Sunday, May 25, 2025
नेशनल फ्रंटियर, आवाज राष्ट्रहित की
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार
No Result
View All Result
नेशनल फ्रंटियर
Home मुख्य खबर

कश्मीर फाइल्स : समीक्षा नहीं सरोकार

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
18/03/22
in मुख्य खबर, सुनहरा संसार
कश्मीर फाइल्स : समीक्षा नहीं सरोकार

google image

Share on FacebookShare on WhatsappShare on Twitter
गति उपाध्याय,
मिर्जापुर

फिल्मों ने बड़े पैमाने पर हमारी सोच को बदला है,सिनेमा का हमेशा एक सामाजिक सरोकार रहा है, समाज के नज़रिये को महज एक फिल्म के जरिए से ना बदला जा सके के वीभत्सता, नृशन्सता और क्रूरता के नग्न चित्रण को रोकने के लिए सेंसर बोर्ड की स्थापना हुई होगी जिसे हम सिर्फ अश्लीलता रोकने के टूल के रूप में जानते हैं.

‘तारे जमीन पर’ और ‘दंगल’ जैसी फिल्मों ने बच्चों की परवरिश से जुड़े नए आयाम सिखाये वहीं तमन्ना और ‘द लास्ट कलर’ जैसी फिल्मों ने हमारे अंदर जेंडर सेंसटिविटी को और बढ़ाया. सच वो नहीं जो हमें दिखाया जाता है हम उतना ही देख पाते हैं जितने पर रोशनी डाली जाती है वह रोशनी सच की है या झूठ की ये वक्त तय करता है.

सच तो यह है इस्लामिक आक्रांताओं ने अपने फौज और घोड़े के साथ पूरे भारत को रौंद डाला था, वो किसी औरत के साथ नहीं आएं तो पूरे हिंदुस्तान की औरतों के साथ वही हुआ होगा… हम सिर्फ कश्मीर को दिखा रहे हैं. मुझे एक ख़ास वर्ग के उस एजेंडे से चिढ़ होती है जब वह पद्मावत के विलेन अलाउद्दीन को हीरो के रूप में दिखाया जाने का विरोध नहीं करते… क्योंकि वह रानी पद्मिनी को अपने सम्मान से जुड़ा नहीं पाते और जहां तक इतिहास का सवाल है इतिहास तो बता रहा है 19 जनवरी 1990 में राष्ट्रवादियों की सरकार भी सत्ता केंद्र में थी, क्या तब कुछ न कर पाने के लिए इन्होंने माफ़ी मांगी, शहीद स्क्वायडर्न लीडर रवि खन्ना की पत्नी का फिल्म के खिलाफ कोर्ट में जाना जाने किस सच को और बताना चाह रहा है.

फिल्मों पर राष्ट्रवादी (राइट विंग) विचारधारा का अभिनव प्रयोग अब स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. इसके पहले ‘ताशकंद फाइल्स’, ‘राज़ी’, ‘यू आर आई’ सर्जिकल स्ट्राइक फिल्मों के बाद ‘कश्मीर फाइल्स’ का आना. ‘कश्मीर फाइल्स ‘दिखाने में कामयाब रही कि धारा 370 क्यों हटाई गई, उसके बाद कश्मीर में क्या हुआ, टुकड़े गैंग की घटना कैसे घटी,इसके बाद सी ए ए भी आसानी से जस्टिफाई कर लिया जाएगा.

सवाल यह है कि इस फ़िल्म का हासिल क्या है व्यापक जनसंहार पर फिल्में पहले भी बन चुकी हैं ग़दर, पिंजर,ग्रहण. पर बड़े पर्दे पर इतना उन्माद और वीभत्सता नहीं दिखाई जाती. फिल्म बनाने वालों ने तो राम मंदिर और गुजरात दंगों पर भी फिल्में बनाई है बेशक वो आज भी यूट्यूब पर उपलब्ध हैं.ऐसी फिल्में सिर्फ सीमित विवेकी दर्शकों तक पहुंचनी चाहिए. ना की फिल्म देखकर नारे लगाने और बदला लेने की बात करने वाले उन्मादी दर्शकों तक. होना ये चाहिए था कि लोगों के विचार भले बदल जाए पर विवेक स्थिर रहे.

फिल्म एक बहुत बड़ी बात को आखिर में बताने में सफल होती है कि दुनिया में ‘नॉलेज वॉर’ चलता रहेगा.भारत में यह बहुत पहले ही समझ लिया गया था इसलिए ही एक बड़े ताकतवर वर्ग वर्ण और स्त्रियों को संस्कृत पढ़ने से रोकने के साथ सामाजिक व्यूह में स्खलित कर दिया गया जिसका परिणाम आज सैकड़ों हजारों साल बाद भी वो वर्ग भुगत रहा है काश इस अघोषित अत्याचार के खिलाफ भी कोई फिल्म बनाई जाती! काश आज पूर्वोत्तर में क्या घट रहा है उन विस्थापितों के साथ क्या हो रहा है भारत की आम हिंदीपट्टी वाली जनता जान पाती!

सच है एक धड़ा है जिन्हें अपने धर्म पर गर्व है, उतना ही सच यह भी है हिंदुओं को अपने धर्म पर उन्हीं की तरह गर्व करना सीखना होगा पलायनवादिता के बदले डट कर खड़ा होना होगा … कुछ विचारधाराओं के लिए युद्ध का डर ही शांति काल होता है! फिल्मों ने हमें और देशभक्त और प्रेमी और तार्किक बनाया है वहीं दूसरी ओर फिल्मों ने देश में कुछ नैरेटिव भी सेट किए हैं,भारत एक बड़ा देश है और बहुत सारी धार्मिक जातियों से मिलकर बना है इसलिए यहां संघर्ष को धर्म का संघर्ष न समझ कर सत्ता का संघर्ष समझा जाता है.

अब जब फ़िल्म बना ही लिया है और दिखा भी रहें तो कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास पर ठोस पहल करें किसी घाव को अगर अपने हित के लिए उघाड़ा है तो उसका पूरी तरह से इलाज करें!जनता का फ़र्ज़ है कि इन्हें भूलने न दें कि फ़िल्म किसी ख़ास हित के लिए नहीं कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए बनी है,कमज़ोर याददाश्त वाली जनता(जिन्होंने कोरोना महामारी को नियति मान कर भूला दिया )को देखना होगा कि अगले पांच सालों में कितने प्रतिशत कश्मीरी पंडित घाटी में वापस पहुंच पाते हैं, सच ही है जलावतन होना ज़िन्दगी में ही मौत की सज़ा है!

 

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About

नेशनल फ्रंटियर

नेशनल फ्रंटियर, राष्ट्रहित की आवाज उठाने वाली प्रमुख वेबसाइट है।

Follow us

  • About us
  • Contact Us
  • Privacy policy
  • Sitemap

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.

  • होम
  • मुख्य खबर
  • समाचार
    • राष्ट्रीय
    • अंतरराष्ट्रीय
    • विंध्यप्रदेश
    • व्यापार
    • अपराध संसार
  • उत्तराखंड
    • गढ़वाल
    • कुमायूं
    • देहरादून
    • हरिद्वार
  • धर्म दर्शन
    • राशिफल
    • शुभ मुहूर्त
    • वास्तु शास्त्र
    • ग्रह नक्षत्र
  • कुंभ
  • सुनहरा संसार
  • खेल
  • साहित्य
    • कला संस्कृति
  • टेक वर्ल्ड
  • करियर
    • नई मंजिले
  • घर संसार

© 2021 नेशनल फ्रंटियर - राष्ट्रहित की प्रमुख आवाज NationaFrontier.