मनोज रौतेला की रिपोर्ट :
दिल्ली/गुजरात : इंसान अगर मन में सोच ले और योजना सही तरीके से बनाये तो सफलता मिलना मुश्किल नहीं है. उसमे गरीबी भी बेशक क्योँ न हो. रास्ते निकल आते हैं, दिख जाते हैं. बस उन रास्तों में चलना होता है जो कठिनाई के होते हैं अंत में सफलता इन्तजार कर रही होती है. प्रेमसुख डेलू राजस्थान के बीकानेर जिले की नोखा तहसील के गांव रासीसर के डेलू परिवार में 3 अप्रेल 1988 को एक लड़का पैदा हुआ। नाम रखा प्रेमसुख डेलू । उस समय में किसी ने नहीं सोचा भी था कि छोटे से गांव का यह लड़का कामयाबी की सीढ़ियां दर सीढ़ियां चढ़ता ही जाएगा और एक प्रेरणा बन जायेगा लोगों के लिए.
आज हम आपको आईपीएस अधिकारी प्रेम सुख डेलू की का संघर्ष भरी कहानी बता रहे हैं. वर्तमान में गुजरात में पोस्टेड हैं IPS प्रेमसुख डेलू.
प्रेम सुख डेलू की 6 साल में 12 बार लगी सरकारी नौकरी, लेकिन पढ़ाई की धुन ऐसी कि IPS बनकर ही माने और अभाव ऐसा था कि आठवीं तक बस एक निक्कर पहनी। कपकडे पहनने के लिए पेंट नहीं थी. और आठवीं क्लास तक निक्कर पहन कर जाता था. लेकिन ज़िंदगी के इन्ही अभावों ने मुझे अंदर से मज़बूत कर दिया. मैं गांव में रहता था, खेती करता था, मवेशियों को चराता था
युवा खास तौर पर आजकल जो सोच है उनके लिए प्रेम सुख डेलू को पढ़ना चाहिए समझना चाहिए. प्रेमसुख डेलू की ये बातें किसी को भी नये जोश से भरने और नई ऊँचाई हासिल करने के लिये प्रेरित कर सकती है। प्रेमसुख डेलू कहते हैं – जब लोग कहते थे कि सिविल सेवा परीक्षा और हिन्दी माध्यम के साथ सफलता कठिन है तो मैने सोचा मेरे पास संसाधनों की कमी है, लेकिन, सपना देखने… बड़े सपने देखने पर तो कोई प्रतिबंध नहीं है. सपने देखे और उनको सच करने की हिम्मत जुटाई, लगा रहा सफलता मिलती रही.
डेलू बताते हैं एक बड़े संयुक्त परिवार के लिए, हमारे पास भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा था और परिवार में केवल कमाने वाले सदस्य मेरे बड़े भाई जो कांस्टेबल (राजस्थान पुलिस) हैं. आप समझ सकते हैं कि एक कांस्टेबल का वेतन कितना होता है और एक बड़े परिवार को चलाने, उनकी जरूरतों पूरा करने और सामाजिक दायित्वों को निभते जीवन कितना मुश्किल रहा होगा. मैं आपको बताऊँ मेरे भाई भी समान रूप से योग्य है; लेकिन, उन्होंने अपना कैरियर परिवार की देखभाल करने के लिए बलिदान कर दिया और आज मैं जो कुछ हूँ यह सब उनकी वजह से ही है. डेलू बताते हैं मैंने बचपन में ही ‘सिविल सेवा‘ में कैरियर बनाने के बारे में सोचा था. मुझे याद है जब मैं 10 वीं कक्षा में था, मैं अपने आप को हर समय पढ़ाई में झोंके रखता था तब मेरे एक शिक्षक ने मुझे सलाह दी – मुझे अभी कई मंज़िले तय करनी हैं और लक्ष्य तक पहुंचना है तो कमसे कम 6 घंटे की नींद ज़रूर लेते रहो.
वे कहते हैं – किसी के लिये मन में कोई द्वेश नहीं, कोई पछतावा नहीं. मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली हूँ कि मेरा एक परिवार है जो एक–दूसरे के लिए परवाह करता है उसके अलावा जीवन में आपको और क्या चाहिये? यह सोच आजकल के परिवारों के लिए सीख है. जो आपस में कई बात भी नहीं करते. फ़ोन तक नहीं करते मिलना तो दूर की बात है. उनके लिए सीख है. परिवार क्या होता है? क्या महत्त्व होता है परिवार का . बड़ी सीख है यह आजकल के समय के अधिकतर लोगों के लिए. कोरोना वायरस जैसा संक्रमण काल आने से बहुत कुछ इंसान को सोचने पर मजबूर कर दिया है. पैसा, प्रॉपर्टी बहुत कुछ है सब कुछ नहीं है, लेकिन जो महत्वपूर्ण है वह है परिवार. परिवार एक कुटुंब से बनता है न की पति पत्नी और बच्चे से केवल. उसमे कई लोग शामिल होते हैं. सबको साहिल करना पड़ता है तब जा कर परिवार बनता है.
प्रेमसुख डेलू की सफलता का अंदाजा इससे सहज लगाया जा सकता है कि छह साल में ये 12 बार सरकारी नौकरी में सफल हुए. गुजरात कैडर के आईपीएस प्रेमसुख डेलू ने पटवारी से लेकर आईपीएस बनने तक का सफर तय किया है.
इनकी सरकारी नौकरी लगने का सिलसिला वर्ष 2010 में शुरू हुआ. सबसे पहली सरकारी नौकरी बीकानेर जिले में पटवारीके रूप में लगी. दो साल तक बतौर पटवारी के पद पर काम किया, मगर दिल में कुछ बड़ा करने की चाह थी. इसलिए पढ़ाई और मेहनतजारी रखी.प्रेमसुख डेलू ने पटवारी पद पर रहते हुए कई अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं दी. ग्राम सेवक परीक्षा में राजस्थान में दूसरी रैंक हासिल की, मगरग्राम सेवक ज्वाइन नहीं किया. क्योंकि उसी दौरान राजस्थान असिस्टेंट जेल परीक्षा का परिणाम आ गया और इसमें प्रेमसुख डेलू ने पूरेराजस्थान में टॉप किया. असिस्टेंट जेलर के रूप में ज्वाइन करते उससे पहले राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर पद पर चयन हो गया. प्रेमसुख डेलू ने राजस्थान पुलिस में एसआई के पद पर ज्वादन नहीं किया, क्योंकि उसी दौरान इनका स्कूल व्याख्याता के रूप में चयनहो गया तो पुलिस महकमे की बजाय शिक्षा विभाग की नौकरी को चुना. इसके बाद कॉलेज व्याख्याता, तहसीलदार के रूप में भी सरकारी नौकरी लगी.
कई विभागों में 6 साल की अवधि में अनेक बार सरकारी नौकरी लगने के बाद भी प्रेमसुख ने मेहनत जारी रखी औरसिविल सेवा परीक्षा में 170वाँ रेंक प्राप्त किया है और हिंदी माध्यम के साथ सफल उम्मीदवार में तृतीय स्थान पर रहे है। आज गुजरात कैडर का यह आईपीएस अधिकारी सिविल सेवा परीक्षा 2015 में 170वाँ रेंक प्राप्त किया. प्रेमसुख डेलू अभी गुजरात में पोस्टेड हैं. अब आईएएस बनने का है इनका इरादा, देखिये रिजल्ट आना बाकी है. उम्मीद है डेलू की पास हो जायेंगे. चार भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं डेलू. बड़ा भाई राजस्थान पुलिस में सिपाही हैं. माता पिता पढ़े लिखे नहीं हैं. पिता ऊंट गाड़ी चलाते थे. आज प्रेमसुख डेलू ने अपनी मेहनत से अपनी और परिवार की किस्मत बदल दी है. देश में युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन कर आगे आये हैं.