नई दिल्ली: जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में भारत आएंगे, तो उनकी मुलाकातें यूक्रेन और उसके आस-पास के युद्ध पर नई दिल्ली की सैद्धांतिक तटस्थता के बैकग्राउंड में होंगी।
भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों पर रखे गए रूस विरोधी प्रस्तावों से खुद को अलग रखा है और रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को मानने से इनकार किया है। साथ ही, भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करने और यूक्रेन युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने का आह्वान भी किया है।
अभी तक भारत ने रूस पर पश्चिमी दबाव को निकालने के लिए एक रिलीज वाल्व के रूप में काम किया है, जिससे मॉस्को को चीन पर अत्यधिक निर्भर होने के बजाय एक बड़ी शक्ति का विकल्प मिल गया है। भारत, चीन के बाद रियायती रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जिसके परिणामस्वरूप द्विपक्षीय व्यापार 2021 में जहां सिर्फ 12 बिलियन डॉलर था, वो अब बढ़कर पिछले साल 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, सस्ते तेल ने भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया है, जो पिछले साल औसतन 8.2% थी और 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।
हालांकि, भारत सरकार रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन नहीं करती है, लेकिन भारत के वित्तीय संस्थाओं को उन प्रतिबंधों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे इनमें से कुछ फंड को ट्रांसफर करना मुश्किल हो गया है। इस प्रकार रूस ने अपने रुपये के भंडार का कुछ हिस्सा भारत में निवेश करने पर सहमति जताई है, जिससे दोनों पक्षों के व्यापार में विविधता लाने और संतुलन बनाने में मदद मिली है।
भारत और रूस ने तीन लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर के डेवलपमेंट को प्राथमिकता दी है, जिनमें से कोई भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाया है। इनमें शामिल हैं:-
1- ईरान से होकर गुजरने वाला अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), जिसकी शाखाएं अजरबैजान, कैस्पियन सागर और मध्य एशिया तक फैली हैं।
2- व्लादिवोस्तोक-चेन्नई समुद्री गलियारा, जिसे पूर्वी समुद्री गलियारा भी कहा जाता है
3- आर्कटिक में उत्तरी समुद्री मार्ग।
इन तीनों में से, INSTC सबसे ज्यादा आशाजनक है, लेकिन सबसे ज्यादा असुरक्षित भी है, क्योंकि ऐसी खबरें हैं, कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ईरान के खिलाफ अपने “अधिकतम दबाव” अभियान को फिर से शुरू करने की योजना बना रहे हैं।
भारत के सामने क्या दिक्कतें आ सकती हैं?
भारत ने अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने के लिए अमेरिका से पहले ही छूट हासिल कर ली है। ट्रंप, ईरान पर प्रतिबंधों को इस हद तक कड़ा कर सकते हैं, कि भारत को INSTC के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार को बंद करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिससे रूसी अलमारियों पर भारतीय उत्पादों की उपलब्धता कम हो सकती है – जिसमें फार्मास्यूटिकल्स भी शामिल हैं, जिससे बाजार में हिस्सेदारी कम हो सकती है और परिणामस्वरूप रूस की चीन पर पहले से ही उच्च निर्भरता बढ़ सकती है।
ऐसा ही तब हो सकता है, जब भारत द्वारा कथित तौर पर रूस के साथ स्थापित किए गए गुप्त तकनीकी चैनल को निशाना बनाया जाता है। यह आने वाले ट्रंप प्रशासन के अपने बड़े रणनीतिक हितों के खिलाफ काम करेगा, क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में चीन विरोधियों की संख्या बहुत ज्यादा है।
राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले ट्रंप ने कहा था, कि वह रूस और चीन को “अलग करना” चाहते हैं, लेकिन यदि वह ईरान को दंडित करने के लिए रूसी-भारतीय व्यापार पर नई सीमाएं लगाते हैं, तो इससे अनजाने में ही वे एक-दूसरे के और करीब आ जाएंगे।
ट्रंप ने यह भी कहा, कि वह यूक्रेन युद्ध को खत्म करने को प्राथमिकता देंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि वह ऐसा कैसे करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन कुछ ऑब्जर्वर्स को उम्मीद है, कि वह युद्धविराम समझौते में यूक्रेन की जमीन पर रूसी कब्जे को मान्यता दे देंगे। हालांकि, वो क्या करेंगे, फिलहाल साफ नहीं है।
भारत से कैसे गुजरेगा शांति का रास्ता?
डोनाल्ड ट्रंप अगर यूक्रेन में शांति कायम करने की कोशिशें शुरू करते हैं, तो निश्चित तौर पर उन्हें भारत की तरफ देखना होगा, क्योंकि ये भारत ही है, जो बातचीत शुरू करने के लिए जमीन तैयार कर सकता है और राष्ट्रपति पुतिन के आगामी भारत दौरे को उसी लेंस में देखना होगा।
भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन, सौदे के संभावित सैन्य और आर्थिक मापदंडों पर चर्चा कर सकते हैं, जिसमें रूस के खिलाफ लगाए गये प्रतिबंधों को धीरे धीरे कम करना और आगे जाकर खत्म करना शामिल हैं और ईरान के माध्यम से रूस के साथ भारतीय व्यापार के लिए प्रतिबंधों में छूट शामिल है।
इसके बाद भारत, निजी तौर पर रूसी वार्ता के इन बिंदुओं को ट्रंप प्रशासन तक पहुंचा सकता है, क्योंकि इसके पूरे आसान हैं, कि ट्रंप 2.0 के भारत के साथ विशेष रूप से मैत्रीपूर्ण संबंध होंगे।
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने मंगलवार को पुष्टि की, कि पुतिन की भारत यात्रा की तारीखों की घोषणा जल्द ही की जाएगी। यह जून में मोदी की रूस यात्रा के बाद होगी, जो सितंबर 2019 में व्लादिवोस्तोक में पूर्वी आर्थिक मंच में पुतिन के मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने के बाद से उनकी पहली रूस यात्रा थी। गर्मियों में उनकी पिछली बैठक में नेताओं ने नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए और एक विस्तृत संयुक्त बयान जारी किया।
डोनाल्ड ट्रंप, प्रधानमंत्री मोदी के भी करीबी हैं, और उनकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड भारत के काफी करीबी हैं। ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज, भारत कॉकस के सह-अध्यक्ष हैं और विदेश मंत्री के लिए उनके नामित सीनेटर मार्को रुबियो ने जुलाई में अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग अधिनियम पेश किया था।
लिहाजा, कैबिनेट के इन सदस्यों के साथ यूक्रेन में शांति का मार्ग पूर्व मध्यस्थ तुर्की या महत्वाकांक्षी मध्यस्थ चीन के माध्यम से नहीं, बल्कि भारत के माध्यम से हो सकता है। इसलिए यह संभावना है, कि पुतिन और मोदी अपनी आगामी यात्रा के दौरान यूक्रेन सौदे पर चर्चा करेंगे, हालांकि उनकी चर्चाओं के बारे में जानकारी, निश्चित तौर पर सार्वजनिक नहीं की जाएगी।
पुतिन को इस बात का पूरा अहसास है, कि डोनाल्ड ट्रंप एशिया की ओर वापस लौटने के लिए कितने उत्सुक हैं, जिसके लिए यूक्रेन युद्ध का तत्काल समाधान आवश्यक है। और पुतिन इस बात से भी वाकिफ हैं, कि चीन के मुकाबले यूरेशियाई शक्ति संतुलन को संभालने में भारत की भूमिका अपरिहार्य है।
इस प्रकार, मोदी ईरान के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए अच्छी स्थिति में हैं, जो अगर लागू होते हैं, तो रूस में और उसके ऊपर चीन का प्रभाव और बढ़ जाएगा। 2014 से पुतिन के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के आधार पर, मोदी यूक्रेन में समझौता करने के सर्वोत्तम मार्ग पर व्यावहारिक सुझाव भी दे सकते हैं जो रूस को मंजूर होगा।