नई दिल्ली। रूस के तानाशाह जोसेफ स्टालिन ने कहा था, ‘आर्टिलरी यानी तोपखाना युद्ध का देवता है।’ जिसका मतलब था कि तोपें जंग की तस्वीर बदल देती हैं। 1947 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन हुआ और संपत्तियों का बंटवारा हुआ तो भारतीय तोपखाने के हिस्से 25 पाउंडर फील्ड गन आई थीं, जिसकी रेंज मुश्किल से 12 किलोमीटर थी, लेकिन 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध और 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारतीय सेनाओं के आधुनिकीकरण की जरूरत महसूस की गई। जिसके बाद 1968 में रूस से 130 एमएम की मीडियम आर्टिलरी गन खरीदीं गईं, जिनकी रेंज 27 किमी थी।
उसके बाद डीआरडीओ ने 105 मिमी भारतीय फील्ड गन की डिजाइनिंग शुरू की और 1978 तक पहली तोप तैयार भी हो गई। 80 के दशक में स्वीडन से 155 एमएम वाली हॉवित्जर बोफोर्स तोपें खरीदी गईं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई। लेकिन अब रूस-यूक्रेन युद्ध से सबक लेते हुए सेना अब कई कैलिबर की गन रखने की बजाए 155 एमएम कैलिबर वाली गनों पर फोकस कर रही है। इसके अलावा भारतीय सेना अपनी तोपखाना क्षमता को और मजबूत करने के लिए जल्द ही अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर, के-9 वज्र, धनुष और सारंग तोपों की और रेजिमेंटों को शामिल करने पर विचार कर रही है।
एमजीएस और टीजीएस का ट्रायल 2025 में शुरू
भारतीय सेना की आर्टिलरी डिवीजन के डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेंट जनरल अदोश कुमार के मुताबिक, सेना एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS), माउंटेड गन सिस्टम (MGS) और टोड गन सिस्टम (TGS) को शामिल करने के अलावा दूसरे 155 मिमी गन सिस्टम को भी शामिल करने की प्रक्रिया में हैं। एटीएजीएस को डीआरडीओ ने दो निजी कंपनियों के साथ मिल कर डिजाइन और डेवलप किया है। इसका कॉन्ट्रैक्ट जल्द ही पूरा होने की संभावना है। एमजीएस और टीजीएस दोनों का ट्रायल 2025 में शुरू होने की संभावना है।
उन्होंने आगे बताया कि हमने अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर (यूएलएच), सेल्फ प्रोपेल्ड के-9 वज्र, धनुष और सारंग जैसी कई 155-एमएम कैलिबर वाली तोपें खरीदी हैं। के-9, धनुष और सारंग की और रेजिमेंट जल्द ही भारतीय सेना में शामिल की जाएंगी। वहीं रक्षा मंत्रालय ने भी 100 के-9 गनों की खरीद के अनुरोध को मान लिया है। उन्होंने आगे बताया कि सेना दूसरे 155-एमएम गन सिस्टम की खरीद पर भी विचार कर रही है, और इन्हें खरीदने की प्रक्रिया भी जारी है। इसके अलावा आर्टिलरी सिस्टम, टोड गन सिस्टम (टीजीएस) या एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) या माउंटेड गन सिस्टम (एमजीएस) की खरीद के लिए आवश्यकता की स्वीकृति (एओएन) भी मिल चुकी है।
2042 तक 155 एमएम में तब्दील हो जाएंगी सभी तोपें
लेफ्टिनेंट जनरल अदोश कुमार ने बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध से सबक मिला है कि टारगेट को शूट करने का वक्त 5-10 मिनट से घटकर मात्र एक या दो मिनट रह गया है। मीडियमाइजेशन के सवाल पर उन्होंने कहा कि 155-मिमी को सभी तोपों का मानक कैलिबर बनाने की योजना भी शुरू कर दी है, जिसके 2042 तक पूरा होने की उम्मीद है। बता दें कि आर्टिलरी रेजिमेंट ने ऑपरेशन ब्रांच के साथ मिलकर एक स्टडी की है, जिसके बाद सेना आर्टिलरी प्रोफाइल में सेल्फ प्रोपेल्ड और माउंटेड गन सिस्टम पर विचार कर रही है।
अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर को उत्तरी सीमाओं पर किया तैनात
वहीं, सेना में फिलहाल सात एम777 यूएलएच और पांच के9-वज्र रेजिमेंट हैं। वहीं दो और गन सिस्टम 155 मिमी/52 कैलिबर एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) और माउंटेड गन सिस्टम (एमजीएस) के लिए भी रिक्वेस्ट ऑफ प्रपोजल (आरएफपी) जारी किए गए हैं। सेना को तकरीबन 300 गनों की तलाश है। इनमें अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर (ULH) को देश की उत्तरी सीमाओं पर तैनात किया गया है। क्योंकि वे वजन में हल्की होती हैं और उन्हें हेलीकॉप्टरों के जरिए नीचे ले जाया जा सकता है। वहीं, के-9 वज्र गन सिस्टम मैकेनाइज्ड ऑपरेशन के लिए बढ़िया हैं। जबकि धनुष तोपें बोफोर्स तोपों का इलेक्ट्रॉनिक अपग्रेड हैं, वहीं, सारंग गन सिस्टम को 130 मिमी से बढ़ाकर 155 मिमी कैलिबर किया गया है। जल्द ही बड़ी संख्या में K-9 वज्र, धनुष और सारंग तोपों को भी शामिल किए जा रहा है।
बता दें कि सेना ने नवंबर 2018 में M777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर तोपों (ULH) को शामिल किया था और इसकी सभी 145 तोपों को सेना में शामिल किया जा चुका है। इसके अलावा, 100 K9-वज्र सेल्फ प्रोपेल्ड गनों को भी शामिल किया गया है, वहीं डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल ने 100 और के-9 वज्र की खरीद को मंजूरी मिल चुकी है। इसके अलावा सेना ने बोफोर्स तोपों की तरह 114 धनुष और 300 सारंग गनों को 130 मिमी तोपों से 155 मिमी में अपग्रेड करने का भी ऑर्डर दिया है, जिसे अपगनिंग प्रोसेस कहा जाता है।
155 एमएम कैलिबर में अपग्रेड करने की वजह
भारतीय सेना आर्टिलरी शस्त्रागार में किसी भी नए कैलिबर की गनों को आए हुए लंबा अरसा बीत गया है। वहीं कैलिबर की लंबाई में सुधार हुए हैं। लेकिन गन का कैलिबर 155 मिमी ही रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब हथियारों की दौड़ तेज हुई, तो आर्टिलरी कैलिबर पर काम शुरू हुआ। सोवियत संघ ने 122 मिमी और 152 मिमी कैलिबर की तोपों को चुना, तो नाटो के देशों ने 155 मिमी कैलिबर का विकल्प चुना। जिसके बाद से छह दशकों से आर्टिलरी गन में एक ही कैलिबर का इस्तेमाल हो रहा है। अमेरिका, नाटो देशों और यहां तक कि भारतीय सेना ने भी 155 मिमी कैलिबर को चुनाने का फैसला किया है।
ज्यादा दूर तक मार करता है 155 मिमी का गोला
सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे उद्देश्य यह था कि सभी गनों में एक ही तरह का गोला-बारूद इस्तेमाल किया जाए, जिससे समय और पैसे की बचत होगी। वहीं कैलिबर में बढ़ोतरी से रेंज में भी बढ़ोतरी होती है और तोप का गोला ज्यादा दूर तक मार करता है। वहीं फायर रेट बताता है कि 155 मिमी एक मिनट के भीतर टारगेट पर ज्यादा मात्रा में बारूद ले जा सकता है। यही वजह है कि अमेरिकी सेना ने 1990 के दशक की शुरुआत में 203 मिमी एम 110 ए2 का इस्तेमाल बंद कर दिया था। सूत्रों का कहना है कि 105 मिमी से 155 मिमी तक कैलिबर बढ़ाने पर ज्यादा रेंज मिलती है। वहीं इससे गन का वजन भी बढ़ता है। 105 मिमी से 155 मिमी तक, वजन 4.38 गुना बढ़कर 14 टन हो गया है, जबकि रेंज 3.5 गुना बढ़ गई है।
भारतीय सेना के पास इस समय 155 मिमी/45 कैलिबर धनुष गन सिस्टम, 155 मिमी/45 कैलिबर सारंग गन सिस्टम, 155 मिमी/52 कैलिबर एडवांस्ड टोड गन सिस्टम (ATAGS), 155 मिमी/52 कैलिबर माउंटेड गन सिस्टम (एमजीएस) और 155 मिमी/52 कैलिबर टोड गन सिस्टम है।