प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
स्विजरलैंड के दावोस नामक स्थान पर दिनांक 16 जनवरी से 20 जनवरी 2023 तक विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम) की 43वीं वार्षिक बैठक का आयोजन किया गया था। विश्व आर्थिक मंच एक गैरलाभकारी अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र संस्था है जो निजी एवं सरकारी संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करने के उद्देश्य से काम करती है। विश्व आर्थिक मंच की प्रतिवर्ष होने वाली बैठक में विश्व के तमाम बड़े राजनेता, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, संस्कृति और समाज के क्षेत्र में कार्य करने वाले विशिष्ट व्यक्ति भाग लेते हैं। इस बैठक में वैश्विक एवं क्षेत्रीय स्तर पर आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण, राजनैतिक, औद्योगिक, आदि क्षेत्रों से सम्बंधित विषयों पर विस्तार से चर्चा की जाती है एवं इन समस्याओं का हल निकालने का प्रयास किया जाता है। विश्व आर्थिक मंच को लगभग 1000 सदस्य कम्पनियों, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों जिनका टर्नओवर 5 अरब डॉलर से अधिक होता है, द्वारा विभिन्न आयोजनों के लिए फण्ड उपलब्ध कराया जाता है। दावोस में आयोजित वर्ष 2023 की बैठक में चर्चा हेतु मुख्य विषय चुना गया था “बटें हुए विश्व में सहयोग की भावना जागृत करना”।
भारत की ओर से भी केंद्र सरकार के कुछ मंत्री एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियों के कुछ मुख्य कार्यपालन अधिकारी इस बैठक में शामिल हुए। हर्ष का विषय है कि भारत में लागू की गई आर्थिक नीतियों की इस वैश्विक मंच पर बहुत तारीफ की गई। वैश्विक स्तर पर कई देश विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से एवं रूस यूक्रेन युद्ध के बाद से जिस प्रकार की आर्थिक समस्याओं से अभी भी जूझ रहे हैं, ऐसे माहौल में भी विश्व की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में केवल भारतीय अर्थव्यवस्था ही वैश्विक पटल पर एक दैदीप्यमान सितारे के रूप में चमक रही है। विशेष रूप से न केवल कोरोना महामारी से भारत ने बहुत ही व्यवस्थित एवं सहज तरीके से निपटने में सफलता पाई है बल्कि इसके तुरंत बाद ही अपनी अर्थव्यवस्था को तेजी से पटरी पर लाने में भी सफलता पाई है।
विश्व आर्थिक मंच को यूनाइटेड नेशन के सेक्रेटरी जनरल श्री गुटेरस ने अपने विशेष उदबोधन में बताया कि विश्व इस समय कुछ टुकड़ों में बंटा हुआ दिखाई दे रहा है एवं एक तरह से पूरा विश्व ही आज आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है, ऐसे समय में विश्व के विभिन्न देशों के बीच सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता है। कई देशों में मंदी की आहट सुनाई दे रही है एवं आगे आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की दर धीमी पड़ने की सम्भावना बहुत बढ़ गई हैं। प्रत्येक नागरिक के लिए अपने जीवन निर्वहन की लागत लगातार बढ़ती जा रही है एवं करोड़ों नागरिकों के लिए तो यह असहनीय स्तर तक पहुंच गई है। वैश्विक स्तर पर सप्लाई चैन की परेशानियां, विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से, बहुत बढ़ गई हैं। इसी प्रकार, एनर्जी संकट, मुद्रा स्फीति, मंदी की आहट, ब्याज दरों का लगातार बढ़ते जाना कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें तुरंत हल करना आवश्यक है। पर्यावरण का संकट भी मुंह बाए खड़ा है, ग्रीन हाउस गैस का विस्तार लगातार तेजी से अभी भी हो रहा है तथा दीर्घकालीन विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स) और समस्त देशों की, वैश्विक तापमान में केवल 1.5 डिग्री की वृद्धि होने देने पर, प्रतिबद्धता की ओर अभी तक विशेष रूप से विकसित देशों का ध्यान नहीं जा रहा है। यदि समय रहते समस्त देशों ने इस अति गम्भीर रूप लेती समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया तो बहुत सम्भव है कि इस समस्या को फिर हम हल ही नहीं कर पाएंगे और एक अनुमान के अनुसार वैश्विक तापमान में 2.8 डिग्री की वृद्धि दृष्टिगोचर होगी, इसे विश्व सहन ही नहीं कर पाएगा। इसी प्रकार, कुछ देशों के बीच आपसी झगड़े युद्ध का रूप ले रहे हैं, यह बहुत चिंता का विषय है। रूस यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण कई देशों में अनाज, फर्टिलायजर एवं एनर्जी की उपलब्धता पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ा है।
दावोस में ही एक अन्य कार्यक्रम में वैश्विक सलाहकार संस्था अर्नस्ट एंड यंग (ई वाय) ने एक विशेष प्रतिवेदन “इंडिया एट 100: रीयलाईजिंग द पोटेंशियल आफ 26 ट्रिलियन डॉलर इकानोमी” नाम से जारी कर बताया है कि कोरोना महामारी, रूस यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध एवं वैश्विक आर्थिक संकट के बीच भी, भारत के अमृत काल के दौरान, वर्ष 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 26 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। शीघ्र ही, वर्ष 2028 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं वर्ष 2036 में 10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। उक्त रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2047 में प्रत्येक भारतीय की प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय 15,000 अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगी, ये आज के स्तर से 7 गुना से भी अधिक है। वर्ष 2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था जर्मनी और जापान की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगी। दरअसल भारत में भारी क्षमताएं मौजूद हैं और आगे आने वाले समय में भारत की आर्थिक प्रगति पूरे वैश्विक आर्थिक मंच को प्रभावित करने जा रही है।
पर्यावरण में सुधार के क्षेत्र में भी पूरे विश्व में केवल भारत ही कुछ गम्भीर प्रयास करता हुआ दिखाई दे रहा है। पूरे विश्व में उत्सर्जन वृद्धि के चलते जलवायु में भारी परिवर्तन महसूस किया जा रहा है। विकसित देशों ने आर्थिक प्रगति को गति देने के उद्देश्य से प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन किया है, जिससे उत्सर्जन वृद्धि अत्यधिक मात्रा में हो रही है। उत्सर्जन वृद्धि को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वैश्विक स्तर पर कई उपाय किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। परंतु, विकसित देश जिन्हें इस ओर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए वे कम रूचि ले रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भारत इस क्षेत्र में अतुलनीय कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है।
भारत ने उत्सर्जन वृद्धि को कम करने के उद्देश्य से बहुत पहले (2 अक्टोबर 2015 को) ही अपने लिए कई लक्ष्य तय कर लिए थे। इनमें शामिल हैं, वर्ष 2030 तक वर्ष 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 30 से 35 प्रतिशत तक कम करना (भारत ने अपने लिए इस लक्ष्य को अब 45 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है), गैर-जीवाश्म आधारित ऊर्जा के उत्पादन के स्तर को 40 प्रतिशत तक पहुंचाना (भारत ने अपने लिए इस लक्ष्य को अब 50 प्रतिशत तक बढ़ा लिया है) और वातावरण में कार्बन उत्पादन को कम करना, इसके लिए अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण का निर्माण करना, आदि। इन संदर्भों में अन्य कई देशों द्वारा अभी तक किए गए काम को देखने के बाद यह पाया गया है कि जी-20 देशों में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जो पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किए गए लक्ष्यों को प्राप्त करता दिख रहा है। जी-20 वो देश हैं जो पूरे विश्व में वातावरण में 70 से 80 प्रतिशत तक उत्सर्जन फैलाते हैं। जबकि भारत आज इस क्षेत्र में काफी आगे निकल आया है एवं इस संदर्भ में पूरे विश्व का नेतृत्व करने की स्थिति में आ गया है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2030 तक 550 GW सौर ऊर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को दोबारा खेती लायक उपजाऊ बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया है। साथ ही, भारत ने इस दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौर संधि करते हुए 88 देशों का एक समूह बनाया है ताकि इन देशों के बीच तकनीक का आदान प्रदान आसानी से किया जा सके।
विश्व आर्थिक मंच की विभिन्न बैठकों में जिन अन्य क्षेत्रों में भारत द्वारा किए जा रहे अतुलनीय कार्य की चर्चा रही उनमें शामिल थे, बैकिंग क्षेत्र में जनता द्वारा वित्तीय व्यवहारों का डिजिटलीकरण, गैरजीवाश्म आधारित ऊर्जा (विशेष रूप से सौर ऊर्जा) उत्पादन के क्षेत्र में भारत का तेजी से आगे बढ़ना, इंटरनेट सहित दूरसंचार की सुविधाओं को देश के दूर दराज ग्रामीण इलाकों में पहुंचाना, भारत का एक युवा देश होना जिसके कारण उत्पादों की मांग का बढ़ना, भारतीय अर्थव्यवस्था का तेजी से औपचारीकरण की ओर आगे बढ़ना, भारत में तुलनात्मक रूप से बहुत सस्ती दरों पर श्रमिकों का उपलब्ध होना, आदि।