नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा, “हमारे पहले टर्म की शुरुआत में भारत, वर्ल्ड इकोनॉमी में दसवें नंबर पर था…। दूसरे टर्म में आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है…। तीसरे टर्म में, दुनिया की पहली तीन इकोनॉमी में एक नाम भारत का होगा।” इससे पहले 23 जून 2023 को उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करते हुए कहा था, “प्रधानमंत्री के रूप में मैंने पहली बार अमेरिका का दौरा किया तब भारत दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। आज यह पांचवें स्थान पर है और जल्दी ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।” केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार का मौजूदा कार्यकाल मई 2024 में खत्म होगा। अगर आम चुनाव में यह गठबंधन जीतता है तो तीसरा कार्यकाल 2029 तक होगा।
प्रधानमंत्री के इस बयान के राजनीतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं, लेकिन 2029 से पहले भारत का दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना वास्तविकता के काफी करीब है। वर्ष 2019-20 में भारत की जीडीपी का आकार 2.84 लाख करोड़ डॉलर था और सरकार ने 2024-25 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की जीडीपी का लक्ष्य तय किया था। यह लक्ष्य तो पूरा होता नहीं लग रहा, लेकिन आईएमएफ के अनुसार 2027 में भारत की जीडीपी का आकार 5.15 लाख करोड़ डॉलर होगा। उस साल जर्मनी की जीडीपी 4.95 लाख करोड़ डॉलर और जापान की 5.08 लाख करोड़ डॉलर की होगी। अभी अमेरिका और चीन के बाद जापान और जर्मनी विश्व की तीसरी और चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं।
एसबीआई रिसर्च ने अपनी नई इकोरैप रिपोर्ट में कहा है कि तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को हर साल डॉलर के लिहाज से औसतन 8.4% और रुपये के लिहाज से 11% से 11.5% नॉमिनल ग्रोथ की जरूरत होगी। स्थिर मूल्यों पर 6.5% से 7% ग्रोथ के आधार पर इस लक्ष्य को हासिल करना संभव है। एसबीआई ने इससे पहले 2029 में भारत के तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने का अनुमान जताया था।
2014 में भारत की नॉमिनल जीडीपी 2,039 अरब डॉलर की थी और विश्व जीडीपी में भारत का हिस्सा 2.6% था। इसके बाद 8 वर्षों में भारत रूस, इटली, ब्राजील, फ्रांस और इंग्लैंड को पीछे छोड़ते हुए 2015 में सातवीं, 2019 में छठी और 2022 में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
और लोग भी जता चुके हैं भारत के बारे में अनुमान
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अप्रैल 2023 में फ्रांस में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा था कि 2027-28 में भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा। उन्होंने कहा था कि अभी भारत की अर्थव्यवस्था 3.5 लाख करोड़ डॉलर की है, जो 2047 तक 30 से 35 लाख करोड़ डॉलर की हो जाएगी। गोयल से पहले नीति आयोग के पूर्व चेयरमैन अरविंद पानगड़िया भी यही बात कह चुके थे। पानगड़िया से भी पहले एसबीआई ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में अनुमान जताया था कि 2027 में भारत जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी और 2029 में जापान को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा। पिछले साल दिसंबर में एसएंडपी ने कहा था कि भारत 2030 में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा। मॉर्गन स्टैनली ने उसी समय 2031 में भारत के इस मुकाम पर पहुंचने की भविष्यवाणी की थी।
6.5% से 7% की विकास दर न्यू नॉर्मल
एसबीआई रिसर्च के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत की विकास दर 8% से अधिक रहने पर लगभग आम सहमति है। एसबीआई का अपना अनुमान 8.1% अथवा इससे अधिक का है। इस तरह मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की विकास दर 6.5% से अधिक हो सकती है। अनिश्चितता से भरे मौजूदा वैश्विक माहौल में 6.5% से 7% की विकास दर न्यू नॉर्मल है।
2075 में दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी होगा भारत
एसबीआई का यह भी दावा है कि 2022 से 2027 के दौरान हर दो साल में भारत की जीडीपी का आकार 0.75 लाख करोड़ डॉलर बढ़ेगा और 2047 तक 20 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा। गोल्डमैन साक्स ने इसी महीने (6 जुलाई) एक रिपोर्ट में अनुमान जताया कि 2075 तक अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। चीन सबसे बड़ी इकोनॉमी होगा। उसकी जीडीपी का आकार 57 लाख करोड़, भारत का 52.5 लाख करोड़ और अमेरिका का 51.5 लाख करोड़ डॉलर होगा। यूरो क्षेत्र की जीडीपी 30.3 लाख करोड़ डॉलर की होगी।
भारत के लिए एडवांटेज क्यों
गोल्डमैन साक्स रिसर्च के भारत स्थित अर्थशास्त्री शांतनु सेनगुप्ता के अनुसार, यहां की आबादी में बच्चों और बड़ों का अनुपात अन्य देशों से बेहतर है। यह भारत में मैन्युफैक्चरिंग, सर्विसेज और इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए अच्छा है। बच्चों और बड़ों की आबादी के अनुपात को देखते हुए कहा जा सकता है कि अगले 20 वर्षों के दौरान प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत की डिपेंडेंसी रेशियो (कामकाजी लोगों पर निर्भर गैर-कामकाजी लोग) सबसे कम होगी।
आधार से सरकारी सेवाओं की डिलीवरी आसान और लक्षित होगी, एमएसएमई के लिए कर्ज लेना आसान होगा, इससे उत्पादकता बढ़ेगी। भारत ने इनोवेशन और टेक्नोलॉजी में अनुमान से बेहतर तरक्की की है। लोगों की आमदनी बढ़ने और फाइनेंशियल सेक्टर के विकास से बचत दर और निवेश बढ़ने की संभावना है। सरकार ने हाल में काफी पूंजी निवेश किया है, लेकिन अब निजी कंपनियों और बैंकों की मजबूत स्थिति को देखते हुए निजी क्षेत्र भी पूंजीगत खर्च करने की स्थिति में है।
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के एमडी एवं सीईओ निमेश शाह के अनुसार, “राजकोषीय घाटा और करंट अकाउंट घाटा कम है, कच्चे तेल के दाम नीचे हैं, महंगाई नियंत्रण में है। हमारे बैंक भी बेहद मजबूत स्थिति में हैं। उनकी बैलेंस शीट अब साफ है। आज हर बहुराष्ट्रीय कंपनी जियो पॉलिटिकल जोखिम और इकोनॉमी पर इसके असर से वाकिफ है। इन परिस्थितियों में भारत निवेश के डेस्टिनेशन के तौर पर उभरकर सामने आ रहा है।”
पीरामल एंटरप्राइजेज के मुख्य अर्थशास्त्री देबोपम चौधरी पूंजी की जरूरत बताते हुए कहते हैं, “रणनीति ऐसी होनी चाहिए जिसमें पर्याप्त पूंजी और कर्ज प्रवाह के लिए प्रावधान हो। भारत को निर्माताओं और उद्यमियों को कर्ज देने के लिए विभिन्न स्रोतों की जरूरत है, ताकि बैंकिंग प्रणाली पर भार कम हो। कर्ज का पर्याप्त प्रवाह प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) जैसे कदमों के पूरक के तौर पर काम करेगा।”नई मैन्युफैक्चरिंग नीति में 2025 तक जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढ़ाकर 25% करने का लक्ष्य है। वर्ष 2030 तक भारत की एक ट्रिलियन डॉलर के वस्तुओं की निर्यात क्षमता विकसित करने की योजना है।
निर्यात पर फोकस बढ़ाना होगा
भारत अभी तक घरेलू मांग पर आधारित अर्थव्यवस्था रहा है। तेज विकास के लिए निर्यात पर फोकस बढ़ाना होगा। देबोपम चौधरी के मुताबिक, “एक संतुलित और निर्यातोन्मुखी विकास की रणनीति अपनाना सही नजरिया हो सकता है। इस रणनीति से हम भारत की युवा आबादी का भी लाभ उठा सकते हैं।” भारत ने 13 देशों/क्षेत्रों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) अथवा क्षेत्रीय व्यापार समझौते (आरटीए) किए हैं। कनाडा, इंग्लैंड और यूरोपियन यूनियन के साथ एफटीए की बात चल रही है।
निमेश शाह के अनुसार, टेक्सटाइल, केमिकल, फार्मा समेत अनेक इंडस्ट्री में बहुराष्ट्रीय कंपनियां पहले की तुलना में भारतीय कंपनियों के पास अधिक आ रही हैं। इसलिए हमारा निर्यात प्रदर्शन भी अच्छा है। पिछले वित्त वर्ष हमने 770 अरब डॉलर का रिकॉर्ड निर्यात किया।
भारत का कर्ज-जीडीपी अनुपात बेहतर
बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में तुलना करें तो भारत जीडीपी की तुलना में कर्ज के मामले में भी बेहतर स्थिति में है। इसका मतलब है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए और कर्ज ले सकता है। कर्ज-जीडीपी अनुपात किसी देश की आर्थिक सेहत और स्थिरता को दर्शाता है। कम अनुपात वाले देशों के बारे में कहा जा सकता है कि वे अपना कर्ज अपेक्षाकृत आसानी से लौटा सकेंगे। कर्ज-जीडीपी का अनुपात 77% से अधिक होने पर देश का आर्थिक विकास प्रभावित हो सकता है, वह देश कर्ज लौटाने में डिफॉल्ट कर सकता है।
प्रति व्यक्ति जीडीपी बढ़ाना जरूरी
इतने एडवांटेज हैं तो कुछ कमजोरियां भी हैं। समृद्ध इकोनॉमी का एक अहम संकेत प्रति व्यक्ति जीडीपी को माना जाता है। भारत में 2013-14 से 2022-23 के दौरान यह औसतन 5.8% की दर से बढ़ा है। 2013-14 में यह 189 देशों की सूची में 143वें स्थान पर था, अभी यह 141वें स्थान पर है। इस दौरान हम सिर्फ निकारागुआ, उज़्बेकिस्तान, नाइजीरिया, घाना, केन्या जैसे देशों को ही पीछे छोड़ने में सफल रहे हैं। यहां तक कि बांग्लादेश भी इस मामले में हमसे आगे निकल गया है। जीडीपी आकार में 2014 के बाद भारत ने ब्राजील, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड को पीछे छोड़ा है, लेकिन उनकी प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत की तुलना में बहुत अधिक है।
सेनगुप्ता के अनुसार, प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट बढ़ाना होगा। हाल के वर्षों में इसमें गिरावट आई है। इसमें सुधार नहीं होना भारत के लिए जोखिम भरा हो सकता है। इसके लिए लोगों को प्रशिक्षित करना और उनका कौशल बढ़ाना जरूरी है। इसके अलावा आयात का जोखिम भी है। भारत कच्चा तेल, खाद्य तेल समेत अनेक कमोडिटी का बड़े पैमाने पर आयात करता है। इनके दाम बढ़ने पर इकोनॉमी में असंतुलन का खतरा बढ़ेगा।