नई दिल्ली: भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच बार-बार यह कह रहे हैं कि भारत जल्द ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन सकता है। जयशंकर यह भी कह रहे हैं कि यह और जल्दी तब हो सकता है जब देश के पास ऐसा प्रधानमंत्री हो जिसको कोई भी ना नहीं कह सकता। भारत सरकार लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए जोर रही है ताकि विकासशील देशों के हितों का बेहतर तरीके से प्रतिनिधित्व किया जा सके। भारत को अमेरिका से लेकर रूस तक का समर्थन मिल गया है। इसके बाद भी अभी तक इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हो पाई है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह हमारा पड़ोसी मुल्क चीन और उसका आर्थिक गुलाम बन चुका पाकिस्तान है। आइए समझते हैं कि चीन क्यों संयुक्त राष्ट्र में भारत की राह का सबसे बड़ा कांटा बन गया है…
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की दावेदारी का हाल ही में रूस और अमेरिका ने खुलकर समर्थन किया था। भारत में रूस के राजदूत डेनिस अलिपोव ने कहा कि भारत ने ज्यादातर महत्वपूर्ण विषयों पर संतुलित और स्वतंत्र रवैया अपनाया है। भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए हकदार है। राष्ट्रपति पुतिन ने भी हाल ही में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय कानून को वर्तमान जरूरत के हिसाब से होना चाहिए। सुरक्षा परिषद में अभी ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और अमेरिका स्थायी सदस्य हैं। भारत को मिल रहे इस चौतरफा सपोर्ट के बाद चीन ने तय कर लिया है कि वह एशिया में अकेला ऐसा देश होगा जो सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बना रहेगा। यही नहीं चीन रूस की राय को भी भाव नहीं दे रहा है जो अभी उसका सबसे करीबी दोस्त बन गया है।
‘भारत के प्रभाव को सीमित करना चाहता है चीन’
सरदार पटेल विश्वविद्यालय में सहायक प्रफेसर विनय कौरा का मानना है कि रूस के भारत को बार-बार सपोर्ट देने के बाद भी चीन उससे प्रभावित नहीं हो रहा है। चीन सुरक्षा परिषद में सुधार के प्रयासों का कड़ा विरोध कर रहा है जिससे भारत के सदस्य बनने का रास्ता खुल सकता है। उन्होंने कहा कि एशिया में चीन अकेला ऐसा देश है जो सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता रखता है और वह अपने विशेष दर्जे को खोना नहीं चाहता है। चीन और भारत के बीच रिश्ते गलवार हिंसा के बाद रसातल में चले गए हैं। दोनों देशों ने 50-50 सैनिक और बड़े पैमाने पर हथियार सीमा पर तैनात किया है। विनय कौरा कहते हैं कि भारत विरोध के पीछे चीन की रणनीति यह है कि भारत के रणनीतिक प्रभाव को क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर कम और सीमित किया जाए।
उधर, चीन का दावा है कि वह सुरक्षा परिषद में सुधार का समर्थन करता है लेकिन कोई प्रस्ताव देने से बच रहा है। चीन का कहना है कि विकासशील देशों को ज्यादा अधिकार दिया जाना चाहिए। पिछले साल चीन के शीर्ष राजनयिक और वर्तमान में विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था कि सुधारों के जरिए विकासशील देशों को शामिल किया जाए। साथ ही और ज्यादा छोटे तथा मध्यम आकार के देशों को सुरक्षा परिषद में निर्णय निर्माण प्रक्रिया में शामिल होने का मौका दिया जाए। भारत के अलावा ब्राजील, जापान और जर्मनी भी स्थायी सदस्यता के लिए दावा ठोक रहे हैं और जी-4 गुट बनाया है। इस गुट का पाकिस्तान का कॉफी क्लब विरोध कर रहा है। पाकिस्तान को चीन की शह हासिल है।
भारत को क्या जल्द मिल सकती है स्थायी सदस्यता?
इंटरनैशनल क्राइसिस ग्रुप में यूएन डायरेक्टर रिचर्ड गोवान का कहना है कि भारत ने सुरक्षा परिषद में सुधारों को लेकर पूरी ताकत लगा रखी है। उन्होंने कहा, ‘भारत पूरी तरह से अटल है कि उसे स्थायी सीट दी जाए। भारत इसको लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है।’ पीएम मोदी ने भी पिछले दिनों मांग की थी कि उसे संयुक्त राष्ट्र में सही जगह दी जाए। गोवान कहते हैं कि निश्चित रूप से चीन चाहता है कि वह एशिया में अकेली ऐसी ताकत बना रहे जिसे सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता हासिल हो। साथ ही भारत को बाहर रखा जाए। उन्होंने कहा कि अगर जापान को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिलती है तो यह चीन के लिए रेड लाइन होगा। ऐसा होता है तो चीन टेंशन में आ जाएगा।
गोवान ने कहा कि चीन वीटो पावर का इस्तेमाल पाकिस्तानी आतंकियों को बचाने में कर चुका है। अगर भारत को बराबरी का हक मिलता है तो इससे उसका एशियाई कूटनीति में प्रभाव कम हो जाएगा। सुरक्षा परिषद में सुधारों को लेकर एक बड़ा पेच वीटो पावर को लेकर है। अभी 5 स्थायी सदस्यों के पास ही वीटो पावर है और उनके अंदर इस बात को लेकर बहुत ज्यादा असहमति है कि ‘क्या’ और ‘किस’ तरह से वर्तमान वीटो के प्रावधानों को नए सदस्य देशों को दिया जाए। गोवान कहते हैं कि ये 5 स्थायी सदस्य सुधारों के मुद्दे को कई बार उठाते रहते हैं ताकि भारत और ब्राजील जैसे देशों को लुभाया जा सके जो स्थायी सदस्यता के लिए दावा कर रहे हैं। हालांकि हकीकत यह है कि कोई भी नहीं समझता है कि सुरक्षा परिषद में सुधार निकट भविष्य में होने जा रहे हैं।