आज कामदा एकादशी है. ये एकादशी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है. इस दिन विष्णु भगवान का व्रत किया जाता है. मान्यता है कि कामदा एकादशी का व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस एकादशी के व्रत से तन और मन दोनों ही संतुलित रहते हैं. पाप नाश और तमाम मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कामदा एकादशी का विशेष महत्व है.
कामदा एकादशी की व्रत विधि
एकादशी का व्रत निर्जला किया जाता है. सुबह स्नान करके सफेद पवित्र वस्त्र पहनें और विष्णु देव की पूजा करें. विष्णु देव को पीले गेंदे के फूल, आम या खरबूजा, तिल, दूध और पेड़ा चढ़ाएं. ॐ नमो भगवते वासुदेवाये का जाप करें. मंदिर के पुजारी को भोजन करवा कर दक्षिणा दें.
कामदा एकादशी व्रत से लाभ
कामदा एकादशी के दिन विष्णु भगवान की पूजा की जाती है. इस दिन व्रत करने से हर तरह के दुख और कष्टों से मुक्ति मिलती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत-पूजन करने से विष्णु भगवान अधूरी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इसलिए इसे फलदा एकादशी भी कहा जाता है.
कामदा एकादशी की व्रत कथा
कहा जाता है कि पुण्डरीक नामक नागों का एक राज्य था. यह राज्य बहुत वैभवशाली और संपन्न था. इस राज्य में अप्सराएं, गन्धर्व और किन्नर रहा करते थे. वहां ललिता नाम की एक अतिसुन्दर अपसरा भी रहती थी. उसका पति ललित भी वहीं रहता था. ललित नाग दरबार में गाना गाता था और अपना नृत्य दिखाकर सबका मनोरंजन करता था. इनका आपस में बहुत प्रेम था. राजा पुण्डरीक ने एक बार ललित को गाना गाने और नृत्य करने का आदेश दिया. ललित नृत्य करते हुए और गाना गाते हुए अपनी पत्नी ललिता को याद करने लगा, जिससे उसके नृत्य और गाने में भूल हो गई. सभा में एक कर्कोटक नाम के नाग देवता उपस्थित थे, जिन्होंने पुण्डरीक नामक नाग राजा को ललित की गलती के बारे में बता दिया था. इस बात से राजा पुण्डरीक ने नाराज होकर ललित को राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया.
इसके बाद ललित एक अयंत बुरा दिखने वाला राक्षस बन गया. उसकी अप्सरा पत्नी ललिता बहुत दुखी हुई. ललिता अपने पति की मुक्ति के लिए उपाय ढूंढने लगी. तब एक मुनि ने ललिता को कामदा एकादशी व्रत रखने की सलाह दी. ललिता ने मुनि के आश्रम में एकादशी व्रत का पालन किया और इस व्रत का पुण्य लाभ अपने पति को दे दिया. व्रत की शक्ति से ललित को अपने राक्षस रूप से मुक्ति मिल गई और वह फिर से एक सुंदर गायक गन्धर्व बन गया.