नई दिल्ली : मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना ने आज बुधवार को केंद्र सरकार से अगले सीजेआई के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई के नाम की सिफारिश कर दी है. सीजेआई खन्ना के बाद जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं. सीजेआई खन्ना 13 मई को रिटायर हो रहे हैं और उनके गवई देश के 52वें सीजेआई बनेंगे.
जस्टिस गवई, को करीब 6 साल पहले 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में प्रमोट किया गया था. बतौर सीजेआई उनका कार्यकाल 6 महीने से अधिक होगा. वे 23 नवंबर, 2025 को रिटायर हो जाएंगे. जबकि सीजेआई खन्ना, ने पिछले साल 11 नवंबर को देश 51वें सीजेआई के रूप में शपथ ली थी.
2005 में HC के स्थायी जज बने
सीजेआई खन्ना ने नए मुख्य न्यायाधीश के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय को जस्टिस गवई को अगले सीजेआई के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है. देश की सबसे बड़ी अदालत में जजों के रिटायरमेंट की उम्र 65 साल है.
जस्टिस गवई का संबंध महाराष्ट्र से है. उनका जन्म 24 नवंबर, 1960 को अमरावती में हुआ था. उन्हें 14 नवंबर, 2003 को बॉम्बे हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में प्रमोट किया गया था. 2 साल बाद वह 12 नवंबर, 2005 को हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश बने. जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट में कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने कई अहम और चर्चित फैसले सुनाए हैं.
अहम फैसले लेने वाली बेंच का हिस्सा जस्टिस गवई
जस्टिस गवई उन 5 जजों की संविधान पीठ का हिस्सा रहे, जिसने दिसंबर 2023 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था. एक अन्य पांच जजों की संविधान पीठ, जिसमें जस्टिस गवई भी शामिल थे, ने राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था.
इसके अलावा वे 5 जजों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने 4:1 के बहुमत से 1,000 और 500 रुपये के नोट बंद करने के केंद्र के 2016 के फैसले को अपनी मंजूरी दी थी. जस्टिस गवई 7 जजों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने 6:1 के बहुमत से स्वीकार किया था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है.
जस्टिस गवई 16 मार्च, 1985 को बार में शामिल हुए थे और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील थे. अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त सरकारी वकील के रूप में नियुक्त किया गया था. इसके बाद उन्हें 17 जनवरी, 2000 को नागपुर बेंच के लिए सरकारी वकील और सरकारी वकील के रूप में नियुक्त किया गया था.