जो नहीं है
वही है
कोई है
जो शब्दों की रस्सी पकड
कूद आया था कच्चे मन के अहाते में
नंगे पैर
खुल चुकी है रस्सी
बिखर गयी हैं मात्राएँ
शिथिल हैं शब्द्शक्तियाँ
गडबडा गया है व्याकरण
अहाते में बन गया है कमरा
लेकिन
कोई
है !…
~डॉ जय नारायण बुधवार~