काबुल : विदेश मंत्री एस. जयशंकर उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद के दो दिवसीय दौरे पर हैं। वह शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए यहां पहुंचे हैं। खबरों के मुताबिक यहां उनकी मुलाकात अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से हो सकती है। दोनों के बीच एससीओ की बैठक से इतर द्विपक्षीय बैठक की संभावना जताई जा रही है। हालांकि इसकी अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
द प्रिंट ने अपनी रिपोर्ट में राजनयिक सूत्रों के हवाले से लिखा है कि जब से भारत ने काबुल में अपना दूतावास दोबारा खोलने का फैसला किया है तालिबान शासन जयशंकर के साथ बैठक की गुजारिश कर रहा है। अगर यह बैठक होती है तो यह जयशंकर और मुत्ताकी की आमने-सामने पहली मुलाकात होगी। इस प्रस्तावित बैठक का उद्देश्य अफगान लोगों के लिए मानवीय सहायता से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
वांग और लावरोव संग कर सकते हैं द्विपक्षीय बैठक
जयशंकर एससीओ के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए गुरुवार को दो दिवसीय दौरे पर उज्बेकिस्तान रवाना हुए। एससीओ की बैठक में चीन के विदेश मंत्री वांग यी, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो के भी शामिल होने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि जयशंकर एससीओ के सदस्य राष्ट्रों के अपने कुछ समकक्षों (जिसमें वांग और लावरोव शामिल हैं) के साथ द्विपक्षीय बैठक भी कर सकते हैं।
संकटग्रस्त अफगानों का सहारा बना भारत
रिपोर्ट के अनुसार प्रस्तावित बैठक में अफगान पक्ष नई दिल्ली से देश में कुछ बड़े भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर दोबारा काम शुरू करने का प्रस्ताव दे सकता है जो अशरफ गनी सरकार के जाने के बाद से ठप्प पड़े हैं। वहीं जयशंकर इस बात पर ‘जोर’ दे सकते हैं कि भारत अफगान धरती पर आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। पश्चिमी मदद बंद होने के बाद संकटग्रस्त अफगानों के लिए भारत सबसे बड़ा सहारा बना है। काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत लगातार सड़क मार्ग से अफगानों के लिए गेहूं, वैक्सीन और मेडिकल उपकरण जैसी सहायता पहुंचा रहा है।
भारत की ‘मानवीय सहायता’ से चित हुए पाकिस्तान और चीन
पिछले महीने जून में भारत ने एक ‘तकनीकी टीम’ भेजकर काबुल में अपना दूतावास दोबारा शुरू करने का फैसला किया। दक्षिण एशियाई मामलों के जानकार माइकल कुगेलमैन ने कहा कि कई लोग मान रहे थे कि अफगानिस्तान से अमेरिका के जाने के बाद वहां चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान का दखल बढ़ जाएगा जिससे भारत के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी लेकिन वर्तमान समीकरण इसके विपरीत नजर आ रहे हैं। अफगानिस्तान में चीन, रूस और ईरान बैकफुट पर हैं, पाकिस्तान और तालिबान के बीच तनाव हर दिन के साथ बढ़ रहा है और भारत काबुल में एंट्री करने के लिए तैयार है।