Wednesday, May 14, 2025
नेशनल फ्रंटियर, आवाज राष्ट्रहित की
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
No Result
View All Result
नेशनल फ्रंटियर
Home मुख्य खबर

सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए आत्मबोध को जागृत करना आवश्यक: हेमंत मुक्तिबोध

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
23/10/23
in मुख्य खबर, राज्य
सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए आत्मबोध को जागृत करना आवश्यक: हेमंत मुक्तिबोध
Share on FacebookShare on WhatsappShare on Twitter

लोकेन्द्र सिंहलोकेन्द्र सिंह


भोपाल। अर्चना प्रकाशन की स्मारिका ‘अमृतकाल में सांस्कृतिक पुनर्जागरण’ के विमोचन समारोह में सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत मुक्तिबोध ने कहा कि हमारे देश को तोड़ने के लिए वर्षों से नकारात्मक नैरेटिव स्थापित किए गए हैं। हिंदुत्व और हिन्दू संस्कृति को जातियों के आधार में बाँटा गया। हमें इससे मुक्त होने की आवश्यकता है। आक्रान्तों के आने पर हमारे विश्वविद्यालय एवं ज्ञान केंद्र नष्ट हुए। हम उपनिवेश की मानसिक दासता के शिकार भी हुए। नई पीढ़ी को असल भारत की बात पहुंचाएं, इससे उनमें आत्मबोध जागृत होगा। भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण करने के लिए आत्मबोध को जागृत करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। इस अवसर पर पुरातत्वविद् पूजा सक्सेना ने भोपाल की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर अपना वक्तव्य दिया और कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व न्यायाधीश अशोक पाण्डेय ने की।

consciousness for cultural renaissance

विश्व संवाद केंद्र के ‘मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी सभागार’ में आयोजित विमोचन समारोह में ‘सांस्कृतिक पुनर्जागरण: महत्व एवं हमारी भूमिका’ विषय पर मुख्य वक्ता श्री मुक्तिबोध ने कहा कि विभिन्न कारणों से हमारी ज्ञान परंपरा समाप्त हुई है। अब समय आ गया है कि हम एकजुट होकर अपने प्राचीन ज्ञान को वापस लाएं। श्रुति, स्मृति, साहित्य के रूप में उपलब्ध अपने ज्ञान भंडार का अध्ययन करने के लिए संस्कृत भाषा को सीखें। यह धैर्य और अनुशासन से किया जानेवाला कार्य है। इसके लिए अनेक बुद्धिजीवियों को ध्येय के रूप में इसे स्वीकार करके अपना पूरा समय भारतीय ज्ञान परंपरा के अध्ययन में देना होगा। इसके लिए उन्होंने प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक धर्मपाल का उदाहरण दिया, जिन्होंने ब्रिटिश दस्तावेजों का अध्ययन करके दस महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की है। धर्मपाल का यह साहित्य भारतीय ज्ञान-परंपरा को सामने लाने में महान भूमिका निभाता है। श्री मुक्तिबोध ने कहा कि हम सभी मिलकर समाज में लोकशक्ति का जागरण करें। सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए वर्तमान में सातत्य के साथ साधना करना चाहिए।

consciousness for cultural renaissance

सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत हैं जगद्गुरु आदि शंकराचार्य 

उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य द्वारा भारत में राष्ट्रीय चेतना के पुनर्जागरण हेतु धर्म, साधना के माध्यम से सांस्कृतिक तंतुओं के माध्यम के एकत्रित किया। उन्होंने समाज जागरण हेतु देशभर में घूमकर कर्म योग की स्थापना की। ज्ञान, कर्म, भक्ति ही सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए आवश्यक है। वर्तमान में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए हुए मंदिरों के निर्माण इत्यादि का महत्व बताकर उन्होंने काशी लोक, महाकाल लोक, जगह-जगह तैयार हुए मंदिर, करतारपुर कॉरिडोर इत्यादि का निर्माण होने से सांस्कृतिक पुनर्जागरण में गति मिलने की बात कही। वे बोले समाज को स्वयं में सांस्कृतिक दृष्टि में सकारात्मक परिवर्तन लाकर कार्यों को प्रधानता देनी चाहिए। हम सभी को लोकशक्ति का जागरण करना जरूरी है।

consciousness for cultural renaissance

दोस्त मोहम्मद ने नहीं बनवाया था फतेहगढ़ का किला: पुरातत्वविद पूजा सक्सेना

विशिष्ट वक्ता पुरातत्वेत्ता पूजा सक्सेना ने भोपाल की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर अपने भाषण में कहा कि भोपाल का इतिहास सिर्फ 200 वर्ष पुराना नहीं है। आज से हजारों वर्षों पुरानी हमारी सभ्यता यहाँ मिली है। वर्षों पुराने भीमबैठक, ताम्रपाषाण पत्रिकाएं इत्यादि यहाँ हैं। ऐशबाग स्टडियम में लगा स्तम्भ की स्थापत्य शैली मौर्यकालीन है, जो लगभग 2300 वर्ष पुराना है। 1500 वर्ष पुरानी लिपि इस पर अंकित है।

उन्होंने कहा कि भोपाल ओम घाटी पर बसा हुआ है। गूगल अर्थ में जाकर कोई भी इसकी पुष्टी कर सकता है। राजाभोज ने ओम वैली को मंदिर की जगती (मंदिर निर्माण का धरातल) के रूप में बना दिया था। भोपाल और उसके आसपास अब भी कई मंदिरों के होने के प्रमाण मिलते हैं। राजा भोज ने 9 नदियों को मिलाकर भीमकुण्ड बनवाया था जो कि वर्तमान भोपाल ताला से कई गुना विशाल था। इसे भरने में 5 वर्ष का समय लगा। उन्होंने देश-दुनिया में भोज की हाइड्रोलॉजी की सराहना की।

फतेहगढ़ के किले के बारे में फैले भ्रम पर उन्होंने कहा कि फतेहगढ़ का किला दोस्त मोहम्मद ने नहीं बनवाया बल्कि यह पहले से बना हुआ है। वहां उपस्थित ढाई सीढ़ी की मस्जिद असल में सैनिकों के विश्राम का स्थल था। विदिशा से नर्मदापुरम की ओर जाने पर अनेक स्थल, गोण्डारमऊ महर्षि पतंजलि की तपोस्थली है, सांची, उदयगिरि, प्रतिहार कालीन मंदिर आशापुरी में 23 मंदिर इत्यादि भोपाल के क्षेत्र में रहे हैं। उन्होंने कहा भोपाल के कमला पार्क और शीतलदास की बगिया में मिले साक्ष्यों के आधार पर कह सकते हैं कि परमार काल का मंदिर रहा होगा। उन्होंने होशंगशाह और दोस्त मोहम्मद द्वारा भोपाल को नष्ट करने वाले विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। पावर पॉइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से उन्होंने स्थापित किया कि भोपाल हिन्दू संस्कृति का केंद्र रहा है।

बौद्धिक जगत में प्रहार से बचना हमारी जिम्मेदारी: अशोक पाण्डेय

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व न्यायाधीश अशोक पांडेय ने बौद्धिक जगत में प्रहार करने वालों की हरकतों से परिचित कराया। उन्होंने जेम्स स्टुअर्ट मिल और मैकाले जैसे विदेशी लेखकों द्वारा देश में भ्रम फैलाने की बात पर प्रकाश डालते हुए उनके ऊपर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा अंग्रेजों के समय में मन को दूषित करने का कार्य किया गया। हमारी मान्यताओं को समाप्त करने, ज्ञान परम्परा की गलत व्याख्या की गई। हमें सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए अपनी संस्कृति से जुड़ने, गर्व करने व जानने की बात पर जोर देते हुए आने वाली पीढ़ियों को सौंपना है। अपनी बात में उन्होनें हिन्दू पॉलिटि, हिन्दू केमेस्ट्री आदि पर प्रकाश डाला।

भारत की स्वतंत्रता के साथ जुड़ा है सांस्कृतिक पुनर्जागरण : लोकेन्द्र सिंह

अर्चना प्रकाशन की स्मारिका ‘अमृतकाल में सांस्कृतिक पुनर्जागरण’ के संपादक लोकेन्द्र सिंह ने कहा कि जब-जब देश स्वतंत्र होता है, तब देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर चलती है। देश की स्वतंत्रता के बाद जब देश में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की बात चल रही थी, तब सरदार पटेल ने कहा था- “जब–जब भारत स्वतंत्र हुआ है, तब–तब सोमनाथ की अट्टालिकाओं ने गगन को छुआ है”। लोकेन्द्र सिंह ने कहा कि आज भारत में काशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तार से लेकर उज्जैन के महाकाल लोक तक, जो सांस्कृतिक भव्यता के शिखर कलश दिख रहे हैं, उसके पीछे भारत की औपनिवेशिक मानसिकता से स्वतंत्रता है। कार्यक्रम के आखिर में आभार ज्ञापन अर्चना प्रकाशन के अध्यक्ष लाजपत आहूजा ने किया और कार्यक्रम का संचालन विभोर श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में शहर के गणमान्य नागरिक एवं लेखक उपस्थित रहे।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About

नेशनल फ्रंटियर

नेशनल फ्रंटियर, राष्ट्रहित की आवाज उठाने वाली प्रमुख वेबसाइट है।

Follow us

  • About us
  • Contact Us
  • Privacy policy
  • Sitemap

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.

  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.