प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
नई दिल्ली। वर्ष 1991 में भारत के पास केवल 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बच गया था जो केवल 15 दिनों के आयात के लिए ही पर्याप्त था। वहीं, आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है एवं यह पूरे एक वर्ष भर के आयात के लिए पर्याप्त है। आज भारत विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में चीन, जापान, स्विजरलैंड के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है। कोरोना महामारी के बाद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से कम हुआ था, परंतु वर्ष 2022 के बाद से यह अब लगातार उतनी ही तेज गति से आगे भी बढ़ रहा है। और, अब तो यह उम्मीद की जा रही है कि आगे आने वाले समय में यह एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर जाएगा।
भारत में वित्तीय एवं बैंकिंग क्षेत्र में लागू किए गए सुधार कार्यक्रमों के बाद से पिछले 33 वर्षों में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता रहा है। यह वर्ष 2004 में 14,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया था, वर्ष 2014 में 32,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं वर्ष 2024 में 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है। भारत के पड़ौसी देशों का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम है, जैसे बंगलादेश के पास 2,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, नेपाल के पास 1,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर, पाकिस्तान के पास 800 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं श्रीलंका के पास 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। अतः भारत समय समय पर अपने पड़ौसी देशों (पाकिस्तान को छोड़कर) की इस संदर्भ में लाइन आफ क्रेडिट उपलब्ध कराकर मदद करता रहता है।
हाल ही के समय में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने के कारणों में मुख्य रूप से शामिल हैं, भारत में लगातार बढ़ता प्रत्यक्ष विदेशी निवेश। केंद्र सरकार द्वारा चालू किए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के चलते भारत में अब व्यापार करना बहुत आसान हुआ है अतः विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित कर रही हैं, जिसके लिए वे भारत में भारी मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ला रही हैं। दूसरे, भारतीय मूल के नागरिक जो विदेश में जाकर बस गए हैं अथवा वे वहां पर रोजगार प्राप्त करने के उद्देश्य से गए हैं, वे इन देशों में अपनी बचत की राशि को भारत भेज रहे हैं। यह राशि पूरे विश्व में किसी भी देश में भेजने वाली राशि में सबसे अधिक है। वर्ष 2023-24 में विदेशों में बसे भारतीय मूल के नागरिकों ने 12,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भारत में भेजी थी।
दूसरे स्थान पर मेक्सिको रहा था जहां पर 6,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई थी और तीसरे स्थान पर चीन रहा था, जहां 5,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि भेजी गई थी। कितना बड़ा अंतर है प्रथम एवं द्वितीय स्थान के देशों में। तीसरा, कारण है कि अब भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात तेजी से बढ़ रहे हैं जबकि विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात कम हो रहे हैं। और, अब तो भारत रक्षा के क्षेत्र में भी हवाई जहाज एवं अन्य रक्षा सामग्री का निर्यात करने लगा है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में रक्षा के क्षेत्र में 21,083 करोड़ रुपए का निर्यात भारत द्वारा किया गया था, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में निर्यात की गई राशि 15,920 करोड़ रुपए से 32.5 प्रतिशत अधिक था।
विश्व में अब विभिन्न देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के उद्देश्य से अपने के पास स्वर्ण के भंडार भी बढ़ाते जा रहे हैं। आज पूरे विश्व में अमेरिका के पास सबसे अधिक 8133 मेट्रिक टन स्वर्ण के भंडार है, इस संदर्भ में जर्मनी, 3352 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ, दूसरे स्थान पर एवं इटली 2451 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ तीसरे स्थान पर है। फ्रान्स (2437 मेट्रिक टन), रूस (2329 मेट्रिक टन), चीन (2245 मेट्रिक टन), स्विजरलैंड (1040 मेट्रिक टन) एवं जापान (846 मेट्रिक टन) के बाद भारत, 812 मेट्रिक टन स्वर्ण भंडार के साथ विश्व में 9वें स्थान पर है। भारत ने हाल ही के समय में अपने स्वर्ण भंडार में वृद्धि करना प्रारम्भ किया है एवं यूनाइटेड अरब अमीरात से 200 मेट्रिक टन स्वर्ण भारतीय रुपए में खरीदा था।
दरअसल किसी भी देश में विदेशी मुद्रा भंडार के अधिक होने के चलते उस देश में विदेशी व्यापार करने का आत्मविश्वास जागता है क्योंकि अन्य देशों से किये गए व्यापार के एवज में विदेशी मुद्रा में भुगतान करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। साथ ही, विदेशी निवेशकों में भी विश्वास जागता है कि जिस देश में वे निवेश कर रहे हैं उस देश की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है और उनका उस देश में विदेशी मुद्रा में निवेश किया गया पैसा सुरक्षित है एवं उन्हें उनका निवेश वापिस मिलने में कोई परेशानी नहीं आएगी। विदेशी मुद्रा भंडार उच्च स्तर पर होने से कोई भी विदेशी संस्थान ऋण उपलब्ध कराने में नहीं हिचकता है, क्योंकि उसे भरोसा रहता है कि ऋण का पुनर्भुगतान होने में आसानी रहेगी।
विदेशी मुद्रा भंडार के उच्च स्तर पर रहने से उस देश की मुद्रा की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरने से बचाया जा सकता है। जैसे भारत में भारतीय रिजर्व बैंक ने कोरोना महामारी के दौरान एवं इसके बाद अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरने से रोकने में सफलता पाई है। जब कभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत पर दबाव दिखाई दिया है, भारतीय रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को बाजार में बेचकर रुपए की कीमत को स्थिर बनाये रखा है। इस प्रकार, पिछले लगभग दो वर्षों के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत को स्थिर बनाए रखा जा सका है।
अब तो भारत लगातार यह भी प्रयास कर रहा है कि जिन देशों से विभिन्न वस्तुओं का आयात भारत द्वारा किया जा रहा हैं उन्हें इसके एवज में अमेरिकी डॉलर के स्थान पर भारतीय रुपए में भुगतान किया जाए। 32 से अधिक देशों ने इस संदर्भ में अपनी स्वीकृति भारत सरकार को दे दी है एवं कई देशों ने तो भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अपना नोस्ट्रो खाता भी खुलवा लिया है ताकि उन्हें भारत को निर्यात किए गए सामान की राशि भारतीय रुपए में भुगतान लेने में आसानी हो सके। यदि भारत और अन्य देशों के बीच इस प्रकार की व्यवस्था सफल होती है तो इन देशों में बीच अमेरिकी डॉलर की मांग कम होगी और अमेरिकी डॉलर की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की कीमत स्थिर रखने में और भी आसानी होगी, जो कि भारत के विदेशी व्यापार को गति देने में सहायक होगी।
जिस तेज गति से भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, भारत से विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात बढ़ रहे हैं एवं आयात कम हो रहे हैं, भारत में विदेशी निवेश बढ़ रहे हैं, भारतीय मूल के नागरिकों द्वारा भारत में विदेशी मुद्रा में भारी मात्रा में राशि भेजी जा रही है, इससे अब यह विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि आगे आने वाले समय में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर जाएगा।