नई दिल्ली: ईरान और पाकिस्तान के बीच हवाई हमले की घटना सामने आई है। मंगलवार को हवाई हमले के बाद पाक एयरफोर्स ने भी जवाबी कार्रवाई में ईरान में बलूच लिबरेशन आर्मी के ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं। गुरुवार सुबह हुए इस हमले में नौ नागरिक मारे गए हैं। पाकिस्तान के इस हमले से ईरान नाराज हो गया है।
ईरान ने गुरुवार को पाकिस्तान के जवाबी मिसाइल हमले की निंदा की है। ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने कहा कि तेहरान में पाकिस्तान के सबसे वरिष्ठ राजनयिक को स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया गया है। इससे पहले पाकिस्तान ने ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में चरमपंथियों को निशाना बनाते हुए हमले करने का दावा किया था।
इसके साथ ही पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि, “जिन पर हमला किया गया, वे पाकिस्तान में खून खराबा करने वाले आतंकवादी थे जिन्होंने ईरान के उन इलाकों में पनाह ली थी, जहां किसी का नियंत्रण नहीं है।” पाकिस्तानी सेना ने कहा है कि उसने ये हमला खुफिया जानकारी के आधार पर किया।।
पाकिस्तान-ईरान के अच्छे संबंध
आपको बता दें कि पाकिस्तान की स्थापना के समय से ही उसके ईरान से अच्छे संबंध रहे हैं। भारत के खिलाफ जंग में भी ईरान ने पाक को समर्थन दिया था। 1965 और 1971 के पाक-भारत युद्धों में ईरान ने भारत की निंदा की थी और पाकिस्तान को महत्वपूर्ण चिकित्सा और तेल आपूर्ति प्रदान की थी। यहां तक की अमेरिका द्वारा पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी ईरान ने पाकिस्तान के लिए पश्चिम जर्मनी से लड़ाकू विमान खरीदे थे।
बलूच विद्रोह दबाने में ईरान ने की मदद
1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग हो गया जिससे बलूचों का हौसला बढ़ गया। चूंकि ईरान में भी बूलच आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहता है। ऐसे में बलूचों के विद्रोह को दबाने में ईरान ने पाकिस्तान की खूब मदद की थी।
पाकिस्तान और ईरान संबंधों में तनाव पहली बार 1974 में दिखा जब पाकिस्तान ने लाहौर में इस्लामी सम्मेलन की मेजबानी की थी। ईरान के शाह ने पाकिस्तान के आमंत्रण को ठुकरा दिया क्योंकि इस आयोजन में लीबिया के तानाशाह मुअम्मर गद्दाफी शामिल हो रहे थे। इस घटना के कुछ दिन बाद भारत ने परमाणु परीक्षण किया था।
ईरान ने नहीं की भारत की निंदा
अब तक भारत का कटु आलोचक रहा ईरान पहली बार पाकिस्तान के निंदा करने के प्रयासों के बावजूद मौन रह गया था। इसके कुछ ही सालों बाद 1977 में पाकिस्तान में भुट्टो को जनरल जियाउल हक ने अपदस्थ कर दिया था। ठीक 18 महीने बाद ईरान में शाह को गद्दी छोड़नी पड़ी और अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी का शासन शुरू हो गया।
पाकिस्तान ईरान में क्रांतिकारी शासन को मान्यता देने वाले दुनिया के पहले देशों में से एक था। ईरान में सत्ता परिवर्तन के कुछ ही समय बाद ईराक ने हमला कर दिया। इस युद्ध में पश्चिमी देश जहां ईराक का समर्थन कर रहे थे, पाकिस्तान इस जंग में ईरान का खुलकर साथ दे रहा था।
मक्का में शिया नरंसहार से बढ़ी कड़वाहट
पाकिस्तान और ईरान के बीच मधुर संबंधों में असली कड़वाहट की शुरुआत 1987 में हुई जब मक्का में शिया तीर्थयात्रियों का नरसंहार हुआ। 31 जुलाई, 1987 को मक्का में हज यात्रा के दौरान शिया तीर्थयात्रियों और सऊदी अरब के सुरक्षा बलों के बीच झड़प हो गई जिसमें 400 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी वहीं हजारों लोग घायल हुए थे। ईरान ने इसे नरसंहार करार दिया जबकि पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर इस घटना की निंदा तक नहीं की।
ईरान ने जियाउल हक को मारा?
17 अगस्त, 1988 को एक रहस्यमय विमान दुर्घटना में ज़ियाउल हक की मौत हो गई। ऐसा भी दावा किया जाता है कि इसके पीछे ईरान का ही हाथ था। दरअसल ईरान, जियाउल हक के काल में पाकिस्तान में शियाओं के उत्पीड़न से नाराज था।
पाक में ईरानी राजनयिक की हत्या
इसके 2 सालों के बाद लाहौर में ईरानी राजनयिक सादिक गंजी की हत्या कर दी गई जिससे ईरान भड़क गया। ये वो दौर था जब पाकिस्तान में शिया और सुन्नी मुस्लिमों के बीच की कलह तेजी से फैलने लगी थी। इस दौरान पाकिस्तान ने ईरान के ऊपर शियाओं को भड़काने का आरोप लगाया। जबकि ईरान ने भी ऐसी ही प्रतिक्रिया दी।
तालिबान के आने के बाद तनाव बढ़ा
पाक और ईरान के बीच संबंध और खराब तब हुए जब अफगानिस्तान में तालिबान की स्थापना हुई। तालिबान सुन्नी मुस्लमानों का गुट था जिसे पाकिस्तान का समर्थन हासिल था। तालिबान ने अफगानिस्तान में शिया मुस्लिमों को निशाना बनाना शुरू किया, इससे ईरान नाराज हो गया। दोनों देशों के बीच कलह तेज हो गई।
ऐसे में ईरान ने नॉदर्न अलायंस का समर्थन करना शुरू कर दिया। इस संगठन को भारत और रूस का मौन समर्थन हासिल था। जब 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ तो अमेरिका ने तालिबान को बर्बाद करने की कसम खा ली। पाकिस्तान को तालिबान का समर्थन करना छोड़ना पड़ा। ये पहली बार था जब भारत, पाकिस्तान, ईरान, रूस, अमेरिका सभी तालिबान से अलग एक कतार में खड़े थे। हालांकि ये दौर अधिक दिन तक नहीं चला और ईरान-अमेरिका की दुश्मनी जारी रही।
कहां फंसा है पेच
पाकिस्तान और ईरान के बीच लगभग 909 किलोमीटर लंबी सीमा है। ये सीमा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत और ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान को अलग करती है। पाकिस्तान में बलूचिस्तान और ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान में काफी संख्या में बलूच रहते हैं।
बलूचिस्तान जो कि पाकिस्तान का इलाका है वहां पर बलूचिस्तान लिबरेशन फ़्रंट (BLF), बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), बलोच नेशनलिस्ट आर्मी (BNA) और बलोच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) जैसे गुट सक्रिय हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि इन्हें पाकिस्तानी बूलच विद्रोहियों को ईरान से पैसा और समर्थन मिलता है।
वहीं ईरान वाले हिस्से में जन्दुल्लाह और जैश अल-अदल जैसे गुट काम करते हैं। ईरान लंबे समय से इस संगठन पर आरोप लगाता रहा है कि इसके सदस्य सीमा पार करके ईरान में घुसते हैं और उनके सुरक्षाकर्मियों की हत्या करते हैं।
पाकिस्तान और ईरान के बीच खटास लंबे वक्त से है लेकिन फिर भी ये दोनों देश भाईचारा निभाते रहे हैं। दोनों देशों के बीच लंबी सीमा होने के बाद भी जमीन का विवाद नहीं है और इनके बीच व्यापारिक, रक्षा और कूटनीतिक संबंध दशकों से हैं, लेकिन अब अगर ये किसी सुलह वार्ता पर नहीं पहुंचे तो दोनों देशों के बीच के नाजुक रिश्ता टूट जाएगा और दुश्मनी भड़क जाएगी।