श्रुति व्यास
ढोल बजाइए, बधाईयां गाईए। हम सबसे बड़े बन गए हैं। आगे अब और बड़े बनते जाएंगे। हमने चीन और दुनिया के सारे अगड़े देशों को पीछे छोड़ दिया है। हम दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गए हैं। यदि इसके धन्यवाद में यदि भाषण करना होता तो हम शायद सभी धर्मों, जातियों और पंथों के लोगों और राजनैतिक नीतियों का शुक्रिया अदा करता जिनके चलते अब हम सर्वाधिक आबादी के हैं!
आपने जरूर सुना होगा, सोशल मीडिया पर इससे संबंधित मीम्स का मजा भी लिया होगा कि भारत की ‘युवा और ऊर्जावान आबादी’ जून के अंत तक चीन से अधिक हो जाएगी। चीन बूढ़ा होता जा रहा है। पहली बार पिछले वर्ष उसकी जनसंख्या में गिरावट आई। यह गिरावट जनसंख्या घटने के आगे के लंबे दौर की शुरूआत है, जिसके चीन की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर निहितार्थ हैं। इसका अर्थ यह भी है कि भारत को खिलने और फलने-फूलने के भरपूर अवसर हैं। क्या बात है! हाल में हमने चीन से एपल का धंधा छीना और अब उसका सबसे बड़ी आबादी वाले देश का खिताब भी।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ वर्ल्ड पाप्युलेशन 2023 रपट के अनुसार जून के अंत तक भारत की जनसंख्या 142.86 करोड़ हो जाएगी, जिसके मुकाबले चीन की आबादी 142.57 करोड़ होगी। अपनी 34 करोड़ आबादी के साथ अमरीका तीसरे स्थान पर है परंतु वह इन दो भीमकाय एशियाई देशों से बहुत पीछे। जून के अंत तक भारत और चीन की कुल आबादी 284 करोड़ हो जाएगी। इसका मतलब है दुनिया का हर तीसरा व्यक्ति या तो चीनी होगा या भारतीय। तभी तो मेरी मित्र सिंथिया हिंदी सीखना चाहती थी। सन् 2011 में ही उसने भविष्यवाणी की थी कि एक दिन भारतीय दुनिया के हर कोने में होंगे।
हालांकि भारत में कई लोग इन आंकड़ों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। उनका तर्क है कि अभी किसी नतीजे पर पहुंचना ठीक नहीं होगा क्योंकि भारत ने खुद अपने लोगों की गिनती नहीं की है। पिछली जनगणना सन् 2011 में हुई थी और उसके बाद सन् 2021 में होनी थी। लेकिन महामारी के कारण यह न हो सका। ज्ञानी कहते हैं कि अगली जनगणना अब सन् 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ही करवाई जाएगी। इसके पीछे क्या राजनैतिक कारण हैं यह मेरी समझ से परे है। हालांकि तब भी स्थिति वही रहेगी। हम दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश बन गए हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।
यूएनएफपीए की भारत में प्रतिनिधि एनड्रिया वेगनर का कथन कुछ जमता नहीं है। उन्होंने कहा है कि बढ़ती जनसंख्या उन्नति, विकास और आकांक्षाओं की प्रतीक है, बशर्ते कि लोगों के अधिकारों और पसंद-नापसंद का सम्मान किया जा रहा हो। सुश्री वेगनर गलत कह रही हैं। असलियत में आबादी का बढऩा अच्छा नहीं है। तथ्यों और तार्किक आधार पर हम सोचे तो यह अनिष्ट का संकेत है।
बढ़ती हुई जनसंख्या भारत के लिए अशुभ है। इसका नागरिकों के अधिकारों और व्यक्तिगत पसंद-नापसंद के सम्मान से कोई ताल्लुक नहीं है। हमारे देश में लडक़ा होने तक बच्चों का पैदा होना जारी रहता है। इस प्रक्रिया में लड़कियों को जन्म के पहले और जन्म के बाद मार डालने और उन्हें लावारिस छोड़ देने की घटनाएं होती रहती हैं। एक समुदाय इसलिए बच्चे पैदा करता रहता है क्योंकि वह अपने धर्म के लोगों की संख्या बढ़ाना चाहता है। हो सकता है कि मोदी जी की विभिन्न पहलों, जिनमें से एक ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ है, के कारण इस स्थिति में कुछ सुधार हुआ हो परंतु जनसंख्या बढऩे का प्रभाव कुल मिलाकर यह है कि देश में अकुशल कार्मिकों की संख्या बढ़ती जा रही है।
कुछ दिन पहले जारी ब्लूम्बर्ग की एक रिपोर्ट से ऐसा लगता है कि स्थिति उससे भी कहीं अधिक भयावह है जितनी हम सोच रहे हैं। रपट का शीर्षक था ‘मूल्यहीन डिग्रियां भारत में अनियोज्य पीढ़ी तैयार कर रही हैं’। रपट का सार यह था कि स्कूलों और कालेजों से लेकर आईआईएम और आईआईटी की बढ़ती संख्या के बावजूद भारतीय स्नातक लडक़ों और लड़कियों में न तो कौशल है और ना ही वे चतुर और तीक्ष्ण बुद्धि याकि काबिलहैं। रोजगार लायक नहीं है। इसलिए बढ़ती हुई जनसंख्या चिंताजनक और अशुभ है। भले ही हमारी युवा आबादी बहुत बड़ी हो परंतु सवाल है कि क्या हम उसकी क्षमताओं का लाभ उठाने में सक्षम हैं। जनसंख्या बढ़ेगी तो अर्थव्यवस्था भी बड़ी होगी। यद्यपि भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है किंतु यहाँ समृद्धि कहीं नजर नहीं आती।
मुठ्ठीभर लोग और रईस होते जा रहे हैं और अधिकांश और गरीब। यूएनडीपी की एक रपट के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा गरीब बच्चे हैं (9.70 करोड़ या देश के 0-17 वर्ष आयुवर्ग के कुल बच्चों का 21.8 प्रतिशत)। सन् 2020 के जनसंख्या संबंधी आंकड़ों के अनुसार दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब (22.89 करोड़) भारत में हैं। पहले नोटबंदी, फिर डिजीटल लेनदेन पर जोर, उसके बाद महामारी, एक भीषण रूप लेता युद्ध, मौसम के बिगड़ते मिजाज और अनाज व पानी की कमी ने आम आदमी की जिंदगी मुहाल कर दी है। फिर हमारे पास जमीन की भी कमी है।
आकार की दृष्टि से भारत एक अपेक्षाकृत छोटा देश हैं जिसके पास कुल 32.9 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि उपलब्ध है। क्षेत्रफल की दृष्टि से चीन दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है और भारत सातवां। ‘इंडिया टुडे’ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में औसतन हर एक वर्ग किलोमीटर में 434.6 लोग बसते हैं। यह चीन के जनसंख्या घनत्व (151.3 प्रति वर्ग किलोमीटर) से तीन गुना अधिक है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जाएगी यह घनत्व भी बढ़ता जाएगा। जमीन कम पडऩे लगेगी। यह अपने आप में एक बड़ी मुसीबत होगी। सन् 2064 में भारत की आबादी 170 करोड़ हो जाएगी और तब शायद हमें एक-दूसरे के ऊपर रहना पड़े. या यह भी हो सकता है कि कथित विश्व गुरू होने के नाते हमें कोई एक ग्रह मिल जाए!
जो भी हो, भारत इस समय चर्चा में है। इस मौके का उपयोग हमें आत्मचिंतन के लिए करना चाहिए। हमें वह योजना बनानी होगी जिससे पहले तो बढ़ती आबादी पर लगाम लगे। दूसरे भारत अपने युवाओं को काबिल बनाए। ताकि योग्यता और संभावनाओं का पूरा इस्तेमाल कर सकें. तभी भारत शाईन करेगा, आगे बढ़ेगा और समृद्ध होगा।तभी बन सकेंगे सचमुच बड़े!