प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को तेज गति से चलायमान रखने में बैंकों की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। इसलिए देश में बैंकों की स्थिति मजबूत होना अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक है। बैकों की मजबूत स्थिति का पता लगाने के लिए अन्य निष्पादन मानदंडो (जमाराशि एवं ऋणराशि में वृद्धि दर) के अतिरिक्त मुख्य रूप से पूंजी पर्याप्तता अनुपात एवं गैरनिष्पादनकारी आस्तियों के प्रतिशत को भी आंका जाता है। यदि ये दोनों अनुपात संतोषजनक स्थिति में पाए जाते हैं तो बैंकों की स्थिति को सामान्यतः अच्छा माना जाता है।
भारतीय बैंकों का पूंजी पर्याप्तता अनुपात, 31 मार्च 2022 को, बढ़कर 16.7 प्रतिशत के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है। यह अमेरिकी बैंकों, जिनका पूंजी पर्याप्तता अनुपात पूरे विश्व में बहुत अच्छे स्तर पर माना जाता है, के 16.3 प्रतिशत से भी अधिक है। इससे भारतीय बैंकों के अच्छे स्वास्थ्य का पता चलता है। भारतीय बैकों का प्रावधान राशि अनुपात (प्रोविजन कवरेज रेशो) भी मार्च 2021 के 67.6 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2022 में 70.9 प्रतिशत पर आ गया है।
इसी प्रकार भारतीय बैंकों की गैरनिष्पादनकारी आस्तियों की स्थिति में भी भरपूर सुधार हुआ है। भारतीय बैंकों की सकल गैरनिष्पादनकारी आस्तियां मार्च 2021 के 7.4 प्रतिशत के स्तर से मार्च 2022 में 5.9 प्रतिशत के स्तर पर नीचे आ गईं हैं, जो कि पिछले 6 वर्षों के दौरान सबसे निचला स्तर है। यह मार्च 2018 में 11.2 प्रतिशत के स्तर पर थीं। भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमान के अनुसार इनके मार्च 2023 में 5.3 प्रतिशत के स्तर पर आने की भरपूर सम्भावना हैं।
भारतीय बैंकों द्वारा वित्तीय वर्ष 2022 में अधिक मात्रा में किए गए प्रावधान के चलते शुद्ध गैरनिष्पादनकारी आस्तियों में भी अतुलनीय सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। यह मार्च 2021 के 2.4 प्रतिशत के स्तर से घटकर मार्च 2022 में 1.7 प्रतिशत पर आ गए हैं। मार्च 2018 में यह 6 प्रतिशत के स्तर पर थे। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान के अनुसार यह मार्च 2023 में 1.5 प्रतिशत के स्तर तक नीचे आने की सम्भावना है।
भारतीय बैंकों के पूंजी पर्याप्तता अनुपात एवं गैरनिष्पादनकारी आस्तियों में लगातार हो रहे सुधार के साथ ही अब इन बैंकों के ऋणराशि में भी वृद्धि दर तेजी से बढ़ रही है एवं नित नए रिकार्ड बना रही है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार 3 जून, 2022 को समाप्त पखवाड़े में बैंकों के ऋण में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 13.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह पिछले 3 साल में सर्वाधिक वृद्धि है। पिछले वर्ष इसी पखवाड़े में बैंक ऋण की वृद्धि दर महज 5.7 प्रतिशत थी। 3 जून, 2022 को समाप्त पखवाड़े में बैंकों ने 1.02 लाख करोड़ रुपये के ऋण वितरित किए हैं, जिससे बैंकों की ओर से दिया गया कुल ऋण बढ़कर 121.40 लाख करोड़ रुपये हो गया है। उल्लेखनीय है कि 20 मई, 2022 तक ऋण वृद्धि दर सालाना आधार पर 12.1 प्रतिशत की रही थी।
ऋणराशि में दो अंकों की वृद्धि दर होने के महत्वपूर्ण कारणों में कंपनियों की कार्यशील पूंजी की जरूरतों में तेजी आना है। कोरोना महामारी के दौर में आर्थिक गतिविधियों के बंद हो जाने के कारण कार्यशील पूंजी की मांग कम हो गई थी, परंतु देश में आर्थिक गतिविधियों के वापिस तेजी से पटरी पर लौटने के कारण कार्यशील पूंजी की मांग भी बढ़ गई है। हालांकि लगातार बढ़ रही मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक को हालिया मौद्रिक समीक्षाओं में रेपो दर में 140 आधार अंकों की बढ़ोतरी करनी पड़ी है फिर भी इसका असर बैंकों की ऋणराशि वृद्धि दर पर नहीं पड़ा है और ऋण की मांग तेज बनी हुई है।
इसके साथ ही, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की भी कर्ज देने की रफ़्तार बढ़ी है, जो पिछले 1 साल से स्थिर थी। खुदरा ऋण क्षेत्र की वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान आवास ऋण का है। वैसे, ऋण में वृद्धि की रफ़्तार को बढ़ाने के लिए भारतीय बैंकें अन्य खुदरा क्षेत्रों में भी उधारी देने पर ध्यान दे रहे हैं।
3 जून, 2022 को समाप्त पखवाड़े में ही बैकों की ऋणराशि में वृद्धि के साथ ही बैंकों में जमाराशि भी 1.59 लाख करोड़ रुपये से बढ़ी है, जिससे बैंकों में जमाराशि का स्तर बढ़कर 167.33 लाख करोड़ रुपये का हो गया है। चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 में अभी तक बैंकों में 2.5 लाख करोड़ रुपये की जमाराशि की वृद्धि दर्ज हुई है, जबकि सालाना आधार पर बैंकिंग व्यवस्था में जमाराशि में वृद्धि दर 9.3 प्रतिशत की रही है और ऋण जमा अनुपात का अंतर इस पखवाड़े में पिछले पखवाड़े की तुलना में बढ़ गया है।
वित्तीय वर्ष 2022-23 की प्रथम (अप्रेल-जून) तिमाही में बैंकिंग और अन्य वित्तीय संस्थानों के तिमाही परिणाम बहुत शानदार रहे हैं। ऐसा लगता है कि भारतीय बैंकें एवं अन्य वित्तीय संस्थान महामारी के नकारात्मक प्रभावों से पूरी तरह से उबर चुके हैं। ऋण की मांग मजबूत हुई है और डिजिटलाइजेशन की वजह से ऋण लागत में कमी आ रही है। साथ ही, बैंक अपने गैर निष्पादनकारी आस्तियों में भी कमी करने में सफल रहे हैं। भारतीय बैंकों की जमाराशि और ऋणराशि में भी वृद्धि देखी जा रही है। इन सभी प्रयासों का मिलाजुला असर भारतीय बैंकों की लाभप्रदता की स्थिति में भी अतुलनीय सुधार के रूप में देखने को मिला है। इन सभी कारकों के चलते विभिन्न बैकों के शेयरों की कीमत भी पूंजी बाजार में लगातार बढ़ती जा रही है। विदेशी संस्थागत निवेशक जो भारतीय शेयर बाजार में अभी तक शेयरों की लगातार बिकवाली कर रहे थे अब वे भारतीय कम्पनियों के वित्तीय परिणामों को देखते हुए एक बार पुनः भारतीय शेयरों में अपना निवेश बढ़ा रहे हैं। एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार 20 जुलाई को विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में 6,012 करोड़ रुपये का निवेश किया। सितंबर 2021 के बाद यह पहला महीना है, जब विदेशी निवेशकों ने बिकवाली के मुकाबले लिवाली अधिक की है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में भारी वृद्धि दर्ज हुई थी परंतु अभी हाल ही के समय में इनमे नरमी आई है। जुलाई 2022 माह के तीसरे सप्ताह में एवं बाद के समय में ब्रेंट क्रूड की कीमत में लगभग 8 प्रतिशत की नरमी आई है और यह अब 100 डॉलर प्रति बैरल के नीचे कारोबार कर रहा है। पिछले पांच हफ्तों में ब्रेंट क्रूड की कीमतें लगभग 18 प्रतिशत कम हुई हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में नरमी देखकर केंद्र सरकार द्वारा ईंधन पर लगाये गए अप्रत्याशित लाभ कर में भी कटौती की गई है। इससे मुद्रा स्फीति की दर में कुछ सुधार होने की सम्भावना बढ़ गई है एवं आने वाले समय में यदि मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में बनी रहती है सम्भव है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में वृद्धि नहीं की जाय। यदि ऐसा होता है तो ब्याज दरों में भी नरमी बनी रह सकती है और खुदरा ऋणों की मांग में वृद्धि हो सकती है। यह भारतीय बैंकों के लिए एक अच्छी खबर हो सकती है।