ज़िंदगी ठहरी हुई
दर्पण में रात की
छवि कुछ गहरी हुई
जिंदगी ठहरी हुई..
तेज़ तीखे अंधड़ों में
शाख पर
इक नीड की प्रहरी हुई
जिंदगी ठहरी हुई..
आँख सूजी लाल हैं
उठ रहे सवाल हैं
संवेदना गुमसुम फिरे
खाइयाँ गहरी हुई
ज़िन्दगी ठहरी हुई..
मिलके भी जो न मिले
ध्वस्त हो काले किले मौन संग बहरी हुई
ज़िन्दगी ठहरी हुई…!
वसुन्धरा पाण्डेय
प्रयागराज