नई दिल्ली : हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन इन सब में आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को एक विशेष दर्जा प्राप्त है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है. इस विशेष दिन पर माता-पिता और गुरु जनों की उपासना का विधान है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु, गुरु और माता-पिता की उपासना करता है, उन्हें सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं, क्या है गुरु पूर्णिमा व्रत की कथा और महत्व?
गुरु पूर्णिमा व्रत कथा
सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा पर्व महर्षि वेदव्यास जी को सम्मान अर्पित करने के लिए मनाया जाता है. उन्होंने चारों वेदों का निर्माण किया था और वह महाभारत के रचयिता भी कहे जाते हैं. इस दिन को उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है. कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास जी ने एक बार अपनी दिव्य चक्षु से देखा कि कलयुग में लोगों के मन में धर्म, संस्कार और आचरण की कमी आ जाएगी.
धर्म के पतन को रोकने के लिए उन्होंने, चारों वेदों का संकलन किया और महाभारत जैसे दिव्य ग्रंथ की रचना की. साथ ही उन्होंने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के मार्ग को सरलता से समझने के लिए कई अन्य पुराणों की भी रचना की. इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास और दिव्य ग्रंथ महाभारत की उपासना की जाती है. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को ज्ञान, मोक्ष और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
क्या है गुरु पूर्णिमा पर्व के नियम?
गुरु पूर्णिमा के दिन देवी-देवता, गुरु जन और माता-पिता की उपासना के साथ-साथ चंद्र देव की उपासना का भी विधान है. इस दिन चंद्र देव को अर्घ्य प्रदान करना चाहिए. साथ ही मन में गलत विचारों को नहीं लाना चाहिए. गुरु पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की उपासना का भी विशेष महत्व है. इसके साथ घर आए किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए.