग की सीमाएं
भारत ने 1974 में “स्माइलिंग बुद्धा” के नाम से पहला परमाणु परीक्षण किया था, जबकि पाकिस्तान ने 1998 में चगाई पहाड़ियों में परीक्षण कर दुनिया के सामने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। आज दोनों देशों के पास परमाणु हथियार और उन्हें ले जाने में सक्षम मिसाइलें मौजूद हैं। भारत के पास अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें हैं, वहीं पाकिस्तान के पास ग़ज़नवी, शाहीन और अब्दाली मिसाइल सिस्टम है। परंतु हथियारों की यह होड़ युद्ध में स्वतः प्रयोग की छूट नहीं देती।
भारत की ‘No First Use’ नीति और पाकिस्तान की अस्पष्ट स्थिति
भारत ने स्पष्ट रूप से ‘No First Use’ (पहले इस्तेमाल नहीं) की नीति को अपनाया है। इसका अर्थ है कि भारत तब तक परमाणु हमला नहीं करेगा जब तक उस पर परमाणु हमला न हो। पाकिस्तान ने ऐसी कोई औपचारिक नीति घोषित नहीं की है, लेकिन फिर भी परमाणु हमले का फैसला अकेले सैन्य नहीं होता—राजनीतिक नेतृत्व, वैश्विक प्रतिक्रियाएं और आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों की अनुमति इसके लिए जरूरी होती है।
परमाणु हमले पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और परिणाम
परमाणु हमला करने वाले देश को न सिर्फ भारी अंतरराष्ट्रीय आलोचना और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है, बल्कि उसे राजनीतिक अलगाव, आर्थिक पाबंदियों और जवाबी सैन्य कार्रवाई के लिए भी तैयार रहना पड़ता है। यही कारण है कि परमाणु हथियार होने के बावजूद विश्व में इनका इस्तेमाल आखिरी विकल्प ही माना जाता है। भारत की ओर से किए गए ऑपरेशन सिंदूर की वैश्विक स्तर पर प्रशंसा हो रही है क्योंकि यह एक सटीक, जिम्मेदार और सीमित सैन्य प्रतिक्रिया थी।