Sunday, June 8, 2025
नेशनल फ्रंटियर, आवाज राष्ट्रहित की
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
No Result
View All Result
नेशनल फ्रंटियर
Home अंतरराष्ट्रीय

श्रीलंका के घटनाक्रम से भारत के राज्यों को मिलती है सीख

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
12/04/22
in अंतरराष्ट्रीय, मुख्य खबर
श्रीलंका के घटनाक्रम से भारत के राज्यों को मिलती है सीख
Share on FacebookShare on WhatsappShare on Twitter

प्रहलाद सबनानीप्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक


श्रीलंका में स्थिति दिन प्रतिदिन विकट होती जा रही है। यूक्रेन एवं रूस तो आपस में युद्ध करके एक दूसरे को बर्बाद कर रहे हैं परंतु श्रीलंका में तो किसी प्रकार का युद्ध भी नहीं हैं फिर एकाएक श्रीलंका में ऐसा क्या हुआ है कि वहां के नागरिक एक एक रोटी के लिए तरस रहे हैं एवं डॉक्टर इसलिए आंदोलन कर रहे हैं कि वे चाहते हैं कि श्रीलंका में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी जाय क्योंकि वहां आवश्यक दवाईयों का नितांत अभाव हो गया है। श्रीलंका में पेट्रोल पम्पों पर लम्बी लम्बी लाईनें लग रही हैं फिर भी पेट्रोल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। बच्चों के लिए दूध उपलब्ध नहीं है, स्कूल बंद कर दिए गए हैं। देश में मुद्रा स्फीति की दर 25 प्रतिशत से अधिक हो गई है। बासमती चावल 480 रुपए प्रतिकिलो, एक लीटर नारियल तेल 900 रुपए में, एक नारियल 110 रुपए में, उड़द की दाल 800 रुपए प्रतिकिलो एवं मूंगफली 900 रुपए प्रतिकिलो मिल रही है। इसी प्रकार की कहानी सब्जियों की भी है। सब्जियां एवं अन्य खाद्य सामग्री भी बहुत महंगी दरों पर बिक रही हैं।

श्रीलंका की आर्थिक स्थिति आज बद से बदतर होती जा रही है। विदेशी मुद्रा भंडार बहुत अधिक (एक अरब अमेरिकी डॉलर से भी कम के स्तर पर) घट गया है जिससे किसी भी वस्तु (पेट्रोल एवं डीजल सहित) के आयात करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। श्रीलंका में यह स्थिति रातोंरात निर्मित नहीं हुई है इसके लिए वहां की सरकार द्वारा लिए गए कई गलत आर्थिक निर्णयों के कारण श्रीलंका में ऐसे हालात निर्मित हो गाए हैं। दरअसल, वर्ष 2019 में राष्ट्रपति चुनाव के समय किए गए करों सम्बंधी वादों पर अमल करते हुए वैट की दरों को आधा (15 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत) कर दिया गया और देश में वस्तुओं की मांग निर्मित करने के उद्देश्य से अन्य करों में भी भारी कमी की घोषणा की गई, इस कारण से सरकारी खजाने की आय में होने जा रही कमी की भरपाई के लिए कोई भी उचित कदम ही नहीं उठाया गया। चुनावी वादे पूरे करने के कारण सरकारी खजाने को अरबों रुपए का नुकसान झेलना पड़ा। सरकारी खजाने की आय में आई कमी की पूर्ति के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ा और श्रीलंका का कर्ज वर्ष 2019 में सकल घरेलू उत्पाद के 94 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2021 में सकल घरेलू उत्पाद का 119 प्रतिशत हो गया। कर की मद से होने वाली आय में आई भारी कमी की पूर्ति नयी मुद्रा को छापकर की जाने लगी जिसके कारण मुद्रा स्फीति की दर में भारी उछाल आ गया और वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़ने लगे।

इस बीच, वर्ष 2020 में कोरोना महामारी ने विश्व के अन्य देशों के तरह श्रीलंका में भी अपने पैर पसार लिए जिससे श्रीलंका के पर्यटन क्षेत्र की तो जैसे कमर ही टूट गई। श्रीलंका के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन क्षेत्र की 12 प्रतिशत हिस्सेदारी है। श्रीलंका के लिए विदेशी मुद्रा के अर्जन में तीन क्षेत्र, यथा पर्यटन, विदेशों में बस गए श्रीलंकाइयों द्वारा भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा एवं श्रीलंका से होने वाला वस्त्र-निर्यात, बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं। दुर्भाग्य से कोरोना महामारी के चलते उक्त तीनों ही क्षेत्र बहुत अधिक विपरीत रूप से प्रभावित हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार, आज श्रीलंका पर लगभग 45 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी कर्ज चढ़ गया है जिसकी किश्तें चुकाने में श्रीलंका सरकार को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

अभी जैसे गलत निर्णयों की ऋंखला यहां तक थमी नहीं थी एवं वर्ष 2020 में श्रीलंका सरकार ने रासायनिक खाद के आयात को पूर्णतः बंद कर 100 प्रतिशत जैविक खेती की ओर रूख कर लिया। रासायनिक खाद के उपयोग को पूर्णतः एकदम बंद करने से कृषि पदार्थों का उत्पादन बहुत कम हो गया। इससे देश में खाद्य पदार्थों की कमी उत्पन्न हो गई। इसकी भरपाई खाद्य पदार्थों का आयात बढ़ाकर की जाने लगी इससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होने लगी। श्रीलंका को पहली बार चावल का आयात करना पड़ा और जो श्रीलंका कभी चाय का भारी मात्रा में निर्यात करता था, परंतु चाय के उत्पादन में आई भारी कमी के चलते उस श्रीलंका से  चाय का निर्यात भी लगभग बंद ही हो गया है।

श्रीलंका के राजनैतिक क्षितिज पर बहुत लम्बे समय से राजपक्षे परिवार का दबदबा बना हुआ है। वर्तमान सरकार में भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य तीन मंत्री (वित्त मंत्री सहित) राजपक्षे परिवार के सदस्य हैं। इस प्रकार एक ही परिवार के लोग ही एक तरह से यदि पूरी सरकार चला रहे हों तो ऐसे में सरकार द्वारा लिए जा रहे निर्णयों को वास्तविक धरातल की कसौटी पर कैसे तोला जाएगा, यह एक यक्ष प्रश्न उभरता है। आर्थिक क्षेत्र में उत्पन्न हुई उक्त वर्णित समस्याओं से तो सतही तौर पर यही लगता है कि आर्थिक क्षेत्र में कई गलत निर्णय लिए गए हैं जिसके चलते श्रीलंका में आर्थिक स्थिति इस हद्द तक बिगड़ गई है।

ऐसा आभास होता है कि श्रीलंका से अपने मित्र राष्ट्र चुनने में भी कुछ चूक हुई है। श्रीलंका जब तक भारत के साथ अपने संबंधो को मजबूती के साथ बनाए रहा, भारत की ओर से उसको भरपूर सहायता एवं सहयोग मिलता रहा और श्रीलंका सुखी एवं सम्पन्न राष्ट्र बना रहा क्योंकि भारत ने कभी भी श्रीलंका की किसी भी मजबूरी का गलत फायदा उठाने की कोशिश नहीं की। इसके ठीक विपरीत जब श्रीलंका में सत्ता परिवर्तन के चलते उनकी नजदीकियां चीन से बढ़ने लगीं तो स्वाभाविक तौर पर आर्थिक रिश्ते भी चीन के साथ ही होने लगे। चीन ने इसका फायदा उठाकर एक तो श्रीलंका को अपनी सबसे बढ़ी बेल्ट एवं रोड परियोजना में शामिल किया एवं श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित करने हेतु चीन ने श्रीलंका को भारी मात्रा में कर्ज उपलब्ध कराया। इस बंदरगाह को दुनिया का सबसे बड़ा बंदरगाह बनाने की योजना बनाई गई थी जबकि इस बंदरगाह पर माल की बहुत बड़े स्तर की आवाजाही ही नहीं बन पाई। लगभग 1.4 अरब डॉलर की भारी भरकम राशि खर्च कर बंदरगाह तो बन गया पर इस बंदरगाह से आय तो प्रारम्भ हुई ही नहीं फिर कर्ज की अदायगी कैसे प्रारम्भ होती। अतः श्रीलंका, चीन के मकड़जाल में बुरी तरह से फंस गया। इस ऋण की किश्तें समय पर अदा करने एवं अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए श्रीलंका ने चीन से पिछले वर्ष भी एक अरब डॉलर का नया कर्ज लिया है। साथ ही चीन की कई वित्तीय संस्थानों एवं सरकारी बैंकों से भी श्रीलंका ने वाणिज्यिक शर्तों पर ऋण लिया। इस सबका परिणाम यह हुआ है कि आज श्री लंका के कुल विदेशी कर्ज का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा रियायती ऋण के नाम पर चीन से लिया गया कर्ज है।

श्रीलंका सरकार ने हंबनटोटा बंदरगाह का नियंत्रण भी चीन को 99 वर्षों के लिए पट्टे पर दे दिया है और इस प्रकार आज चीन की श्रीलंका में हंबनटोटा से कोलम्बो तक आसान उपस्थिति हो गई है। कहने को तो चीन ने श्रीलंका को कर्ज की राशि रियायती दरों पर उपलब्ध कराई है परंतु जब श्रीलंका ने अगस्त 2021 में राष्ट्रीय आर्थिक आपातकाल की घोषणा की थी तब यह बात भी उभरकर सामने आई थी कि जहां एशियाई विकास बैंक लम्बी अवधि के ऋण 2.5 प्रतिशत की ब्याज दर पर उपलब्ध कराता है वहीं चीन ने श्रीलंका को कुछ ऋण 6.5 प्रतिशत की ब्याज दर पर उपलब्ध कराए हैं। उक्त वर्णित परिस्थितियों में तो श्रीलंका को चीन के जाल में फंसना ही था और ऐसा हुआ भी है।  दो दशकों से जिस चीन के निवेश और भारी-भरकम कर्ज ने श्रीलंका को इस स्थिति में पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है, वही चीन अब श्रीलंका में आए संकट के समय वहां से भाग खड़ा हुआ है।

आज श्रीलंका बहुत ही विपरीत परिस्थितियों के दौर से गुजर रहा है एवं वहां की जनता भारी परेशानियों का सामना कर रही है ऐसे में केवल भारत ही श्रीलंका की वास्तविक मदद करता नजर आ रहा है। चाहे वह अनाज, तेल आदि जैसे पदार्थों को श्रीलंका की जनता को उपलब्ध कराना हो अथवा श्रीलंका सरकार को एक अरब डॉलर की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना हो।  भारत आज श्रीलंका के लिए एक देवदूत की रूप में उभरा है। भारत ने श्रीलंका को अभी तक 40 हजार मीट्रिक टन डीजल एवं 40 हजार टन चावल उपलब्ध कराए हैं। अब तो भारत के सभी पड़ौसी देशों को भी यह समझने में आने लगा है कि केवल भारत ही उनके आपत्ति काल में उनके साथ खड़े रहने की क्षमता रखता है।

श्रीलंका चूंकि भारत के कई राज्यों से भी छोटा देश है अतः हाल ही में श्रीलंका में घटित उक्त आर्थिक घटनाचक्र से भारत के राज्यों को सीख तो लेनी ही चाहिए। सबसे पहिले तो आर्थिक निर्णय लेने से पूर्व गम्भीर विचार करना आवश्यक होना चाहिए कि यह निर्णय देश के हितों को प्रभावित नहीं करें। दूसरे, राज्य की वित्तीय स्थिति को किसी भी कीमत पर बिगड़ने नहीं देना चाहिए, प्रदेश की जनता को मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं पर कुछ अंकुश रहना चाहिए, ये सुविधाएं कहीं उस स्तर तक नहीं चली जाएं कि प्रदेश की वित्तीय स्थिति को ही बिगाड़ कर रख दें। तीसरे, परिवारवाद पर अंकुश लगाना चाहिए। चौथे, राज्यों को लगातार यह प्रयास करना चाहिए कि वे किस प्रकार देश के विदेशी मुद्रा भंडार में अपना योगदान बढ़ा सकते हैं, ताकि देश पर यदि किसी प्रकार की आर्थिक आपदा आती भी है तो राष्ट्र उस आर्थिक आपदा का सामना करने में सक्षम बना रहे। हालांकि वर्तमान में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार बहुत ही संतुलित स्तर पर बने हुए हैं।

 

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About

नेशनल फ्रंटियर

नेशनल फ्रंटियर, राष्ट्रहित की आवाज उठाने वाली प्रमुख वेबसाइट है।

Follow us

  • About us
  • Contact Us
  • Privacy policy
  • Sitemap

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.

  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.